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Sitashtami Yoga: आज बन रहा है ‘सीताष्टमी योग’, मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस विधि से करें सीता माता की पूजा, जाने शुभ मुहूर्त

Sitashtami Yoga: आज बन रहा है 'सीताष्टमी योग', मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस विधि से करें सीता माता की पूजा, जाने शुभ मुहूर्त

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Modified Date: February 14, 2023 / 07:03 AM IST
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Published Date: February 14, 2023 7:03 am IST

Sitashtami Yoga : धर्म। सीता अष्टमी – मनचाहे वर की प्राप्ति – फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता अष्टमी या जानकी जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि आज के दिन ही माता सीता धरती पर प्रकट हुई थीं। इस दिन भगवान राम व सीता की पूजा का विशेष महत्व है। इस साल जानकी जयंती 14 फरवरी (मंगलवार) को मनाई जाएगी। ऐसे में आज सीताष्टमी योग बन रहा है।

सीता अष्टमी का व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए खासा महत्व रखता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सीता अष्टमी के दिन व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती है। साथ ही वैवाहिक जीवन से जुड़ी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं जिन लड़कियों को शादी में बाधा आ रही हो वो भी इस व्रत को रखकर मनचाहे वर की प्राप्ति कर सकती हैं।

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जानकी जयंती का शुभ मुहूर्त-

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 13 फरवरी को दिन 09 बजकर 34 मिनट पर।
अष्टमी तिथि का समापन- 14 फरवरी को दिन 09 बजकर 00 मिनट पर।
उदया तिथि- 14 फरवरी, 2023

सीता अष्टमी के दिन कैसे करें पूजा-

-सीता अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान श्रीराम को प्रणाम कर व्रत करने का संकल्प लें।
-पूजा शुरू करने से पहले पहले गणपति भगवान और माता अंबिका की पूजा करें और उसके बाद माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करें।
-माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और और सोलह श्रृंगार का सामान समर्पित करें।
-माता सीता की पूजा में पीले फूल, पीले वस्त्र ओर सोलह श्रृंगार का समान जरूर चढ़ाना चाहिए।
-भोग में पीली चीजों को चढ़ाएं और उसके बाद मां सीता की आरती करें।
-आरती के बाद श्री जानकी रामाभ्यां नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
-दूध-गुड़ से बने व्यंजन बनाएं और दान करें।
-शाम को पूजा करने के बाद इसी व्यंजन से व्रत खोलें।

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माता सीता के जन्म से जुड़ी कथा-

रामायण में माता सीता को जानकी कहा गया है। माता सीता के पिता का नाम जनक होने के कारण उनका नाम जानकी पड़ा। शास्त्रों में वर्णित है कि सीता माता को जनक जी ने गोद लिया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक बार राजा जनक धरती जोत रहे थे। तब उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई सुंदर कन्या मिली। तब राजा जनक की कोई संतान नहीं थी। राजा जनक जी ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया। अष्टमी का व्रत रखकर सुखद दांपत्य जीवन की कामना की जाती है।

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