~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
प्रो. डॉ. के.जी सुरेश एक ऐसा नाम – एक ऐसा विराट व्यक्तित्व जिनको जितना जानो, जितना सुनो , जितना गुनो ; उनके व्यक्तित्व कृतित्व की सर्जनात्मकता के प्रति उतनी ही अधिक जिज्ञासा बढ़ती चली जाती है । कोई भी व्यक्ति यदि अपने द्वारा सम्पादित किए जाने वाले कार्यों – विचारों से जाना जाए तो यह उस व्यक्ति की सबसे बड़ी सफलता होती है । ईश्वर कई बार मनुष्य को विराट कार्य को सम्पन्न करने का दायित्व देने के लिए भेजता है। इस सन्दर्भ में मैं जब माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के निवर्तमान. कुलगुरु प्रो. डॉ के.जी. सुरेश जी को देखता हूं तो उनके व्यक्तित्व कृतित्व के बहुरंगों से साक्षात्कार कर पाता हूं। एक ऐसा व्यक्तित्व जो अपने कार्यों से अपने विचारों से निरंतर नई लीक बनाता चला गया। अपनी नवोन्मेषी दूरदृष्टि से इतिहास रचता चला गया। मैं उनके जीवन उस दिन के बारे में सोचता हूं । जब वो विश्वविद्यालय के मुखिया के रूप में अंतिम कार्य दिवस के दौरान भी कर्त्तव्यनिष्ठा को संपादित करने में लगे रहे। एक ओर विश्वविद्यालय के लिए कई सारी नई सौगात दे रहे थे तो दूजी ओर विश्वविद्यालय परिवार की भावुकता से साक्षात्कार कर रहे थे। किन्तु फिर भी सहजता- आत्मीयता और मुख पर मृदु मुस्कान। यही उनकी मौलिक विशिष्टता है। उन्हें जब जो कार्य सौंपे गए.. उसे उन्होंने एक नया आयाम दिया। नूतन विचारों के साथ मानक बने। चाहे विद्यार्थियों के बीच हों याकि सहकर्मियों के बीच वो सबके चहेते ही बने रहे हैं। मीडिया और मीडिया शिक्षा क्षेत्र के अपने दशकों के अनुभवों को समेटे वो अपनी धुन में सर्वदा गतिमान दिखे।
उनके मुख की कांतिमय दीप्ति और प्रसन्नचित्त आनंदित मुस्कान , सहजता और सरलता के साथ आत्मीयता का अनंत स्त्रोत सदैव उन्हें सबसे विरला बनाता है। वे जहां भी उपस्थित होंगे वहां वैचारिकी के साथ हंसी ठहाकों की गूंज सुनाई ही देती रहेगी। अपने आप में पत्रकारिता के चलते – फिरते विश्वविद्यालय हैं जिनकी पत्रकारिता की शैली, बहुविधीय ज्ञान – विद्वता का लोहा बड़े से बड़े धुरंधर मानते हैं। एक प्रखर वक्ता , राष्ट्रीय विचारों के उद्घोषक और भारतीय संस्कृति के अनुयायी के रूप में उन्होंने अपनी विचारधारा से कभी भी समझौता नहीं किया। श्रेष्ठ कार्यों का सम्पादन और श्रेष्ठ विचारों का प्रवाह उनकी सबसे बड़ी विशिष्टता है। चाहे उनका भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली के महानिदेशक का कार्यकाल हो । याकि दूरदर्शन सहित विविध टेलीविजन चैनलों, प्रिंट मीडिया, न्यूज एजेंसियों का कार्यकाल रहा हो ; उन्होंने अपनी विशिष्ट कार्यशैली से अनेकानेक नवाचार किए हैं। नए आयाम स्थापित किए हैं। इसीलिए लोग कहते हैं कि ये – के. जी सुरेश स्टाइल है। यह इसी का सुफल था कि IIMC के महानिदेशक रहने के दौरान उन्होंने जो नवाचार किए – नई लीक खींची वह एक नए रूप में सामने आया। इसी वर्ष यानी 2024 में IIMC को डीम्ड यूनिवर्सिटी के रूप में मान्यता मिली। आईआईएमसी के महानिदेशक के तौर पर उन्होंने नए पाठ्यक्रम शुरू कराए। नए परिसरों की स्थापना की । पत्रकारिता की शिक्षा के लिए नए द्वार खोले। पत्रकारिता की नई पौध को वटवृक्ष बनने का पथ प्रशस्त किया। उनके कामों का यह क्रम उनकी विशिष्टता के रुप में जाना – पहचाना गया ।
