चैम्पियन खिलाड़ियों ने दिया मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत पर जोर |

चैम्पियन खिलाड़ियों ने दिया मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत पर जोर

चैम्पियन खिलाड़ियों ने दिया मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत पर जोर

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Modified Date: January 29, 2025 / 11:52 AM IST
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Published Date: January 29, 2025 11:52 am IST

(सुधीर उपाध्याय)

विजयनगर (कर्नाटक), 29 जनवरी (भाषा) खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चली आ रही बहस के बीच एशियाई खेलों के कांस्य पदक विजेता त्रिकूद खिलाड़ी प्रवीण चित्रावेल और जूडो में भारत की पहली विश्व चैंपियन लिंथोई चनामबाम ने भी इस पर जोर देते हुए कहा कि इसके महत्व का अहसास उस समय अधिक होता है जब खिलाड़ी चोटिल हो जाता है।

रियो ओलंपिक 2016 की स्वर्ण पदक विजेता महिला पहलवान एरिका वीब का भी मानना है कि शीर्ष स्तर पर चुनौती पेश करने के लिए शारीरिक रूप से मजबूत होना अनिवार्य है लेकिन मानसिक मजबूती को भी कम करके नहीं आंका जा सकता क्योंकि आपको बेहद तनाव और थकान के बीच फैसले लेने होते हैं।

भारतीय खिलाड़ियों ने अतीत में शारीरिक फिटनेस को ही अधिक महत्व दिया है लेकिन बदलते समय के साथ वे मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत समझने लगे हैं और इसका असर निश्चित तौर पर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर भी दिख रहा है।

राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक प्रवीण का मानना है कि शारीरिक रूप से सभी खिलाड़ी अच्छे होते हैं और मानसिक रूप से मजबूती खिलाड़ियों के बीच मुख्य अंतर पैदा करती है।

तमिलनाडु के तंजावुर जिले के प्रवीण ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘शारीरिक रूप से हर कोई अच्छा है, मानसिक रूप से कोई कितना अच्छा है यह खिलाड़ी पर निर्भर करता है। शारीरिक रूप से प्रत्येक खिलाड़ी अच्छा होता है, वे बहुत मेहनत करते हैं और उबरना। सब कुछ अच्छा है लेकिन क्या मैं मानसिक रूप से कुछ बदलना चाहता हूं, एक बार मानसिक रूप से बदलाव आने पर खिलाड़ी पूरी तरह से बदल जाता है जिसका बड़ा असर होता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमें बहुत सी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जैसे जब मैं ट्रेनिंग करता हूं तो बहुत से एथलीट से सीखता हूं और कई चीजों के साथ आत्मविश्वास, आत्मसम्मान के बारे में सीखना अधिक महत्वपूर्ण है।’’

विश्व कैडेट जूडो चैंपियनशिप 2022 की स्वर्ण पदक विजेता लिंथोई का मानना है कि खिलाड़ी के जीवन में मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत शारीरिक फिटनेस से अधिक है और इसका एहसास उन्हें तब हुआ जब 2024 में उन्हें घुटने में चोट लगी।

लिंथोई ने कहा, ‘‘मैं कहूंगी कि मानसिक मजबूत की भूमिका 70 प्रतिशत और शारीरिक मजबूती की भूमिका 30 प्रतिशत है। आपको मानसिक रूप से बहुत मजबूत होना चाहिए। जब मुझे चोट लगी (2024 में घुटने की चोट) तो मुझे इसका अहसास हुआ क्योंकि उस समय आप कुछ नहीं कर सकते। आप चल भी नहीं सकते और आप बिस्तर से अपना पैर भी नहीं उठा सकते।’’

उन्होंने कहा, ‘‘चोट से पहले हम किसी को फेंक रहे होते हैं, भारी वजन उठा रहे होते हैं और हमें लगता था कि हम सबसे मजबूत हैं। लेकिन जब मुझे चोट लगी तो मैं अपना पैर भी ठीक से नहीं उठा पा रही थी। तो यह मेरे लिए बहुत मुश्किल समय था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं बहुत छोटी हो गई हूं।’’

मणिपुर की इस खिलाड़ी ने कहा, ‘‘जब मेरा ऑपरेशन हुआ तो मैंने अपने माता-पिता को नहीं बताया कि मैं सर्जरी करवा रही हूं। मेरे माता-पिता बहुत दूर मणिपुर में रहते हैं। मैंने उन्हें नहीं बताया कि मैं सर्जरी करवा रही हूं। मैं खुद सर्जरी करवाई।’’

रियो ओलंपिक चैंपियन एरिका का मानना है कि किसी भी खिलाड़ी के लिए हार से निपटना आसान नहीं होता और ऐसी स्थिति में मानसिक रूप से मजबूती काफी महत्वपूर्ण हो जाती है।

रियो खेलों की महिला 75 किग्रा फ्रीस्टाइल स्पर्धा की स्वर्ण पदक विजेता एरिका ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि कुश्ती में शारीरिक और मानसिक दोनों पहलू महत्वपूर्ण हैं। उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए आपके पास शारीरिक तैयारी होनी चाहिए जिसमें चुस्ती, मजबूती, तेजी, शक्तिशाली होना शामिल लेकिन फिर आपको अत्यधिक थकान की स्थिति में निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए और यह तकनीकी तथा रणनीतिक फैसले हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘और मुझे लगता है कि इसके लिए अगली परत मानसिक अनुशासन है। प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए जरूरी ट्रेनिंग के साथ मानसिक मजबूती। जब आप सोचते हैं कि आप दुनिया के सबसे बड़े मंच पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए कैसे तैयार होते हैं और अपने भीतर आत्मविश्वास, साहस कैसे पाते हैं तो बस कुछ ही बातें दिमाग में आती हैं। आप हार से कैसे निपटते हैं, आप विफलता की कगार पर कैसे ताकत पाते हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है।’’

कर्नाटक के विजयनगर के इंस्पायर इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट (आईआईएस) के स्ट्रैंथ एवं मानसिक अनुकूलन प्रमुख स्पेंसर मैकाय दिग्गज भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा और साक्षी मलिक जैसे ओलंपिक पदक विजेताओं के साथ काम कर चुके हैं और उन्होंने कहा कि वह भारत में अधिकतर मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक बेहतरी पर ही काम कर रहे हैं।

स्पेंसर ने कहा, ‘‘भारत में हम अधिकतर मानसिक स्वास्थ्य पर काम कर रहे हैं। मेरे अनुभव से इसका असर उन खिलाड़ियों पर अविश्वसनीय रूप से दिखता है जिन्हें रिहैबिलिटेशन से गुजरना पड़ता है। एक लंबी अवधि की चोट जिसके बाद खिलाड़ी को प्रदर्शन के अपने पुराने स्तर को हासिल करने में नौ महीने से अधिक या एक साल का भी समय लग जाता है।’’

भाषा मोना

मोना

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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