Bhagwan Jagannath Ki Ganesh Katha: भक्त के लिए गणेशजी बन गए भगवान जगन्नाथ

आखिर भक्त के लिए गणेशजी क्यों बने भगवान जगन्नाथ? काफी रहस्यमयी है ये कथा, आप भी पढ़े..| Bhagwan Jagannath Ki Ganesh Katha

आखिर भक्त के लिए गणेशजी क्यों बने भगवान जगन्नाथ? काफी रहस्यमयी है ये कथा, आप भी पढ़े..| Bhagwan Jagannath Ki Ganesh Katha

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Modified Date: July 4, 2024 / 05:36 PM IST
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Published Date: July 4, 2024 5:36 pm IST

Bhagwan Jagannath Ki Ganesh Katha : जगन्नाथ पुरी का रहस्य आगामी दिनों में पूरे देश में रथ यात्रा का पर्व मनाया जाएगा। इस अवसर पर ओडिशा के जगन्नाथ पुरी से लेकर गुजरात के अहमदाबाद तक धूम देखने को मिलता है। इस अवसर पर देशभर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जा रही है। रथ यात्रा के अवसर पर पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर से भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसके लिए कई महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। वहीं, अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल जगन्नाथ रथ यत्रा में शामिल होने के लिए करीब 30 लाख से अधिक श्रद्धालु पुरी पहुंचेंगे। वहीं रथयात्रा से पहले आज हम बता रहे हैं कि भगवान जगन्नाथ आखिर भक्त के लिए गणेशजी क्यों बने थे? चलिए जानते हैं..

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भक्त के लिए गणेशजी बन गए भगवान जगन्नाथ

कथा के मुताबिक, भगवान ने अपने एक भक्त को श्रीगणेश का अवतार लेकर दर्शन दिए थे। उनकी यह कथा गणेश चतुर्थी के साथ भी जुड़ती है और गणेश पूजा के दौरान पुरी व अन्य पूजा पंडालों में सुनाई भी जाती है।
पुराणों में लिखा है कि कलियुग में भगवान नीलमाधव भक्तों को उनकी इच्छा के अनुसार दर्शन देते हैं। वह भक्तों के बीच ही निवास करेंगे। इसी आधार पर यह कथा कही जाती है। कहते हैं कि 16वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के एक गांव में एक मूर्तिकार गणेश भक्त गणपति भट्ट रहते थे। वह दिन-रात गणपति बप्पा की भक्ति में ही लीन रहते थे। एक समय वह तीर्थ यात्रा पर निकले। इस तरह हर ओर की यात्रा के बाद वह पुरी (ओडिशा) पहुंचे।

यहां भट्ट जी को बहुत निराशा हुई, क्योंकि पुरी में गणेश जी का कोई मंदिर ही नहीं था। ऐसा देखकर वह विचलित हो गए। यह उनकी यात्रा का अंतिम पडाव था और वह इस दौरान अपने ईष्ट गणपति बप्पा के दर्शन करना चाहते थे। वह बप्पा की भक्ति में इतने मग्न थे कि भगवान जगन्नाथ के मंदिर में बिना दर्शन किए ही पुरी की यात्रा छोड़ कर लौटने लगे। इस तरह उनकी चार धाम की यात्रा भी अधूरी हो रही थी। यहां तक कि पुरी में भगवान का महाप्रसाद भी उन्होंने ग्रहण नहीं किया।

वह इसी तरह विचलित होकर लौट रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक ब्राह्मण युवक मिला। उस युवक ने भट्ट जी को इस तरह विचलित हुए देखा तो उसकी वजह पूछने लगा। तब गणेश भक्त ने कहा- मैं यहां अपने प्रभु के दर्शन करने आया था, लेकिन यहां तो उनका कोई भी मंदिर नहीं है। इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं खुद ही यहां एक मंदिर तराशूंगा। इस पर वह ब्राह्मण जोर-जोर से हंसने लगा। फिर उसने कहा, शुभ काम में देरी क्यों? आप यहीं अभी ही गणेश प्रतिमा का निर्माण करना शुरू कीजिए।