उनकी ओजस्वी वाणी से वक्तृत्वता के नि:सृत होने वाले विचार निर्झर जीवन की नई राह दिखाने के साथ – साथ ऊर्जा से भर देते हैं। मैंने उन्हें अब तक जैसा जाना समझा है । उसके लिए शब्द कम हैं। भाव ज्यादा हैं। सार संक्षेप में कहूं तो उनमें किसी भी प्रकार का अहं और वहम नहीं है। सबको साथ लेकर चलना – सबके लिए अच्छा करना और सबको प्रसन्नचित्त कर देना , उनकी मौलिक विशिष्टता है। वो चाहे बहुभाषा मर्मज्ञ के रूप में हों, चाहे प्रखर वक्ता हों , चाहे प्रखर पत्रकार हों – अपने प्रत्येक कार्य क्षेत्र में उन्होंने कई मील के पत्थर स्थापित किए हैं । अनेकानेक पुरस्कार से पुरस्कृत – बहुप्रशंसित – सबके निकट आत्मीयता का बोध लिए रहने वाले वो अपनी सहजता के साथ सचमुच में विरले हैं।
एक कुशल नेतृत्वकर्ता और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के मुखिया के रूप में उन्होंने एक बड़ी लकीर खींची है। उन्होंने विश्वविद्यालय को एक संस्था के रूप में नहीं अपितु एक परिवार के रूप में संवारा।चाहे बात विश्वविद्यालय के परिसर के भवनों के नामकरण की हो । याकि भारतीय मूल्यों की प्रस्थापना के लिए प्रख्यात विषय विशेषज्ञों की व्याख्यानमालाओं, कार्यशालाओं का सतत् आयोजन हो । इन सबमें भारतीयता की पताका लहराती हुई दिखती रही है। उनके नेतृत्व में ही विश्वविद्यालय ने 32 वर्षों के इतिहास में पहली बार अपने स्वयं के माखनपुरम परिसर में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के मुख्यातिथ्य में सफल दीक्षांत समारोह का ऐतिहासिक आयोजन सम्पन्न कराया है। साथ ही 16 अगस्त 2024 को विश्वविद्यालय का पहली बार भव्य तौर पर स्थापना दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
उन्होंने मीडिया इंडस्ट्री की मांग को ध्यान में रखते हुए कई बड़े निर्णयों की मूर्तरूप दिया विश्वविद्यालय में — रेडियो कर्मवीर और एमसीयू दर्शन स्टूडियो , सिनेमा अध्ययन विभाग सहित भारतीय भाषा विभाग की स्थापना कराई। एमसीयू के नालंदा भवन में 42 हजार पुस्तकों वाले ग्रन्थालय सहित प्रत्येक विभाग का अपना पुस्तकालय है। एमसीयू का भव्य गणेश शंकर विद्यार्थी सभागार , तानसेन मुक्ताकाश मंच , डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बालक और मां नर्मदा बालिका छात्रावास योग एवं ध्यान के लिए सांदीपनि ध्यान केंद्र और भगवान बिरसा मुण्डा अतिथि गृह हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति को ध्यान में रखकर उन्होंने कई सारे कार्य किए हैं। इसके लिए माखनपुरम् परिसर के भवनों का नामकरण – नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला , महर्षि सांदीपनि और पाक अधिकृत कश्मीर स्थित शारदा पीठ के रूप में किया। उन्होंने एमसीयू में देश भर में सबसे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू कराया। राष्ट्रीयता के मूल्यों को शिक्षा का ध्येय बनाया ।
आगे शोध और भारतीय ज्ञान परंपरा की स्थापना हेतु उनके नेतृत्व में विशेष दल (टॉस्कफोर्स) बनाया गया । यहां भरत मुनि शोध पीठ की स्थापना के साथ ही विश्वविद्यालय के नर्मदा पुस्तकालय के अंदर ही देवऋषि नारद भारतीय ज्ञान खंड स्थापित किया गया। जहां केवल भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ा हुआ साहित्य उपलब्ध है। साथ ही उन्होंने एक नवाचार करते हुए विश्वविद्यालय के अकादमिक कैलेण्डर में गुरु पूर्णिमा को भी शामिल कराया।इसके अतिरिक्त देवर्षि नारद जयंती, नववर्ष प्रतिप्रदा जैसे कार्यक्रम भी विश्वविद्यालय के अकादमिक सत्र के हिस्से हैं।उन्होंने जो संकल्प लिया उसे टीम स्प्रिट के साथ साकार किया। नए मानक गढ़े लेकिन किसी भी प्रकार के अहं का बोध नहीं पाला। उनके श्रेष्ठ नेतृत्व का ही सुफल था कि इंडिया टुडे , द वीक जैसी पत्रिकाओं ने एमसीयू को देश के सर्वश्रेष्ठ 10 मीडिया शिक्षण संस्थानों में शामिल किया। जो अपने एमसीयू के इतिहास में पहली बार हुआ ।
