दुष्यंत पाराशर/भोपाल: Congress’s focus is on winning the elections विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद कांग्रेस की नजर सहकारी संस्थाओं के चुनाव पर है। 4 चरणों में होने जा रहे इन चुनाव में कांग्रेस अपनी खोई जमीन वापस पाने की उम्मीद कर रही है। कांग्रेस ने चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। सहकारी संस्थाओं से जुड़े 4 बड़े नेताओं की समिति बनाई है। इस चुनाव में कांग्रेस की आगे क्या रणनीति रहने वाली है एक नजर डालते हैं।
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Congress’s focus is on winning the elections मध्यप्रदेश की सियासत में हाशिए पर चल रही कांग्रेस को सहकारी संस्थाओं के चुनाव से बड़ी उम्मीदें हैं। सहकारी क्षेत्र हमेशा से कांग्रेस की ताकत रहा है। किसी दौर में प्राथमिक से लेकर शीर्ष सहकारी समितियों में कांग्रेस के नेता ही अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संचालक हुआ करते थे। हालांकि साल 2013 के बाद परिदृष्य बदल गया और भाजपा का अधिकतर समितियों पर कब्जा हो गया। बात अगर मध्यप्रदेश के सहकारिता चुनाव की करें तो चरणों में सहकारी संस्थाओं के चुनाव संपन्न कराए जाएंगे। ये चुनाव 4543 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के होंगे लगभग 11 साल बाद सहकारी संस्थाओं के चुनाव होने जा रहे हैं। 24 जून से 9 सितंबर के बीच चुनाव की प्रकिया संपन्न् कराई जाएगी। प्रदेश की सहकारी समितियों से 50 लाख किसान जुड़े हैं।
कांग्रेस का इरादा इन समितियों के जरिए किसानों की आवाज बुलंद करने का है। कांग्रेस ने अपने 4 वरिष्ठ नेताओं की समिति बनाई है, जो जिलेवार समिति बनाने और वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपने पर निर्णय लेगी। इसके अलावा कांग्रेस की ये समिति 28 जून को पहली बैठक करेगी। वही कांग्रेस की तैयारियों पर बीजेपी तंज कस रही है। बीजेपी के मुताबिक अगर किसानों की समस्याओं पर ध्यान दिया होता तो आज कांग्रेस का ये हाल ना हुआ होता।
सहकारिता का क्षेत्र किसानों से जुड़ा है, जो अपनी संख्या और वोट की ताकत के बल पर किसी भी पार्टी की किस्मत चमकाने और किसी की उम्मीदों को धूमिल करने का माद्दा रखते हैं। ऐसे में चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस कोई भी इस चुनाव की अहमियत को कम करके नहीं आंक सकती। कांग्रेस की तैयारी और बीजेपी के दबदबे को देखते हुए सहकारी संस्थाओं के चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।