आईओए की कार्रवाई के बीच बीएफआई की अंदरूनी कलह सामने आई |

आईओए की कार्रवाई के बीच बीएफआई की अंदरूनी कलह सामने आई

आईओए की कार्रवाई के बीच बीएफआई की अंदरूनी कलह सामने आई

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Modified Date: February 25, 2025 / 07:51 PM IST
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Published Date: February 25, 2025 7:51 pm IST

नयी दिल्ली, 25 फरवरी (भाषा) समय पर चुनाव न कराने के आरोप में भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) द्वारा प्रशासनिक शक्तियों को छीने जाने के बाद भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) के भीतर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है कि कई महीनों से चल रही इस गड़बड़ी के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए।

अधिकारियों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग, वित्तीय कदाचार और कभी खत्म नहीं होने वाली लड़ाई अब सामने आ रही है क्योंकि वे इस चौंकाने वाले घटनाक्रम के लिए दोष से बचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

आईओए ने महासंघ द्वारा समय पर चुनाव नहीं कराने का हवाला देते हुए खेल के मामलों की देखरेख के लिए सोमवार को पांच सदस्यीय तदर्थ समिति का गठन किया।

इस पैनल की अध्यक्षता भारतीय एथलेटिक्स महासंघ (एएफआई) के पूर्व कोषाध्यक्ष मधुकांत पाठक कर रहे हैं, तथा इसमें मुक्केबाजी महासंघ के लंबे समय से कार्यरत अधिकारी जैसे राजेश भंडारी (उपाध्यक्ष), डीपी भट्ट, वीरेंद्र सिंह ठाकुर शामिल हैं जबकि पूर्व एशियाई चैंपियन शिव थापा खिलाड़ियों के एकमात्र प्रतिनिधि हैं।

मुक्केबाजी की किस्मत पिछले कुछ समय से ढलान पर है, लेकिन आंतरिक रस्साकशी अब तक छिपी हुई थी। आईओए की सख्ती के साथ, यह अब खुलकर सामने आ गई है।

28 दिसंबर को बीएफआई को एक शिकायत मिली जिसमें महासचिव हेमंत कलिता और कोषाध्यक्ष दिग्विजय सिंह सहित प्रमुख अधिकारियों पर ‘अनधिकृत रूप से धन निकासी, धोखाधड़ी वाले बिल और सत्ता के दुरुपयोग ’’ का आरोप लगाया गया है।

उन पर निविदा प्रक्रिया के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया था और यह दावा किया गया था कि रोहतक में ट्रेनिंग शिविर और गुवाहाटी टैलेंट हंट के लिए अनुबंध उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना दिए गए थे।

यह भी आरोप लगाया गया कि गैर-मुक्केबाजी व्यक्तियों को तकनीकी अधिकारी (एनटीओ) के रूप में नियुक्त किया गया था और विदेशी मुद्रा की अनधिकृत निकासी और व्यक्तिगत खर्चों के लिए महासंघ के धन का दुरुपयोग किया गया था।

12 जनवरी को कार्यकारी परिषद की बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया कि जांच की जाएगी जिसमें सचिव और कोषाध्यक्ष दोनों उपस्थित थे। हितों के टकराव से बचने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सुधीर कुमार जैन को 21 जनवरी को जांच का नेतृत्व करने के लिए बीएफआई द्वारा नियुक्त किया गया था। तब से जैन ने कई बैठकें की हैं।

हालांकि दिग्विजय ने इस सप्ताह बीएफआई प्रमुख अजय सिंह को पत्र लिखकर मामले को महासंघ की आंतरिक अनुशासनात्मक और विवाद समिति को संदर्भित करने के बजाय एक-व्यक्ति की जांच समिति की एकतरफा नियुक्ति पर आपत्ति जताई।

दिसंबर में की गई शिकायतों में विशेष रूप से वित्त समिति द्वारा धन के दुरुपयोग और प्रोटोकॉल उल्लंघन को उजागर किया गया था।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दिग्विजय बीएफआई वित्त समिति के भी प्रमुख हैं जिसमें अनुशासनात्मक और विवाद समिति के सदस्य मेरेन पॉल शामिल हैं।

जैन ने मंगलवार को कलिता और दिग्विजय को पूछताछ के लिए बुलाया था लेकिन दोनों ही जांच के लिए उपस्थित नहीं हुए।

मौजूदा पदाधिकारियों का कार्यकाल तीन फरवरी को समाप्त हो गया। हालांकि, चुनाव की तारीख की घोषणा अभी नहीं की गई है। इस महीने की शुरुआत में उत्तराखंड में हुए राष्ट्रीय खेलों के दौरान 24 राज्य संघों ने बीएफआई अध्यक्ष को पत्र लिखकर नौ मार्च को चुनाव कराने की मांग की थी।

हालांकि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सहित इनमें से कई संघों ने बाद में अपनी मांग वापस ले ली और इसके बजाय चुनाव की तारीख और स्थान तय करने के लिए सिंह का समर्थन किया।

बीएफआई ने खेल मंत्रालय को भी देरी के बारे में सूचित किया। तीन फरवरी को लिखे पत्र में महासंघ ने कहा कि मंगलवार को एक विशेष आम सभा की बैठक (एसजीएम) निर्धारित की गई थी और मंत्रालय को आश्वासन दिया कि चुनाव मार्च के मध्य तक करा लिए जाएंगे।

हालांकि बैठक नहीं हुई। मामले से परिचित बीएफआई के एक अधिकारी ने बताया, ‘‘राष्ट्रीय खेल चल रहे थे और विश्व मुक्केबाजी आईओसी से मान्यता प्राप्त करने के अंतिम चरण में है और अध्यक्ष इसमें करीब से जुड़े हुए हैं इसलिए यह तय किया गया कि बैठक मार्च में होगी। ’’

इस बीच आईओए कोषाध्यक्ष और विवाद एवं संबद्धता समिति के सदस्य सहदेव यादव ने सोमवार को बीएफआई की देखरेख के लिए तदर्थ समिति की नियुक्ति का कड़ा विरोध किया।

उन्होंने इस निर्णय की आलोचना करते हुए इसे ‘‘मनमाना और उचित अधिकार के बिना’’ बताया और कहा कि ऐसा कदम उठाने से पहले कोई प्रक्रियागत कदम नहीं उठाए गए।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय खेल महासंघ (एनएसएफ) स्वायत्त संस्था हैं और आईओए को उनके आंतरिक प्रशासन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

हालांकि पहले भी ऐसे उदाहरण रहे हैं जब किसी खेल महासंघ के समय पर चुनाव नहीं कराने की स्थिति में आईओए उसके मामलों को संभालने के लिए आगे आता रहा है।

भाषा नमिता सुधीर

सुधीर

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)