इसके अतिरिक्त उनकी विजनरी दूरदृष्टि और प्रशासनिक दक्षता के भी कई सारे प्रतिमान सबके सामने हैं। उनके कार्यकाल में ही एमसीयू पुराने महाराणा प्रताप नगर कैंपस से 50 एकड़ क्षेत्र वाले भव्य परिसर में शिफ्ट हुआ। इसका नामकरण दादा माखनलाल के नाम पर माखनपुरम् किया गया। विश्वविद्यालय के रीवा परिसर को तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने बंद करने का निर्णय किया था। किन्तु उन्होंने अपने कार्यकाल में रीवा परिसर को पुनर्स्थापित कराया। दतिया शहर के अंदर विश्वविद्यालय परिसर की स्थापना के साथ ही दादा माखनलाल की कर्मभूमि खंडवा में तीसरे परिसर की स्थापना के लिए कार्य का शुभारम्भ कराया है। प्रो. सुरेश ने MCU में शोध की दृष्टि को विस्तार देने के लिए पीएचडी की प्रक्रिया को गतिशीलता दी। अपने 4 वर्षों के कार्यकाल में पीएचडी की 36 उपाधियां प्रदान करने का कीर्तिमान बनाया। जबकि इसके पहले विश्वविद्यालय में केवल दो विषयों मीडिया अध्ययनऔर कंप्यूटर अनुप्रयोग विषय में पीएचडी उपाधि प्रदान की जाती थी। किन्तु प्रो. सुरेश ने निर्णय लिया कि इसके अतिरिक्त पांच और विषयों में पीएचडी की उपाधि प्रदान की जाएंगी। इसके लिए जनसंचार, नवीन मीडिया प्रौद्योगिकी, मीडिया प्रबंधन, कंप्यूटर अनुप्रयोग एवं पुस्तकालय और सूचना विज्ञान जैसे पांच विषयों को शामिल किया गया।
उनके नेतृत्व में ही एमसीयू में सिनेमा अध्ययन और भाषा विभाग के शुभारम्भ का अनूठा कार्य किया। समय के साथ बदलावों को ध्यान में रखकर एमसीयू में प्रो.सुरेश ने – भाषा , अनुवाद, प्रौद्योगिकी शिक्षा के नवीन पाठ्यक्रम प्रारम्भ कराए। इसके साथ ही सिंधी और मराठी में पत्रकारिता के पाठ्यक्रम शुरू करने की तैयारी पूरी की । विश्वविद्यालय के नवीन परिसर में विद्यार्थियों की सुविधा के लिए जिम. एटीएम, मोबाइल टॉवर की स्थापना परिसर में ई-रिक्शा सुविधाओं को विस्तार दिया। फिर चाहे बात चित्रभारती राष्ट्रीय लघु फिल्मोत्सव और नीति आयोग के साथ मिलकर जी- 20 यूथ कनेक्ट जैसे आयोजन शुरू करने की हो। याकि यूएस कॉन्सुलेट जनरल मुंबई के द्वारा मध्यभारत के एक मात्र मौसम केन्द्र को एमसीयू में स्थापित करने की हो। प्रो. के.जी. सुरेश ने हर नवाचार किए। नई स्थापनाएं की। समय-समय पर दादा माखनलाल की बगिया में जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश के अधिकारियों का प्रशिक्षण भी कराया। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय के संबद्ध संस्थानों में दादा माखनलाल की प्रतिमा रखना अनिवार्य किया। उन्हें विश्वविद्यालय की मुख्य धारा से जोड़ा। प्रशिक्षण कराया। साथ ही पत्रकारों के लिए भी प्रशिक्षण की कार्यशालाएं और सांध्यकालीन पाठ्यक्रमों को भी नव आयाम दिया।
