मौजूदा दौर के खिलाड़ी ‘कमजोर दिल’ के नहीं है: बिंद्रा |

मौजूदा दौर के खिलाड़ी ‘कमजोर दिल’ के नहीं है: बिंद्रा

मौजूदा दौर के खिलाड़ी ‘कमजोर दिल’ के नहीं है: बिंद्रा

:   Modified Date:  July 8, 2024 / 07:51 PM IST, Published Date : July 8, 2024/7:51 pm IST

(फाइल तस्वीर के साथ)

नयी दिल्ली, आठ जुलाई (भाषा) भारत के पहले व्यक्तिगत स्पर्धा के ओलंपिक चैंपियन अभिनव बिंद्रा का मानना है कि खिलाड़ियों की मौजूदा पीढ़ी उनके समय के ‘कमजोर दिल’ वाले खिलाड़ियों की तुलना में अधिक मजबूत है।

बीजिंग ओलंपिक (2008) में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले बिंद्रा ने 26 जुलाई से शुरू होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए देश की तैयारियों पर फ्रांस के दूतावास और ‘इंडो-फ्रेंच चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (आईएफसीसीआई)’ के साथ आयोजित एक पैनल चर्चा के दौरान भारतीय दल को सलाह दी कि वे अतीत या भविष्य के बारे में सोचने की गलती न करें।

भारत के लगभग 125 खिलाड़ियों ने इन खेलों के लिए क्वालीफाई कर लिया है, जो देश के इतिहास में सबसे ज्यादा है।

बिंद्रा ने कहा, ‘‘मैं एक ऐसी पीढ़ी से आया हूँ जो स्वभाव से कमजोर दिल वाली थी। आज के दौर के खिलाड़ियों का आत्मविश्वास कहीं अधिक है। वे इन खेलों में सिर्फ हिस्सा लेना नहीं बल्कि पदक जीतना चाहते है। ये खिलाड़ी कोई और पदक नहीं बल्कि स्वर्ण पदक जीतना चाहते है। यह हमारे समाज का प्रतिबिंब है कि पिछले कुछ वर्षों में यह कैसे विकसित हुआ है।’’

इस 41 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा कि खेलों को देखने और उसके बारे में बात करने का तरीका बदल गया है लेकिन जिस चीज में बदलाव नहीं आया है वह है एथलीटों को मिलने वाली कड़ी प्रतिस्पर्धा।

बिंद्रा ने कहा, ‘‘ अब अलग तरह से बातचीत होती है। उसमें हालांकि कई समानताएं है, उन्हें पेरिस में अपना दमखम दिखाना होगा और उस विशेष दिन पर प्रदर्शन करना होगा। यह किसी भी तरह से आसान नहीं होने वाला है। उन्हें दबाव झेलना सीखना होगा। वर्षों से सीखी गयी  प्रक्रिया, अपने कौशल को खेल में उतारने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ एथलीटों की सबसे बड़ी गलती यह है कि वे या तो अतीत में जीते हैं या भविष्य के बारे में सोच रहे हैं। वे इस वास्तविकता के बारे में भूल जाते हैं मौजूदा समय की अहमियत सबसे ज्यादा है।’’

भारत में फ्रांस के राजदूत थिएरी माथौ ने कहा कि पेरिस असाधारण खेल आयोजित करने के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा कि नवाचार, स्थिरता, एकजुटता, लैंगिक समानता, रोजगार, शिक्षा और समावेशिता उनके खेलों के आयोजन के केंद्र में है।

माथौ ने यह भी बताया कि भारत और फ्रांस ने खेलों में सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि भारत 2036 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने की इच्छा रखता है।

इस मौके पर भारतीय एथलेटिक्स संघ (एएफआई) के अध्यक्ष आदिले सुमरिवाला से जब पूछा गया कि भारत के इन खेलों में कितना पदक जीतने की संभावना है।

उन्होंने कहा, ‘‘नीरज एशियाई चैंपियन, राष्ट्रमंडल खेलों चैंपियन, विश्व और ओलंपिक चैंपियन हैं। कई खिलाड़ियों ने नीरज से बेहतर थ्रो किया है लेकिन मुख्य प्रतियोगिता के दिन नीरज 90 मीटर तक पहुंचने में नाकाम रहने के बावजूद स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि ओलंपिक में भारत की सफलता का श्रेय सिर्फ पदक की संख्या पर आधारित नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह देखना होगा कि लंदन, रियो, तोक्यो में कितने खिलाड़ी थे और अब कितने हैं। कितने तब फाइनल में पहुंचे और कितने अब पहुंच रहे है। अगर संख्या बढ़ी है, तो क्या यह प्रगति है। मैं इसी तरह मापता हूं।’’

 बिंद्रा ने कहा कि भारत को 30-40 ओलंपिक पदक जीतने का सपना देखना शुरू करने के लिए जमीनी स्तर पर बहुत काम करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें खेल को अलग तरह से देखना शुरू करना होगा। वर्तमान में हम यह देख रहे हैं कि विश्व स्तर पर एथलीट कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं। यह हमें मजबूती देता है। हमें राष्ट्र निर्माण में खेल की बड़ी भूमिका को देखने की जरूरत है।’’

भाषा आनन्द मोना

मोना

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)