नई दिल्ली। हरिद्वार में 83 साल बाद 12 की जगह 11 साल के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। कुंभ मेला दुनिया भर में किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण है। कुंभ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं।
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मान्यता
इन देव दैत्यों का युद्ध सुधा कुंभ को लेकर 12 दिन तक 12 स्थानों में चला और उन 12 स्थलों में सुधा कुंभ से अमृत छलका जिनमें से चार स्थल मृत्युलोक में है, शेष आठ इस मृत्युलोक में न होकर अन्य लोकों में (स्वर्ग आदि में) माने जाते हैं। 12 वर्ष के मान का देवताओं का बारह दिन होता है। इसीलिए 12वें वर्ष ही सामान्यतया प्रत्येक स्थान में कुंभ पर्व की स्थिति बनती है।
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हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। प्रयाग का कुंभ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्व रखता है। कुंभ का अर्थ है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न है। कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है।
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देवताओं एवं राक्षसों ने समुद्र के मंथन और उसके द्वारा प्रकट होने वाले सभी रत्नों को आपस में बांटने का निर्णय किया। समुद्र के मंथन द्वारा जो सबसे मूल्यवान रत्न निकला वह था अमृत, उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष हुआ।
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असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वह पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। असुरों ने जब गरुड़ से वह पात्र छीनने का प्रयास किया तो उस पात्र में से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं। तभी से प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
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16 hours ago