Jaya Parvati Vrat will get the blessings of Saubhagyavati : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से जया पार्वती व्रत शुरू होता है जो कि पांच दिन तक चलता है। इस व्रत के दौरान नमक का भोजन खाना वर्जित होता है। जया पार्वती व्रत से जुड़ी कथा कुछ इस प्रकार है कि एक ब्राह्मण जोड़ा था, जो कि भगवान शिव का परम भक्त था। उनकी जिंदगी में सब कुछ था लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। वे हर दिन मंदिर में जाकर पूर्ण निष्ठा और भक्ति के साथ भगवान शिव की पूजा किया करते थे। भगवान शिव इस जोड़े की भक्ति से प्रसन्न थे और एक दिन आकाशवाणी हुई कि मेरा शिवलिंग जंगल में एक निश्चित स्थान पर है। जिसकी कोई भी पूजा नहीं करता। अगर तुम वहां जाते हो और उसकी पूजा करते हो, तो तुम्हारी इच्छा पूरी होगी।
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ब्राह्मण जोड़ा ये आकाशवाणी सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ। और उसके बाद ब्राह्मण दंपत्ति उस शिवलिंग को ढूंढकर उसकी विधिविधान से पूजा-अर्चना करने लगा। एक दिन ब्राह्मण पूजा के लिए फूल तोड़ने के लिए जंगल में गया। जहां उसे एक सांप ने काट लिया। ब्राह्मण के वापिस ना लौटने पर उसकी पत्नी को चिंता होने लगी और वो उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ी। वो निरंतर अपने पति की सुरक्षा की कामना कर रही थी। भगवान शिव ब्राह्मणी की सच्ची भक्ति को देखकर प्रसन्न हुए और उन्होंने ब्राह्मण को फिर से होश में ला दिया। जिसके बाद ये दोनों फिर से शिवलिंग की पूजा करने लगे और इसके बाद भगवान शिव की कृपा से उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस कथा के अनुसार जो इस व्रत को करता है उसे अखंड सुहाग की प्राप्ति होती है, साथ ही उसके बच्चे का जीवन सुखमय रहता है।
इस व्रत के दौरान नमक रहित भोजन ग्रहण करना चाहिए। वहीं गेहूं से बने उत्पाद और सब्जियां भी नहीं खा सकते। ऐसा व्रत के पहले दिन, घर के पूजा-स्थल में एक छोटे कटोरे या गमले में जवारा रखा जाता है। जिसके बाद जवारा के साथ पूजा की जाती है जिसमें नगला रूई से बनाया जाता है और गमले को सिंदूर से सजाया जाता है। हर सुबह समान परंपराएं निभाई जाती है और ज्वारा को पानी पिलाया जाता है।
Jaya Parvati Vrat will get the blessings of Saubhagyavati : इस व्रत की पूरी पूजा अंतिम दिन माताजी के मंदिर में व्रत तोड़ने पर की जाती है और इस दिन नमक और गेहूं सहित पूर्ण भोजन ग्रहण किया जाता है। व्रत के छठे दिन स्नान करने के बाद गमले में से ज्वारा निकालकर बगीचे में लगा दिया जाता है। इस तरह पूर्ण निष्ठा और भक्ति के साथ जया पार्वती व्रत करने से महिलाओं को अखंड सुहाग और कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। ये व्रत घर-परिवार में खुशियां लेकर आता है।
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– आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें।
– तत्पश्चात व्रत का संकल्प करके माता पार्वती का स्मरण करें।
– घर के मंदिर में शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
– फिर शिव-पार्वती को कुंमकुंम, शतपत्र, कस्तूरी, अष्टगंध और फूल चढ़ाकर पूजा करें।
– तत्श्चात ऋतु फल तथा नारियल, अनार व अन्य सामग्री अर्पित करें।
– अब विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें।
– माता पार्वती का स्मरण करके स्तुति करें।
– फिर मां पार्वती का ध्यान धरकर सुख-सौभाग्य और गृहशांति के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करके अपने द्वारा हुई गलतियों की क्षमा मांगे।
– तत्पश्चात कथा श्रवण करें, कथा के बाद आरती करके पूजन को संपन्न करें।
– अब ब्राह्मण को भोजन करवाएं और इच्छानुसार दक्षिणा देकर उनके चरण छूकर आशीर्वाद लें। अगर बालू रेत का हाथी बनाया है तो रात्रि जागरण के पश्चात उसे नदी या जलाशय में विसर्जित करें।
इस प्रकार पूजा और व्रत करने से संतान सुख प्राप्त होता है।
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