(मोना पार्थसारथी)
नयी दिल्ली, 15 जनवरी ( भाषा ) उनकी कहानी आमिर खान की आस्कर नामांकित फिल्म ‘लगान’ की याद दिलाती है जिसमें नायक भुवन अंग्रेजों के बनाये गए एक नये खेल क्रिकेट को सीखकर गांव के लोगों के साथ तीन महीने के भीतर एक टीम खड़ी कर देता है ।
भुवन यानी आमिर खान के लिये वह क्रिकेट का खेल था तो ब्राजील पुरूष खोखो टीम की कोच लौरा डोरिंग के लिये वह खेल है खोखो । महज चार महीने में एक पूरी तरह से अनजान खेल सीखकर लौरा ने टीम तैयार की जिसने यहां चल रहे विश्व कप में इस खेल के जनम भारत के खिलाफ पदार्पण किया ।
ब्राजील के पोर्तो अलेग्रे की रहने वाली फ्लैग फुटबॉल कोच लौरा ने यूट्यूब पर खेल सीखा, खिलाड़ियों को चुना और थोड़े से समय में उन्हें इस खेल का ककहरा सिखाया । उनके पास कुल जमा चार महीने का समय ही था ।
लौरा ने भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘ मुझे पता है कि ब्राजील को यहां लोग फुटबॉल के लिये ही जानते हैं और खोखो के बारे में हमने कभी सुना नहीं था लेकिन आज हम ऐसे खेल में देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो हमने चार महीने पहले ही सीखा ।’’
उन्होंने बताया कि दो साल पहले अंतरराष्ट्रीय खोखो महासंघ के महासचिव रोहित हल्दानिया ने एक मुलाकात के दौरान उन्हें इस खेल के बारे में पहली बार बताया ।
उन्होंने कहा ,‘‘रोहित ने बताया कि वह ब्राजील में इस खेल को शुरू करना चाहते हैं । मुझे यह काफी रोमांचक और चुनौतीपूर्ण लगा।’’
जब चार महीने पहले उन्हें पता चला कि विश्व कप में भाग लेना है तो सबसे बड़ी चुनौती खेल को सीखने और 15 खिलाड़ियों के साथ एक पूरी टीम तैयार करने की थी । ऐसे में लौरा के लिये सहारा बना सोशल मीडिया ।
उन्होंने कहा ,‘‘ मैने यूट्यूब पर खेल के कई वीडियो देखे, उन भारतीयों को सोशल मीडिया पर फॉलो करना शुरू किया जो इस खेल से जुड़े थे और उनसे मदद मांगी । उन्होंने कई वीडियो साझा किये । फिर रोहित एक सप्ताह के लिये दिसंबर में ब्राजील आये और हमें इस खेल के बारे में बताया ।’’
उन्होंने बताया कि अभ्यास सत्रों के दौरान ब्राजील के लोग इस खेल को देखकर हैरान हो जाते थे लेकिन बाद में रूचि लेने लगे ।
लौरा ने कहा ,‘‘ मैने टीम चुनने के लिये कुछ सत्र आयोजित किये । इस दौरान स्थानीय लोग खेल देखकर हैरान हो जाते थे और उन्हें लगता था कि हम बचपन का खेल ‘पेगा पेगा’ ( जिसमें एक बच्चा दूसरे को पकड़ने की कोशिश करता है ) खेल रहे हैं लेकिन नियमों के साथ । बच्चों को इसमें मजा आने लगा ।’’
पोर्तो अलेग्रे में स्थानीय फ्लैग फुटबॉल टीम ब्रावोस की कोच लौरा ने कहा कि खिलाड़ियों को खोखो खेलने के लिये तैयार करना उतना आसान नहीं था ।
उन्होंने कहा ,‘‘ यह बहुत मुश्किल था । मेरे खिलाड़ियों में कोई हैंडबॉल खेलता है तो कोई फुटबॉल और सब अलग अलग शहरों में रहते हैं । हम आनलाइन ही जुड़े थे और कुछ ही आफलाइन अभ्यास सत्र हो सके । उन सभी को मिलाकर मैने टीम तैयार की ।’’
कोच ने कहा ,‘‘ मैने खिलाड़ियों को रफ्तार, फिटनेस, दिशा के बोध और टीम वर्क के आधार पर चुना । चुनने के बाद मैने मैसेज किया कि हमें भारत जाना है, खेलना है और खेल का मजा लेना है ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ हमने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच उस देश के खिलाफ खेला जिसने इस खेल का अविष्कार किया । हमें पता है कि अभी लंबा सफर तय करना है लेकिन भारत के खिलाफ खेलना सम्मान की बात है और हमें हार का भी मलाल नहीं है । अगली बार हम बेहतर तैयारी से खेलेंगे ।’’
लौरा का मानना है कि ब्राजील में खोखो का भविष्य उज्जवल है और विश्व कप का अनुभव उनके काफी काम आयेगा ।
उन्होंने कहा,‘‘ ब्राजील में हमारे पास प्रायोजक हैं जिन्हें यह खेल काफी रोचक लगता है । चार महीने में ही इसे लेकर लोगों की रूचि जगी है । हमारा एक खोखो महासंघ भी है ओर खेल के विकास के लिये विश्व कप का अनुभव उपयोगी साबित होगा ।’’
भारत आना हमेशा से लौरा का सपना था और वह भारतीय खाने की दीवानी हो गई है ।
उन्होंने कहा ,‘‘ मैने भारत की संस्कृति, खान पान और आतिथ्य के बारे में बहुत कुछ सुना था । मेरा सपना था कि मैं कभी भारत आऊं । मैं ताज महल देखना चाहती हूं ।’’
पेले, रोनाल्डो, नेमार के देश से आई लौरा किसी भारतीय फुटबॉलर को नहीं जानती ।
उन्होंने कहा ,‘‘ मैं माफी चाहती हूं कि मैने यहां के किसी फुटबॉल खिलाड़ी के बारे में नहीं सुना । मैं असल में फ्लैग फुटबॉल से जुड़ी हूं जो फुटबॉल से अलग है लेकिन उतना लोकप्रिय नहीं तो लोग कन्फ्यूज हो जाते हैं ।’’
भाषा
मोना नमिता
नमिता
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