Bhagwan Shiv Ke 11-Rudra Avatar : कौन-से हैं भगवान शिव के 11 रुद्र रूप? वेद-पुराणों में वर्णित है नाम, केवल ध्यान करने से दूर हो जाते हैं सभी कष्ट

रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है!Bhagwan Shiv Ke Rudra Avatar Ki Katha

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  • Publish Date - July 5, 2024 / 07:52 PM IST,
    Updated On - July 5, 2024 / 08:04 PM IST

नई दिल्ली। Bhagwan Shiv Ke 11-Rudra Avatar : सनातन धर्म में सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती के निमित्त व्रत रख विधि-विधान से पूजा की जाती है। शिव पुराण में निहित है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही सुख और सौभाग्य में भी वृद्धि होती है। अतः साधक सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं।

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रुद्र के 11 रूप की कथा वेदों-पुराणों में वर्णित

Bhagwan Shiv Ke 11-Rudra Avatar : भोलेनाथ के कई रूप हैं, उन्हें कई नामों से जाना जाता है व पूजा जाता है। इसी तरह उनके संहारक स्वरूप को रुद्र कहा गया है। रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। भगवान शिव को स्वयंभू भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है अजन्मा। वह ना आदि हैं और ना अंत। भोलेनाथ को अजन्मा और अविनाशी भी कहा जाता है। भगवान शिव सृष्टि के संहारक हैं। उनके संहारक स्वरूप को रुद्र कहा गया है। रुद्र के 11 रूप की कथा वेदों-पुराणों में वर्णित है।

वहीं, सनातन धर्म में शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंकर जी सौम्य आकृति व रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। वह त्रिदेवों में एक देव हैं, जिन्हें इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। वहीं, तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि शिव अनादि व सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं। आइए जानते हैं उनके 11 नाम।

शम्भु

ब्रह्मविष्णुमहेशानदेवदानवराक्षसाः ।
यस्मात्‌ प्रजज्ञिरे देवास्तं शम्भुं प्रणमाम्यहम्‌ ॥

पिनाकी

क्षमारथसमारूढ़ं ब्रह्मसूत्रसमन्वितम्‌ ।
चतुर्वेदैश्च सहितं पिनाकिनमहं भजे ॥

गिरीश

कैलासशिखरप्रोद्यन्मणिमण्डपमध्यमगः ।
गिरिशो गिरिजाप्राणवल्लभोऽस्तु सदामुदे ॥

स्थाणु

वामांगकृतसंवेशगिरिकन्यासुखावहम्‌ ।
स्थाणुं नमामि शिरसा सर्वदेवनमस्कृतम्‌ ॥

भर्ग

चंद्रावतंसो जटिलस्रिणेत्रोभस्मपांडरः ।
हृदयस्थः सदाभूयाद् भर्गो भयविनाशनः ॥

भव

योगीन्द्रनुतपादाब्जं द्वंद्वातीतं जनाश्रयम्‌ ।
वेदान्तकृतसंचारं भवं तं शरणं भजे ॥

सदाशिव

ब्रह्मा भूत्वासृजंल्लोकं विष्णुर्भूत्वाथ पालयन्‌ ।
रुद्रो भूत्वाहरन्नंते गतिर्मेऽस्तु सदाशिवः ॥

शिव

गायत्री प्रतिपाद्यायाप्योंकारकृतसद्मने ।
कल्याणगुणधाम्नेऽस्तु शिवाय विहितानतिः ॥

हर

आशीविषाहार कृते देवौघप्रणतांघ्रये ।
पिनाकांकितहस्ताय हरायास्तु नमस्कृतः ॥

शर्व

तिसृणां च पुरां हन्ता कृतांतमदभंजनः ।
खड्गपाणिस्तीक्ष्णदंष्ट्रः शर्वाख्योऽस्तु मुदे मम ॥

कपाली

दक्षाध्वरध्वंसकरः कोपयुक्तमुखाम्बुजः ।
शूलपाणिः सुखायास्तु कपाली मे ह्यहर्निशम्‌ ॥

 

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