Today, on third day of Chhath festival, Arghya will be offered to the setting sun, know the method of worship

Chhat Puja 2024: छठ पर्व के तीसरे दिन आज दिया जाएगा डूबते सूर्य को अर्घ्य, जानिए पूजा विधि और संध्या अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त

छठ पर्व के तीसरे दिन आज दिया जाएगा डूबते सूर्य को अर्घ्य, Today, on third day of Chhath festival, Arghya will be offered to the setting sun, know the method of worship

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Modified Date: November 7, 2024 / 11:21 AM IST
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Published Date: November 7, 2024 7:19 am IST

नई दिल्लीः दीपावली के छह दिन बाद छठ पर्व मनाया जाता है। चार दिवसीय पर्व सूर्यदेव और छठी मैया को समर्पित होता है। छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्व माना गया है। छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन नहाय-खाय से होती है। यह त्योहार 4 दिनों तक चलता है। छठ पूजा के दूसरे दिन खरना का परंपरा भाई जाती है। छठ के तीसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है। इस साल गुरुवार की शाम व्रती महिलाएं डूबते (अस्ताचल गामी) सूर्य को अर्घ्य देंगी और शुक्रवार सुबह उगते सूर्य की उपासना की जाएगी। व्रती महिलाओं ने छठ पूजा की तैयारी पूरी कर ली। वहीं घाटों और जलाशयों पर भी सभी इंतजाम पूरे कर लिए गए हैं।

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संध्या अर्घ्य का समय 2024

पंचांग के अनुसार, आज यानी 7 नवंबर को सूर्योदय सुबह 6:42 बजे होगा। वहीं, सूर्यास्त शाम 5:48 बजे होगा। इस दिन भक्त कमर तक पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। ऐसे में छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्य को अर्घ्य देने के लिए शाम 5 बजकर 29 मिनट तक का समय रहेगा।

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छठ पूजा की व्रत कथा (Chhath puja ki katha hindi mein)

छठ पूजा से जुड़ी एक पौराणिक कथा राजा प्रियव्रत से जुड़ी हुई मिलती है। इस कथा के अनुसार, किसी राज्य में प्रियव्रत नाम का एक राजा हुआ करता था। राजा और उनकी पत्नी मालिनी हमेशा परेशान रहते थे, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए बहुत से उपाय किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और वे नि:संतान रहे। एक बार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी संतान प्राप्ति की कामना के लिए महर्षि कश्यप के पास गए और बोले, हे महर्षि! हमारी कोई संतान नहीं है। कृप्या हमें संतान प्राप्ति के लिए कोई कारगर उपाय बताइए।

राजा प्रियव्रत का दुख सुनने के बाद महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए राजा के यहां भव्य यज्ञ का आयोजन करवाया। महर्षि कश्यप ने यज्ञ आहुति के लिए खीब बनवाने का आदेश दिया। फिर महर्षि कश्यप आहुति के लिए बनाई गई खीर को राजा प्रियव्रत की पत्नी मालिनी को खिलाने के लिए कहा। राजा ने अपनी पत्नी को वो खीर खिला दी।उस खीरर के प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई। फिर 9 महीने बाद रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। यह देख राजा और उनकी पत्नी और अधिक दुखी हो गए। इसके बाज राजा प्रियव्रत अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में आत्महत्या का प्रयास करने लगे।

उसी समय श्मशान में एक देवी प्रकट हुईं। देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्मा की पुत्री देवसेना हूं और सृष्टि की मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने की वजह से मुझे षष्ठी कहा जाता है। मुझे अपनी चिंता की वजह बताओ। राजा ने सारी कहानी बताई। राजा का दुख सुनने के बाद षष्ठी देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि अगर तुम विधिपूर्वक मेरी पूजा करोगे और दूसरों को भी मेरी पूजा के लिए प्रेरित करोगे तो मैं तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्ति का वरदान दूंगी।

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राजा को हुई पुत्र की प्राप्ति

देवी के आदेश के अनुसार, राजा ने कार्तिक मास के शुक्ल की षष्ठी तिथि को व्रत रखा और विधि-पूर्वक षष्ठी देवी की पूजा की। साथ ही अपनी प्रजा को भी देवी षष्ठी पूजन करने के लिए प्रेरित किया। षष्ठी देवी की पूजा के फलस्वरूप राजा की पत्नी रानी मालिनी एक बार फिर गर्भवती हुई और 9 महीने बाद उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद से ही कार्तिक मास के शुक्ल की षष्ठी तिथि को छठ पूजा और व्रत की शुरुआत हुई।

कर्ण ने भी सूर्यदेव को दिया था अर्घ्य

धर्म ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में माता कुंती के पुत्र दानवीर कर्ण ने भी सूर्यदेव को जल अर्घ्य दिया था। कर्ण को माता कुंती के अलावा, सूर्यदेव का पुत्र भी माना जाता है। सूर्य देव की दानवीर कर्ण पर विशेष कृपा थी। ऐसा कहा जाता है कि कर्ण रोजाना सुबह उठकर घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बन गए थे। इसके अलावा, छठ पर्व से जुड़ी एक और कथा का पुराणों में उल्लेख मिलता है। इस कथा के अनुसार, महाभारत में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए के खेल में हार बैठे थे, तब द्रौपदी ने भी छठ व्रत रखा था। द्रौपदी के व्रत और पूजा से प्रसन्न होकर षष्ठी मैया ने पांडवों को उनका राज्य वापस लौटा दिया था।

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