Somvati Amavasya 2024

Somvati Amavasya 2024: इस दिन है साल की आखिरी सोमवती अमावस्या, जानिए क्या है इसका महत्व और स्नान-दान का शुभ मुहूर्त

Somvati Amavasya 2024: इस दिन है साल की आखिरी सोमवती अमावस्या, जानिए क्या है इसका महत्व और स्नान-दान का शुभ मुहूर्त

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Modified Date: December 25, 2024 / 03:42 PM IST
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Published Date: December 25, 2024 3:42 pm IST

Somvati Amavasya 2024: हिंदू धर्म तीज-त्योहारों के साथ ही एकादशी, ग्रहण और अमावस्या का काफी अधिक महत्व होता है। जिसे पूरे नियम के साथ मनाया जाता है। बता दें कि, हर साल 12 अमावस्या होती हैं, जो विशेष रूप से पितरों की पूजा-अर्चना और उनकी शांति के लिए समर्पित होती हैं। सोमवती अमावस्या यानी सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को भगवान शिव के साथ-साथ पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए भी उत्तम माना गया है। इसके अलावा, अमावस्या के दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और पाप से मुक्ति मिलती है। इस साल 30 दिसंबर, 2024 सोमवार को पौष अमावस्या मनाई जाएगी। सोमवार होने के कारण यह सोमवती अमावस्या होगी। तो चलिए जानते हैं इसका शुभ मुहूर्त क्या है।

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स्नान दान का शुभ मुहूर्त

सोमवती अमावस्या की तिथि 30 दिसंबर को सुबह 4 बजकर 01 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 31 दिसंबर को सुबह 3 बजकर 56 मिनट पर होगा। इस दिन स्नान-दान का मुहूर्त सुबह 5 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 19 मिनट तक रहेगा।

पूजा विधि

इस दिन किसी पवित्र नदी, तालाब या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें। गायत्री मंत्र का पाठ करें। इसके बाद भगवान शिव की पूजा करें। पितरों का तर्पण करें और उनके मोक्ष की कामना करें। पूजा-पाठ के बाद किसी जरूरतमंद को भोजन और वस्त्र का दान करें। इस दिन देवी लक्ष्मी का पूजन करना भी शुभ माना जाता है। सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन स्त्रियां पीपल की पूजा करती हैं। सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना करके कमजोर चंद्रमा को बलवान किया जा सकता है।

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सोमवती अमावस्या का महत्व

सोमवती अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले उस दिन से पितृ चालीसा का पाठ करें। पितृ चालीसा का नियमित पाठ करने से पितरों की नाराजगी दूर होती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन विशेष रूप से पितरों के नाम से तर्पण और पिंडदान करना चाहिए, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

 

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