शेटराउ (फ्रांस) : रूबिना फ्रांसिस ने बचपन में अपने आदर्श, ओलंपिक पदक विजेता निशानेबाज गगन नारंग का अनुसरण करने का सपना देखा था, लेकिन सबसे बड़े मंच पर पदक जीतना उनके लिए बेहद मुश्किल लक्ष्य था क्योंकि उनके लिए अपने पैरों पर स्थिर खड़ा होना भी बहुत बड़ी बात थी। जबलपुर की 25 वर्षीय रूबिना का जन्म टैलिप्स (पैर के निचले हिस्से में मुड़ाव होना) के साथ हुआ था। इसे आमतौर पर क्लब फुट के रूप में जाना जाता है। इस विकार के कारण उनके लिए निशानेबाजी जैसे खेल में महारत हासिल करना मुश्किल था। उसकी मुसीबत तब और भी बढ़ गईं, जब बैठ कर सही से निशानेबाजी नहीं कर पा रही थी।
उनके कोच जेपी नौटियाल ने पीटीआई से विशेष बातचीत में कहा, ‘‘हमने उन्हें बैठाकर निशाना लगाने की कोशिश की लेकिन यह सही नहीं था।’’ इस समस्या से परेशान होकर ऐसा लग रहा था कि रूबिना को निशानेबाज बनने का अपना सपना छोड़ना होगा। नौटियाल ने कहा, ‘‘हमने उसे खड़े होकर निशानेबाजी करने के लिए प्रेरित किया और उसके लिए विशेष जूते लाए जिससे संतुलन बनाने में मदद मिली।’’ इस निशानेबाजी की सारी मेहनत शनिवार को रंग लाई और वह पैरालंपिक में महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल (एसएच1) स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने वाली देश की पहली महिला पिस्टल निशानेबाज बन गईं। किसी सफल एथलीट के पीछे एक मजबूत समर्थन प्रणाली होती है जो एथलीट को सफलता की ओर धकेलने में मदद करती है और रूबिना के मामले में ऐसा ही समर्थन उनके माता-पिता ने प्रदान किया।
उनके पिता एक गैराज के मालिक थे और माँ नर्स के रूप में काम करती थीं। उन्होंने वित्तीय संघर्षों के बावजूद उनके सपनों का समर्थन किया। रूबिना 2015 में एमपी निशानेबाजी अकादमी में पहुंची, जहां नौटियाल की सलाह और प्रसिद्ध कोच जसपाल राणा के छोटे भाई सुभाष के मार्गदर्शन में उसके खेल में काफी सुधार आया। नौटियाल ने कहा, ‘‘उसने 2016 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 386 का स्कोर था और हम उसे फरवरी 2017 में विश्व कप के लिए संयुक्त अरब अमीरात के अल ऐन में ले गए। वह तब जूनियर थी, वह न केवल फाइनल में पहुंची बल्कि जूनियर विश्व रिकॉर्ड कायम किया।’’ रूबिना ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा, चीन में पैरा एशियाई खेलों में कांस्य के अलावा लीमा (पेरू) में पैरा विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।
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