अंबिकापुर। ग्राम न्यायालय के परिपालन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाई गई है। यह जनहित याचिका सरगुजा फॉर फास्ट की तरफ से प्रसिद्ध वकील प्रशान्त भूषण के जरिये लगाई गई है। इस जनहित याचिका में 29 राज्यों के मुख्य सचिवों को पार्टी बनाया गया है। और ग्राम न्यायालय के परिपालन की मांग की गई है।
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बता दें कि छग सरकार ने 2012 में ही ग्राम न्यायालय लागू नहीं करने का आदेश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट का हालिया बयान कहता है-देश की अदालतों में कुल ढाई करोड़ से ज्यादा मुकदमे निपटारे की बाट जोह रहे हैं। विधि मंत्रालय का सुझाव है कि देश में अदालतों की तादाद मौजूदा संख्या के पांच गुनी बढ़ायी जानी चाहिए। मगर सरकार ने ग्राम न्यायालय अधिनियम में प्रावधान किया है कि महज ५००० ग्राम न्यायालय स्थापित किए जाएंगे- यानी अदालतों की संख्या में महज ५० फीसदी का इजाफा होगा और देश के आधे से ज्यादा प्रखंडों में कोई भी ग्राम न्यायालय नहीं बन पाएगा।
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विधि आयोग का सुझाव है-अदालती इंसाफ की प्रक्रिया सरल हो और भारत की विशाल ग्रामीण आबादी को छह महीने के भीतर हर हाल में उनके दरवाजे पर ही इंसाफ हासिल हो जाय। विधि आयोग के सुझावों की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नये आंकड़ों से भी होती है। सुप्रीम कोर्ट के नये आंकड़े कहते हैं कि अदालती व्यवस्था के ऊंचले पायदान से निचली सीढ़ी तक ना सिर्फ करोड़ों की संख्या में दीवानी और फौजदारी के मुकदमे लंबित पड़े हैं बल्कि सुनवाई की गति इतनी धीमी है कि हाईकोर्टों में कुछेक मुकदमों के निपटारे में २० से ३० साल का समय लग रहा है।
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