गणपति भट्ट ने बनाई गणेश मूर्ति

ब्राह्मण युवक की बात में कुछ ऐसा जादू था कि गणपति भट्ट ने गणेश मूर्ति बनानी शूरू कर दी। वह सबकुछ बनाते हुए जब मूर्ति का चेहरा बनाते तो कभी आंखें गोल हो जातीं, कभी बहुत बड़ी, कभी वह मूर्ति बनाते-बनाते खुद उनके हाथों में बंसी पकड़ा देते थे। वह कई बार कोशिश करके भी जैसी चाहते थे, वैसी प्रतिमा नहीं बना पाते थे। तब ब्राह्मण युवक ने कहा कि, यहां तो गणपति का कोई मंदिर भी नहीं, आप एककाम करिए, ध्यान लगाइए और उस ध्यान में गणपति जा की स्मरण कीजिए, फिर वह ध्यान में जैसे नजर आएं वैसी प्रतिमा बना लीजिए।

गणपति भट्ट को ये विचार अच्छा लगा। उन्होंने ध्यान करना शुरू किया। ध्यान में उन्हें अलग-अलग दृष्य नजर आए। कभी देखते की एक बड़ा चेहरा दिख रहा है, जो उन्हें ही देखकर मुस्कुरा रहा है। फिर वह देखते कि गणेश जी ही बांसुरी बजाते नजर आ रहे हैं। कभी उन्हें दिखाई दिया कि दो बड़ी-बड़ी गोल आंखें उन्हें ही देखे जा रही हैं। इसके बाद उन्हें पुरी के श्रीमंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ नजर आए। अब गणपति भट्ट बहुत परेशान हुए, जो उन्होंने देखा था उसका वर्णन वह कर ही नहीं पा रहे थे, मूर्ति बनाना तो दूर की बात थी।

Bhagwan Jagannath Ki Ganesh Katha

तब ब्राह्मण युवक ने पूछा कि आप ने श्रीमंदिर में जगन्नाथ जी के दर्शन किए थे? गणपति भट्ट बोले, नहीं… जब मुझे पता चला कि यहां गणेश जी विराजमान ही नहीं हैं तो मैं बाहर से ही लौट आया। तब ब्राह्नण ने कहा, अरे! एक बार देख तो लिए होते, हो सकता है आप के गणेशजी भी वहीं मौजूद हों। चलिए दर्शन करके आते हैं। ब्राह्मण के समझाने पर गणपति भट्ट राजी हो गए और फिर से मंदिर की ओर चले। उस दिन ‘अनासरा विधि’ थी। भगवान को मंदिर से बाहर स्नान प्रांगण में लाया जाता है और फिर स्नान कराया जाता है। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को जब गर्मी की अधिकता होती है तो उस दिन देव प्रतिमाओं को 108 घड़े के जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद तीनों देवता बीमार पड़ जाते हैं और फिर वह एकांतवास में चले जाते हैं।

स्नान के ठीक बाद सूती के मलमल कपड़े से उन्हें पोछा जाता है, और उन्हें मलमल के कपड़े में लपेटा जाता है ताकि शरीर से पानी सूख जाए। इस दौरान कपड़ा लपेटते हुए चेहरे पर नाक से होते हुए ऐसे लपेटा जाता है कि जैसे वह हाथी की सूंड हो। यही प्रभु जगन्नाथ का गजानन वेश है। जब गणपति भट्ट श्रीमंदिर पहुंचे तो उन्होंने यही दृश्य देखा और खुशी के मारे चिल्ला पड़े मेरे गणेश जी तो यही हैं। यहां मंदिर में विराजमान हैं। जगन्नाथ प्रभु में उन्हें अपने ईष्ट के दर्शन हो गए। फिर वह जब ब्राह्मण युवक से अपनी खुशी जाहिर करने के लिए मुड़ तो देखा वहां कोई नहीं था, कहते हैं कि अपने सच्चे श्रद्धालु की भक्ति देखकर भगवान जगन्नाथ खुद उनके मन का भ्रम दूर करने आए थे। भगवान जगन्नाथ के गजवेश के दर्शन से आनंद मिलता है और इसके बाद ही वह 15 दिनों तक किसी को दर्शन नहीं देते हैं। वह एकांत वास में चले जाते हैं।

 

 

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