नई दिल्ली, दो अगस्त। टोक्यो ओलंपिक के लिए रिकॉर्ड संख्या में क्वालीफाई करने के बाद भारतीय निशानेबाजों से पदकों की उम्मीद थी लेकिन रियो ओलंपिक की तरह जापान में उनका अभियान निराशाजनक तरीके से बिना किसी सफलता के खत्म हुआ। पांच साल पहले रियो ओलंपिक के बाद भारतीय निशानेबाजी प्रणाली में कई आमूल-चूल बदलाव हुए थे, जिसके बाद वादा किया गया था कि ऐसे प्रदर्शन को फिर से नहीं दोहराया जाएगा। तोक्यो में हालांकि इससे भी बुरे परिणाम देखने को मिले जहां 15 सदस्यीय मजबूत दल ओलंपिक के दबाव में पूरी तरह बिखर गया और सिर्फ सौरभ चौधरी ही फाइनल में जगह बनाने में सफल रहे।
भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) के अध्यक्ष रनिंदर सिंह के 25 मीटर और 50 मीटर स्पर्धाओं के बाकी रहते समय ही कह दिया था कि खेलों के बाद बड़े पैमाने पर कोचिंग स्टाफ को बदला जाएगा। भारत के निराशाजनक अभियान में युवा पिस्टल निशानेबाज मनु भाकर और उनके पूर्व कोच जसपाल राणा का विवाद एक बार से उजागर हुआ जिसने खराब परिणाम के बीच खिलाड़ियों को और हतोत्साहित किया। प्रतियोगिताओं के अंतिम दिन, युवा ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर और अनुभवी संजीव राजपूत पुरुषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन स्पर्धा के फाइनल में जगह बनाने में असफल रहे। क्वालीफिकेशन में वे क्रमशः 21वें और 32वें स्थान पर रहे।
रनिंदर ने प्रदर्शन को उम्मीद से काफी कम करार देते हुए कहा कि इसकी समीक्षा होगी और बड़े आयोजनों के लिए खिलाड़ियों को बेहतर ढंग से तैयार करने के लिए कोचिंग स्टाफ में बदलाव करने पर ध्यान दिया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘ निश्चित रूप से प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं थे और मैंने कोचिंग और सहयोगी सदस्यों में बदलाव की बात कही है क्योंकि मुझे लगता है कि इन बड़े मौकों के लिए हमारे निशानेबाजों को तैयार करने में कुछ कमी हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘स्पष्ट रूप से उनमें प्रतिभा है और हमने इसे यहां भी देखा है।’’
सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह कोचों के कारण हुआ या ओलंपिक के दबाव के कारण? भारतीय निशानेबाजों की ऐसी असफलता के पीछे क्या कारण है जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी? क्या तैयारी में कुछ कमी थी, क्या कोचों के बीच कथित गुटबाजी इसका कारण था या समस्या निशानेबाजों के रवैये में थी ? यह लगातार दूसरी बार है जब ओलंपिक से भारतीय दल खाली हाथ लौटा। रियो खेलों के बाद ओलंपिक चैंपियन अभिनव बिंद्रा के नेतृत्व में समिति का गठन हुआ था, जिसमें निशानेबाजी के संचालन को लेकर बदलाव के सुझाव दिये गये थे।
राष्ट्रीय महासंघ (एनआरएआई) के साथ साथ कोचों और निशानेबाजों से निश्चित रूप से कठिन सवाल पूछे जाएंगे कि वे हाल के वर्षों में आईएसएसएफ विश्व कप के अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन को तोक्यो दोहराने में सफल क्यों नहीं रहे। एनआरएआई ने हालांकि अपनी तरफ से काफी प्रयास किये। कोविड-19 महामारी के दौरान उसने खिलाड़ियों को क्रोएशिया में रखा ताकी देश में महामारी के दूसरे लहर के बीच उनका अभ्यास प्रभावित ना हो। रनिंदर ने कहा, ‘‘ मुझे केवल यही कहना है कि मैं खराब प्रदर्शन के लिए कोई बहाना नहीं बनाना चाहता हूं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारी ओर से, हमने निशानेबाजों को तैयार करने के लिए जो कुछ भी मानवीय रूप से संभव है, वह किया। हमने (बिंद्रा) समिति की सिफारिश का पालन किया, जिसने रियो में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद सुझाव दिये थे।’’
एनआरएआई प्रमुख ने यह भी बताया कि तोक्यो में प्रतिस्पर्धा करने वाले अधिकांश निशानेबाज युवा थे और हो सकता है कि ओलंपिक जैसे बड़े आयोजन में भाग लेने के दबाव में आ गए हों। पूरी निशानेबाजी प्रतियोगिता में छह देशों ने एक-एक स्वर्ण पदक साझा किया, जबकि कुल 19 देशों ने खेलों में इस खेल में पदक हासिल किये। भारत के अलावा जर्मनी, स्वीडन, नॉर्वे और हंगरी जैसे निशाबाजी में मजबूत माने जाने वाले देश भी पदक जीतने में नाकाम रहे।
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