Rishi Panchami Shubh Muhurat and Vrat Katha

Rishi Panchami Shubh Muhurat : आज है ऋषि पंचमी..महिलाएं करेंगी सप्तऋषियों की पूजा, यहां देखें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Rishi Panchami Shubh Muhurat : ऋषिपंचमी का त्यौहार हिन्दू पंचांग के भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाया जाता है।

Edited By :   Modified Date:  September 8, 2024 / 08:59 AM IST, Published Date : September 8, 2024/8:59 am IST

नई दिल्ली। Rishi Panchami Shubh Muhurat : ऋषिपंचमी का त्यौहार हिन्दू पंचांग के भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाया जाता है। यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। इस त्यौहार में सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया जाता है। सुहागिन महिलाएं हर साल सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विधि-विधान से पूजा करती है। ऐसी मान्यता है कि ऋषि पंचमी का व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा वैवाहिक जीवन खुशहाली से भर जाता है।

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Rishi Panchami Shubh Muhurat : ऋषि पंचमी के दिन सप्त ऋषियों कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, गौतम, जमदग्नि, और विश्वामित्र की पूजा की जाती है। ये सात ऋषि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश माने जाते हैं। ये ही वेदों और धर्मशास्त्रों के रचयिता हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है।

ऋषि पंचमी तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 7 सितंबर को शाम 05 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी और 8 सितंबर को शाम 07 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के चलते ऋषि पंचमी का व्रत 8 सितंबर यानी आज रखा जाएगा।

ऋषि पंचमी की पूजन विधि

ऋषि पंचमी के दिन सवेरे स्नानादि के बाद साफ-सुथरे और हल्के पीले रंग के वस्‍त्र पहनें। फिर एक लकड़ी की चौकी पर सप्त ऋषियों की फोटो या प्रतिमा रखें। इस चौकी के साथ जल से भरा एक कलश भी रखें। सप्‍त ऋषि को धूप, दीप, फल, फूल मिठाई और नैवेद्यादि अर्पित करें। इसके बाद सप्त ऋषियों से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें और दूसरों की मदद करने का संकल्प लें। आखिर में सप्त ऋषियों की आरती उतारें और व्रत कथा सुनें। फिर ऋषियों को लगाए गए भोग को प्रसाद के रूप में वितरित करें। इसके बाद अपने बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।

ऋषि पंचमी व्रत कथा

प्राचीन समय में विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सर्वगुण संपन्न ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण की पत्नी सुशीला बेहद ही पतिव्रता थी। इस ब्राह्मण दंपति का एक पुत्र और एक पुत्री थी। बेटी का विवाह तो हुआ लेकिन कुछ ही समय में वो विधवा हो गई। इस बात से दुखी ब्राह्मण दंपत्ति अपनी बेटी के साथ गंगा के तट पर चले गए और वहीं वो एक कुटिया बनाकर रहने लगे।

एक दिन की बात है, जब ब्राह्मण की पुत्री सो रही थी तभी उसका शरीर कीड़ों से भर गया। बेटी की ऐसी हालत देखकर ब्राह्मण की पत्नी हैरान-परेशान होकर अपने पति के पास पहुंची और उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है? अपनी पुत्री की इस समस्या का हल खोजने के लिए जैसे ही उत्तंक समाधि में बैठे उन्हें पता चला कि पूर्व जन्म में भी वह कन्या उनकी ही पुत्री थी और उसने रजस्वला होते ही बर्तन छू लिए थे।

इसके अलावा उसने इस जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया और इन्ही सब वजहों से सके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं। ऐसे में सभी ने यह निर्णय किया कि पुत्री से ऋषि पंचमी का व्रत कराया जाए, जिससे उसे अगले जन्म में अटल सौभाग्यशाली होने का वरदान प्राप्त हो।

 

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