भारत में क्रिकेट मजहब है लेकिन दूसरे खेलों के लिये अवरोधक नहीं : सेबेस्टियन को |

भारत में क्रिकेट मजहब है लेकिन दूसरे खेलों के लिये अवरोधक नहीं : सेबेस्टियन को

भारत में क्रिकेट मजहब है लेकिन दूसरे खेलों के लिये अवरोधक नहीं : सेबेस्टियन को

:   Modified Date:  November 27, 2024 / 05:14 PM IST, Published Date : November 27, 2024/5:14 pm IST

(अजय मसंद)

नयी दिल्ली, 27 नवंबर (भाषा) विश्व एथलेटिक्स के प्रमुख सेबेस्टियन को जानते हैं कि भारत में क्रिकेट मजहब से कम नहीं लेकिन उनका मानना है कि इसे दूसरे खेलों के अवरोधक के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये क्योंकि नीरज चोपड़ा जैसे चैम्पियन पैदा करके दूसरे खेल क्रिकेट के दबदबे को तोड़ सकते हैं ।

अगले साल अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के चुनाव में अध्यक्ष पद के दावेदार को पिछले दो दिन से भारत में हैं । उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेल मंत्री मनसुख मांडविया से मुलाकात करके भारतीय खेलों के विकास पर चर्चा की ।

खेलों की महाशक्ति बनने की भारत की क्षमता पर भरोसा जताते हुए चार बार के ओलंपिक पदक विजेता मध्यम दूरी के पूर्व धावक ने कहा ,‘‘जब आपके पास ऐसा खिलाड़ी है जो ओलंपिक और विश्व चैम्पियनशिप खिताब जीत रहा है तो इसके मायने हैं कि खेल सही दिशा में जा रहे हैं ।’’

उन्होंने पीटीआई को फोन पर दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘ जब आपके पास नीरज जैसा खिलाड़ी है तो आप दूसरे खेलों को अच्छी चुनौती दे सकते हैं । हमें पता है कि क्रिकेट यहां मजहब की तरह है ।’’

उन्होंने कहा ,‘‘ यह महत्वपूर्ण है कि भारत के पास जनता और प्रसारकों में लोकप्रिय खिलाड़ी हों । नीरज में यह गुण है ।’’

चोपड़ा ने तोक्यो ओलंपिक में भालाफेंक में स्वर्ण जीतने के बाद पेरिस ओलंपिक में रजत पदक जीता ।

68 वर्ष के को ने कहा ,‘‘ क्रिकेट को अवरोध नहीं मानना चाहिये क्योंकि हर देश में ऐसे खेल हैं जिनका दबदबा है । ब्रिटेन में फुटबॉल है लेकिन हमारे पास ट्रैक और फील्ड में भी शानदार टीम है । जो है उसे स्वीकार करना होगा । आप यह सोचकर ही नहीं बैठ सकते कि भारत में क्रिकेट या फुटबॉल या कोई और खेल मजबूत है । यह सोचकर हार नहीं मानी जा सकती ।’’

उन्होंने कहा ,‘‘ आपको अधिक प्रयोगधर्मी होना होगा , रचनात्मक भी । खेलों का परिदृश्य काफी प्रतिस्पर्धी है । ’’

प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा ,‘‘ मैं आपसी बातचीत का खुलासा नहीं करूंगा । लेकिन हमने भारत में बड़े आयोजकों के महत्व पर बात की । उन्होंने साफ तौर पर कहा कि बड़े टूर्नामेंटों से बेहतर प्रतिस्पर्धा ही नहीं होती बल्कि इसका समाज खासकर युवाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव होता है ।’’

उन्होंने कहा ,‘‘ वह (प्रधानमंत्री) चाहते हैं कि भारत में बड़े टूर्नामेंट हों । ’’

भाषा

मोना नमिता

नमिता

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)