Shri Shiv Chalisa : नियमित रूप से शिव चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन से सभी कठिनाइयों और समस्याओं को खत्म करने की क्षमता होती है। शिव चालीसा का पाठ शायद भगवान शिव का आशीर्वाद जल्दी पाने के सर्वोत्तम साधनों में से एक है। शिव चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को कई तरह के लाभ मिल सकते हैं इससे भगवान शिव की कृपा आपके पर बनी रहती है लेकिन इसके साथ ही शिव चालीसा के पाठ करते समय कुछ नियमों का ध्यान रखना भी जरूरी है ताकि आपको इसका पूर्ण फल प्राप्त हो सके ऐसे मैं जानते हैं सब चालीसा से संबंधित कुछ जरूरी नियम..
Shri Shiv Chalisa : शिव चालीसा पाठ के नियम
शिव चालीसा का पाठ कम से कम 3, 5 या 11 बार करना चाहिए और ऐसा आपको लगातार 40 दिनों तक करना है। इसके साथ ही शिव चालीसा का पाठ करते समय तन-मन की स्वच्छता का भी ख्याल रखना चाहिए। शिव चालीसा का पाठ सुर और लयबद्ध में करना चाहिए। इसके साथ ही पाठ करते समय आपका मन एकाग्रचित होना चाहिए और उस दौरान केवल भगवान का ध्यान करें।
Shri Shiv Chalisa : मिलते हैं कई लाभ
– शिव चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं सताता।
– व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है।
– इसके साथ ही भोलेनाथ जी की कृपा से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
– अगर किसी कार्य में रुकावट आ रही है तो कार्य सिद्धि के लिए श्रावण में शिव चालीसा पढ़ें।
– श्रावण में कर्ज से मुक्ति के लिए खास उपाय किया जाता है। इस माह में आप शिव चालीसा पढ़ें आपको अवश्य लाभ होगा।
दूर होती हैं परेशानियां
रोजाना सुबह स्नान आदि से निवृत होने के बाद आसन पर बैठकर 11 बार शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में आ रही परेशानियां समाप्त हो सकती हैं। वहीं, शिव चालीसा का रोजाना पाठ करने से व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार देखने को मिलता है।
इन लोगों के लिए बहुत लाभकारी है शिव चालीसा
माना जाता है कि गर्भवती महिलाओं के शिव चालीसा का पाठ करने से अद्भुत लाभ देखने को मिल सकते हैं। इसके साथ ही अगर कोई व्यक्ति लंबी बीमारी से परेशान है, तो ऐसी स्थिति में भी उसे शिव चालीसा के पाठ से स्वास्थ्य में लाभ देखने को मिल सकता है।
Shri Shiv Chalisa : आईये पढ़ते हैं शिव चालीसा
शिव चालीसा की चालीस शुभ पंक्तियां चमत्कारी हैं। यह पाठ सरल है लेकिन अत्यंत प्रभावशाली है।
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। विघ्न विनाशन मंगल कारण ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
Shri Shiv Chalisa
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तधाम शिवपुर में पावे॥
कहत अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्य नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीस।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
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