नई दिल्ली : One Nation One Election : मोदी सरकार का बहुप्रतिक्षित वन नेशन वन इलेक्शन बिल लोकसभा में आज पेश कर दिया गया। जिस पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने विचार किया था। बिल को लोकसभा में पेश करने के पक्ष में 269, विरोध में 198 वोट पड़े। बिल को विचार के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी JPC को भेज दिया गया है।
भारी हंगामे के बीच मंगलवार को सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया। लेकिन इसे पारित करा पाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर नजर आ रहा है। दरअसल संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने के लिए दोनों सदनों में सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत होना चाहिए, लेकिन सरकार के सामने दिक्कत ये है कि संसद में NDA यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है।
One Nation One Election : लोकसभा का गणित समझें तो यहां की कुल 543 सीटों में से एनडीए के पास अभी 292 सीटें हैं, जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए 362 का आंकड़ा जरूरी है। वहीं राज्यसभा की 245 सीटों में से एनडीए के पास अभी 112 सीटें हैं, साथ ही 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन है। इस लिहाज से एनडीए के पास कुल सीटें 118 हो जाती हैं। जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटों की दरकार है, जो दो तिहाई बहुमत से 46 कम है। वहीं विपक्ष के पास 85 सीटें हैं। सरकार को इन्हीं 85 सदस्यों में से 46 वोटों को अपने पाले में लाने की चुनौती है।
जो जाहिर तौर पर काफी कठिन है। हालांकि सरकार वन नेशन वन इलेक्शन बिल को देश के लिए जरूरी बताते हुए इसे पास करा लेने का भरोसा दिला रही है। लेकिन विपक्षी नेताओं को सरकार की ये दलील रास नहीं आ रही है और उन्होंने इस बिल को क्षेत्रीय दलों को खत्म करने की साजिश करार दिया है।
विपक्षी नेताओं के इन तेवरों को देखते हुए सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं आ रही है। दो तिहाई बहुमत हासिल करने की चुनौती के चलते केंद्र सरकार ने बिल पर आम सहमति बनाने का रास्ता चुना है और इसी मकसद के चलते सरकार ने इसे विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने का फैसला किया है। इस बिल के भविष्य को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के अपने-अपने दावे हैं।
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One Nation One Election : बहरहाल इस संविधान संशोधन बिल के भविष्य का फैसला तो सदन में होने वाली वोटिंग के बाद ही हो पाएगा लेकिन अगर ये बिल पास हो गया तो ये चुनाव सुधार की दिशा में एक अहम कदम साबित होगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में बनी कमेटी की ओर से राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को साढ़े 18 हजार पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी। जिसमें पूरे देश में एक साथ ही चुनाव कराए जाने से होने वाले फायदों को विस्तार से बताया गया है। कमेटी ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया था। पहले चरण में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव करवा दिए जाने की बात कही गई है। जबकि, दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव करवाए जाएं। नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोकसभा-विधानसभा चुनाव खत्म होने के 100 दिन के भीतर कराए जाने चाहिए।