Vaikuntha Chaturdashi ki Katha : बैकुंठ चतुर्दशी अर्थात हरिहर मिलन के दिन इन पौराणिक कथाओं को सुनने मात्र से ही मिलेगा बैकुंठ लोक में स्थान | Vaikuntha Chaturdashi ki Katha

Vaikuntha Chaturdashi ki Katha : बैकुंठ चतुर्दशी अर्थात हरिहर मिलन के दिन इन पौराणिक कथाओं को सुनने मात्र से ही मिलेगा बैकुंठ लोक में स्थान

On the day of Baikunth Chaturdashi i.e. Harihar Milan, you will get a place in Baikunth Lok by just listening to these mythological stories

Edited By :   Modified Date:  November 13, 2024 / 01:13 PM IST, Published Date : November 13, 2024/1:13 pm IST

Vaikuntha Chaturdashi ki Katha : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विष्णुजी और शिवजी की पूजा करने से साधक को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। अंत के समय में भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में स्थान मिलता है और इस दिन दान-पुण्य के कार्यों से दस यज्ञों के समान पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। वैकुण्ठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन कहा जाता हैं अर्थात भगवान शिव और विष्णु का मिलन।विष्णु एवं शिव के उपासक इस दिन को बहुत उत्साह से मनाते हैं।

Vaikuntha Chaturdashi ki Katha : आईये यहाँ सुनें और पढ़ें ये तीन पौराणिक कथाएं

पौराणिक कथा 1
एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहाँ मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने 1000 (एक हजार) स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।

भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए 1000 कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे कमल नयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आँख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए।

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विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- हे प्रिय विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब वैकुण्ठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।

भगवान शिव ने इसी वैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान किया। शिवजी तथा विष्णुजी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा।

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पौराणिक कथा 2
एक बार की बात है नारद जी पृथ्वी लोक से घूम कर वैकुण्ठ धाम पहुँचते हैं। भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते हैं और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते हैं।

नारद जी कहते है- हे प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है। इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं। जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं। इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें।

Vaikuntha Chaturdashi ki Katha

यह सुनकर भगवान विष्णुजी बोले- हे नारद! मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे।

इसके बाद विष्णु जी अपने वैकुण्ठ के द्वारपाल जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को वैकुण्ठ के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं। भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोड़ा सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा।

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पौराणिक कथा 3
धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था, उसके ऊपर कई पाप थे। एक दिन वह गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया, उस दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी थी। कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आए थे, उस भीड़ में धनेश्वर भी उन सभी के साथ था। इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पुण्य मिला। जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गए और नरक में भेज दिया।

तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालुओं के पुण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गए इसलिए इसे वैकुंठ धाम मिलेगा। अत: धनेश्वर को वैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।

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