प्रो. डॉ . केजी सुरेश के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु ( कुलपति) के कार्यकाल की कई उपलब्धियां हैं। यदि यह सवाल करें कि यह सब कैसे संभव हुआ तो उसका स्पष्ट उत्तर है — राष्ट्रनिष्ठा और कर्त्तव्य के प्रति शत प्रतिशत समर्पण। ये सभी उपलब्धियां उनके स्पष्ट दूरदर्शी नेतृत्व की विशद् दृष्टि एवं कार्यान्वयन के प्रति प्रतिबद्धता की परिचायक हैं। इन लक्ष्यों को फलीभूत करने के पीछे प्रो. डॉ. के. जी सुरेश जी 24 × 7 कर्त्तव्यनिष्ठा और समन्वय की दृष्टि ही है। जोकि उनकी नवाचारी , राष्ट्रीय विचार दृष्टि की परिचायक है।
मैंने उन्हें बीत दो ढाई बरस में जितना देखा समझा तो लगा कि – यही कर्त्तव्य निष्ठा है। यही चरैवेति चरैवेति का मन्त्र है। उन्होंने एक ओर एमसीयू के कुशल संचालन के दायित्व बोध का सम्यक निर्वहन किया । तो दूसरी ओर मीडिया और पत्रकारिता, राष्ट्रीय विचारों से सम्बंधित विविध कार्यक्रमों – व्याख्यानमालाओं में देश भर में निरन्तर अपनी भूमिका सुनिश्चित करते रहे। वे फिर जैसे ही भोपाल आए पुनश्च अथक-अविराम गति के साथ विश्वविद्यालय’ की गति- प्रगति के लिए जुट गए। मैंने उन्हें कुलपति कार्यालय में प्रातः 10 – 11बजे से रात्रि दस बजे तक भी विश्वविद्यालय के काम करते देखा। उन्होंने सच्चे अर्थों में दादा माखनलाल चतुर्वेदी की इस बगिया में ‘पुष्प की अभिलाषा’ को साकार रुप दिया। इसके लिए नित निरन्तर – नूतन नवाचारों के साथ सम्पूर्ण मनोयोग से कर्म आराधना में तल्लीन रहे आए। उनकी यह कर्मनिष्ठा सभी के लिए प्रेरणा और जीवन का दिशाबोध प्रदान करने वाली है। दृष्टि-दृष्टिकोण एवं दृष्टांत’ की त्रयी के अनूठे समन्वय से उन्होंने पत्रकारिता जगत में विशिष्ट कार्यों को मूर्तरूप देकर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इसके साथ ही न जाने कितने विद्यार्थियों को पत्रकारिता के भारतीय मूल्यों का समृद्ध संस्कार दिया। पत्रकारिता की उस पीढ़ी को तैयार किया जिसका स्वप्न हमारे पत्रकारिता के पुरखे देखा करते थे। इसका क्रम अबाध रूप से निरंतर जारी है । वे अपने ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ के मूल स्वभाव के साथ अपने दायित्वों को निभाने में सतत् गतिशील हैं और नई पीढ़ी का मार्गदर्शन कर रहे हैं ।
प्रो. डॉ. केजी सुरेश के विराट व्यक्तित्व की अपनी एक विशिष्टता यह भी है कि — वो जिस किसी से मिले, हर व्यक्ति ने उन्हें अपना पाया। वो सबके बीच सहज और आत्मीयता के रंग से सराबोर मिले। रंच मात्र भी अपने कार्य के प्रति अभिमान नहीं किन्तु ‘विचार’ के प्रति स्वाभिमान का उन्नत मस्तक। भारतीय ज्ञान परम्परा में हमारे ‘गुरुओं’ ने अपनी शिक्षा एवं संस्कारों से समृद्ध सशक्त भविष्य की नींव डाली है।फिर इसी आर्ष परम्परा के ज्ञान से पोषित -पल्लवित शिष्यों ने चहुंओर प्रकाश रश्मियों को बिखेरा है। हम उनमें उसी गुरु परम्परा का आधुनिक प्रतिबिम्ब देख पाते हैं। और जो नई पीढ़ी को ऋग्वेद के मन्त्र —
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नोयथा सदमिद् वृधेअसन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे।। ; को आत्मसात करने का पथ प्रशस्त करते हैं। वास्तव में ऐसे ही पुरुषार्थी नेतृत्वकर्ताओं की देश और समाज को बड़ी आवश्यकता है जो भारत की वर्तमान पीढ़ी को गढ़ने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं..और अपने कार्यों- विचारों से भारतीय मीडिया को नई दिशा देते हुए समाज प्रबोधन को राष्ट्र के महापुरुषों के महनीय संकल्पों को साकार कर रहे हैं ।
~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
( लेखक IBC24 में असिस्टेंट प्रोड्यूसर हैं )