Santan Saptami Vrat 2024 Shubh Muhurat or Poojan Vidhi

Kab Hai Santan Saptami 2024? : कब रखा जाएगा संतान सप्तमी का व्रत? यहां देखें शुभ मुहूर्त और पूजन की विधि

Kab Hai Santan Saptami 2024? : इस व्रत को हर वर्ष भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष के सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है।

Edited By :   Modified Date:  September 6, 2024 / 10:41 PM IST, Published Date : September 6, 2024/10:41 pm IST

नई दिल्ली। Kab Hai Santan Saptami 2024? : हिन्दू व्रत-त्योहारों में संतान सप्तमी को एक जरूरी व्रत माना जाता है। इसे हर मां नए संतान प्राप्ति के लिए,उसकी तरक्की और उसकी लंबी उम्र के लिए करती हैं। इस व्रत को हर वर्ष भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष के सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है। कई लोग इसे मुक्ताभरण व्रत और ललिता सप्तमी व्रत के नाम से भी जानते हैं। संतान सप्तमी के दिन भगवान सूर्य और शंकर-पार्वती की पूजा की जाती है।

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कब है संतान सप्तमी?

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद की सप्तमी तिथि 09 सितंबर को रात 09 बजकर 53 मिनट पर प्रारंभ होगी और 10 सितंबर को रात 11 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी। संतान सप्तमी 10 सितंबर 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी।

संतान सप्तमी व्रत विधि (Santan Saptami Vrat Vidhi)

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर माता-पिता संतान प्राप्ति के लिए अथवा उनके उज्जवल भविष्य के लिए इस व्रत का प्रारंभ करते हैं।

यह व्रत की पूजा दोपहर तक पूरी कर ली जाये, तो अच्छा माना जाता हैं।

प्रातः स्नान कर, स्वच्छ कपड़े पहनकर विष्णु, शिव पार्वती की पूजा की जाती हैं।

दोपहर के वक्त चौक बनाकर उस पर भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा रखी जाती हैं।

इनकी पूजा कर उन्हें चढ़ाया गया प्रसाद ही ग्रहण किया जाता है, और पूरे दिन व्रत रखा जाता है।

संतान सप्तमी पूजा विधि (Santan Saptami Puja Vidhi)

शिव पार्वती की उस प्रतिमा का स्नान कराकर चन्दन का लेप लगाया जाता हैं। अक्षत, श्री फल (नारियल), सुपारी अर्पण की जाती हैं। दीप प्रज्वलित कर भोग लगाया जाता हैं।

संतान की रक्षा का संकल्प लेकर भगवान शिव को डोरा बांधा जाता हैं।

बाद में इस डोरे को अपनी संतान की कलाई में बाँध दिया जाता हैं।

इस दिन भोग में खीर, पूरी का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। भोग में तुलसी का पत्ता रख उसे जल से तीन बार घुमाकर भगवान के सामने रखा जाता हैं।

परिवार जनों के साथ मिलकर आरती की जाती हैं। भगवान के सामने मस्तक रख उनसे अपने मन की मुराद कही जाती हैं।

बाद में उस भोग को प्रसाद स्वरूप सभी परिवार जनों एवं आस पड़ोस में वितरित किया जाता हैं।

संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat Katha)

पूजा के बाद कथा सुनने का महत्व सभी हिन्दू व्रत में मिलता हैं। संतान सप्तमी व्रत की कथा पति पत्नी साथ मिलकर सुने, तो अधिक प्रभावशाली माना जाता हैं। इस व्रत का उल्लेख श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के सामने किया था। उन्होंने बताया यह व्रत करने का महत्व लोमेश ऋषि ने उनके माता पिता (देवकी वसुदेव) को बताया था। माता देवकी के पुत्रो को कंस ने मार दिया था, जिस कारण माता पिता के जीवन पर संतान शोक का भार था, जिससे उभरने के लिए उन्हें संतान सप्तमी व्रत करने कहा गया।

 

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