Munshi Premchand: नई दिल्ली। नव हिंदुस्तान के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से एक मुंशी प्रेमचंद की रचना दृष्टि साहित्य के अनेक रूपों में अभिव्यक्त हुई है। चाहे हम बात करें उपन्यास की या कहानी की या फिर नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि, अनेक विधाओं में प्रेमचंद ने साहित्य सृजन किया। आपने जब अपनी हिंदी की पाठ्यपुस्तकों में मुंशी प्रेमचंद को पढ़ा होगा तो आपने उन्हें उपन्यास सम्राट के रूप में पढ़ा होगा।
Munshi Premchand: आप उनको कैसे जानते हैं क्या उनका हुलिया था,घुटनों से जरा नीचे तक पहुँचने वाली मिल की धोती, उसके ऊपर कुर्ता और पैरों में बन्ददार जूते। आप शायद उन्हें प्रेमचंद मानने से इंकार कर दें लेकिन तब भी वही प्रेमचंद था क्योंकि वही हिन्दुस्तान हैं।‘ हिंदी प्रेमियों में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने गोदान,दो बैलों की कथा,नमक का दारोगा जैसी अद्भुत रचना नहीं पढ़ी होगी, और जब भी इन बेहतरीन रचनाओं की बात आती है तो कोई हिंदी साहित्य में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद को कोई कैसे भुल सकता है।
मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन काल में कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की। प्रेमचंद की रचनाओ का जीवंत रूप इसलिए होता था कि वह अपनी प्रत्येक रचना को इतने समर्पित भाव से रचते कि पात्र जीवंत होकर पाठक के ह्रदय में धड़कने लगते थे।
आपको बताते हैं मुंशी प्रेमचंद से जुड़ी कुछ खास बातें
Munshi Premchand: मुंशी प्रेमचंद स्वयं आजीवन जमीन से जुड़े रहे और अपने पात्रों का चयन भी हमेशा परिवेश के अनुसार ही किया। उनके द्वारा रचित पात्र होरी किसानों का प्रतिनिधि चरित्र बन गया। आपको बता दें कि प्रेमचंद हिन्दी के पहले साहित्यकार थे जिन्होंने पश्चिमी पूंजीवादी एवं औद्योगिक सभ्यता के संकट को पहचाना और देश की मूल कृषि संस्कृति तथा भारतीय जीवन के उस दृष्टिकोण की की रक्षा की। सुमित्रानन्दन पंत के शब्दों में अगर देखें तो -प्रेमचंद ने नवीन भारतीयता एवं नवीन राष्ट्रीयता का समुज्ज्वल आदर्श प्रस्तुत कर गांधी जी के समान ही देश का पथ प्रदर्शन किया।