नई दिल्ली: देश में पांच दशकों में पहली बार लोकसभा स्पीकर के लिए चुनाव हुआ और ओम बिरला एक बार फिर स्पीकर चुन लिए गए। नंबर गेम के लिहाज से बिरला की जीत तय थी, लेकिन विपक्ष ने भी अपने तेवरों से सत्तापक्ष को सियासी संदेश दे दिया। जाहिर है मोदी 3.0 की सदन में शुरुआत गरमागमी के साथ रही, पिछले दो कार्यकाल में विपक्ष संख्या बल के सामने कुछ दबा सा रहता था लेकिन इस बार पहले अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर ताल ठोकी, फिर राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बनकर सामने खड़े हो गए तो सत्तारूढ़ दल ने भी अपने पहले ही प्रस्ताव में आपातकाल को कटघरे में ला खड़ा किया। कुल मिलाकर देश में सियासत का नया अंदाज दिखने को मिल रहा है, जिसमें तल्खी है, तनाव है, टकराव है और जोखिम भी।
18वीं लोकसभा के लिए ओम बिरला एक बार फिर से अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा, विपक्ष की ओर से के सुरेश के नाम का प्रस्ताव रखा गया। इसके बाद प्रोटेम स्पीकर ने ये प्रस्ताव सदन के सामने रखे, फिर ध्वनिमत से उन्होंने ओम बिरला को लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने के लिए आमंत्रित किया। ओम बिरला को आसन तक ले जाने के लिए पीएम मोदी और संसदीय कार्यमंत्री के साथ ही नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी साथ आए। पीएम मोदी ने कहा कि लगातार दूसरी बार स्पीकर का पद संभालना अपने आप में रिकॉर्ड है। राहुल गांधी ने भी ओम बिरला को बधाई देते हुए कहा कि विपक्ष की आवाज भी सदन में सुनाई देनी चाहिए।
इधर कई विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष से निष्पक्षता के साथ सदन चलाने का अनुरोध किया।स्पीकर बनते ही ओम बिरला ने सदन में इमरजेंसी की निंदा की, बिरला ने कहा कि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाकर अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान का अपमान किया था। स्पीकर के प्रस्ताव रखते ही पक्ष और विपक्ष के सांसदों ने नारेबाजी शुरू कर दी। स्पीकर ने इमरजेंसी के दौरान जान गंवाने वालों के लिए 2 मिनट का मौन रखने को कहा, सत्ता पक्ष के सांसदों ने मौन रखा, लेकिन विपक्षी सांसद हंगामा करते रहे, तो सदन से बाहर आकर भाजपा के सांसदों ने भी विपक्ष के खिलाफ नारेबाजी की।
भले ही संसद में सत्ता पक्ष ने पहली जंग जीत ली लेकिन विपक्ष के तेवरों से तय है कि इस बार चुनौतियां बड़ी हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में संसद के अंदर नंबरगेम की ये जीत-हार दोनों पक्षों के लिए अहम है। खासकर सियासी मैसेज देने के लिए मैसेज ये है कि पिछले 10 साल की तरह इस बार सरकार की राह आसान नहीं रहने वाली है। इसलिए गठबंधन के दम पर तीसरी बार सत्ता में आई बीजेपी किसी भी कीमत पर विपक्ष को नया मंच नहीं देना चाहती, तो वहीं कांग्रेस भी हर मंच का इस्तेमाल कर ये बताना चाहती है उसका नंबरगेम पिछले दो कार्यकाल के मुकाबले कमजोर नहीं है। तो ये तय है स्पीकर चुनाव से शुरू हुआ ये टकराव तो झांकी है, आगे पूरा संग्राम बाकी है।