Shri Shakambhari Chalisa : रोज़ाना मन से करें माँ शाकम्भरी चालीसा का पाठ एवं स्तुति, जीवन भर धन और सुख समृद्धि से भरा रहेगा भंडार | Shri Shakambhari Chalisa

Shri Shakambhari Chalisa : रोज़ाना मन से करें माँ शाकम्भरी चालीसा का पाठ एवं स्तुति, जीवन भर धन और सुख समृद्धि से भरा रहेगा भंडार

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Modified Date: August 13, 2024 / 06:09 PM IST
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Published Date: August 13, 2024 5:58 pm IST

Shri Shakambhari Chalisa : शाकम्भरी देवी माँ आदिशक्ति जगदम्बा का एक सौम्य अवतार हैं। कहीं इन्हें चार भुजाधारी तो कहीं अष्टभुजाओं वाली देवी के रूप में दिखाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आदिशक्ति ने अयोनिजा रूप में ‘शताक्षी’ अवतार ग्रहण किया था। शताक्षी यानी सौ नेत्रों वाली देवी ही शाकम्भरी हैं। दानवों के अत्याचार से वर्षों तक सूखा व अकाल देखकर मां देवी की हजारों आंखों से आंसुओं की बारिश हुई, जिससे फिर से सृष्टि पर हरियाली छा गई। इस वजह से माता का नाम शताक्षी पड़ा। देवी ने अपनी शक्तियों से कई प्रकार की शाक, फल व वनस्पतियों को प्रकट किया, जिससे देवी का नाम शाकंभरी भी पड़ा ।

Shri Shakambhari Chalisa : यहाँ पढ़ें मां शाकंभरी देवी की दिव्या स्तुति

मां ब्रह्माणी नमो नमः
हे रुद्राणी नमो नमः
सकराय वासिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

मात शताक्षी नमो नमः
दुर्गम विनाशी नमो नमः
हे सुख-राशि नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
संकट हारिणि नमो नमः
कष्ट निवारिणी नमो नमः
मां भव तारिणी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

हे जग जननी नमो नमः
कामना पूर्णि नमो नमः
सौम्य रूपणी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

हे परमेश्वरी नमो नमः
त्रिपुर सुंदरी नमो नमः
हे विश्वेश्वरि नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
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दुर्गा रूपेण नमो नमः
लक्ष्मी रूपेण नमो नमः
विद्या रूपेण नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

भुवन वंदिनी नमो नमः
द्वारा निकन्दनी नमो नमः
सिंह वाहिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

शक्ति-स्वरूपा नमो नमः
हे भव-भूपा नमो नमः
अनन्त अनूपा नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

अति सुख दायिनी नमो नमः
करुणा नयनी नमो नमः
हे वर दायनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

मंगल करनी नमो नमः
अमंगल हरणी नमो नमः
अभया वरणी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

सुर धाम निवासिनी नमो नमः
हे अविलासिनी नमो नमः
दैत्य विनाशिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

शैल पुत्री नमो नमः
ब्रह्म-चारिणी नमो नमः
चन्द्रघंटा नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

मां कुष्मांडा नमो नमः
स्कन्द माता नमो नमः
हे कात्यायिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते
Shri Shakambhari Chalisa
कालरात्रि नमो नमः
हे महागौरी नमो नमः
सिद्धिदात्री नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

हे करुणामयी नमो नमः
हे ममतामयी नमो नमः
भक्त-वत्सला नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

मां ब्रह्माणी नमो नमः
हे रुद्राणी नमो नमः
सकराय वासिनी नमो नमः
शाकंभरी मां नमोस्तुते

Shri Shakambhari Chalisa : आईये पढ़ें मां शाकंभरी देवी चालीसा

दोहा

दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए।
बाईं ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए।
भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार।
मां शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार।।

चौपाई

जे जे श्री शकुंभारी माता। हर कोई तुमको सिष नवता।।
गणपति सदा पास मई रहते। विघन ओर बढ़ा हर लेते।।
हनुमान पास बलसाली। अगया टुंरी कभी ना ताली।।
मुनि वियास ने कही कहानी। देवी भागवत कथा बखनी।।

छवि आपकी बड़ी निराली। बढ़ा अपने पर ले डाली।।
अखियों मई आ जाता पानी। एसी किरपा करी भवानी।।
रुरू डेतिए ने धीयां लगाया। वार मई सुंदर पुत्रा था पाया।।
दुर्गम नाम पड़ा था उसका। अच्छा कर्म नहीं था जिसका।।

बचपन से था वो अभिमानी। करता रहता था मनमानी।।
योवां की जब पाई अवस्था। सारी तोड़ी धर्म वेवस्था।।
सोचा एक दिन वेद छुपा लूं। हर ब्रममद को दास बना लूं।।
देवी-देवता घबरागे। मेरी सरण मई ही आएगे।।

विष्णु शिव को छोड़ा उसने। ब्रह्माजी को धीयया उसने।।
भोजन छोड़ा फल ना खाया। वायु पीकेर आनंद पाया।।
जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया। संत भाव हो वचन सुनाया।।
चारों वेद भक्ति मई चाहू। महिमा मई जिनकी फेलौ।।

ब्ड ब्रहाम्मा वार दे डाला। चारों वेद को उसने संभाला।।
पाई उसने अमर निसनी। हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी।।
जैसे ही वार पाकर आया। अपना असली रूप दिखाया।।
धर्म धूवजा को लगा मिटाने। अपनी शक्ति लगा बड़ाने।।

बिना वेद ऋषि-मुनि थे डोले। पृथ्वी खाने लगी हिचकोले।।
अंबार ने बरसाए शोले। सब त्राहि-त्राहि थे बोले।।
सागर नदी का सूखा पानी। कला दल-दल कहे कहानी।।
पत्ते बी झड़कर गिरते थे। पासु ओर पाक्सी मरते थे।।

सूरज पतन जलती जाए। पीने का जल कोई ना पाए।।
चंदा ने सीतलता छोड़ी। समाए ने भी मर्यादा तोड़ी।।
सभी डिसाए थे मतियाली। बिखर गई पूज की तली।।
बिना वेद सब ब्रहाम्मद रोए। दुर्बल निर्धन दुख मई खोए।।

बिना ग्रंथ के कैसे पूजन। तड़प रहा था सबका ही मान।।
दुखी देवता धीयां लगाया। विनती सुन प्रगती महामाया।।
मा ने अधभूत दर्श दिखाया। सब नेत्रों से जल बरसाया।।
हर अंग से झरना बहाया। सतची सूभ नाम धराया।।

एक हाथ मई अन्न भरा था। फल भी दूजे हाथ धारा था।।
तीसरे हाथ मई तीर धार लिया। चोथे हाथ मई धनुष कर लिया।।
दुर्गम रक्चाश को फिर मारा। इस भूमि का भार उतरा।।
नदियों को कर दिया समंदर। लगे फूल-फल बाग के अंदर।।

हारे-भरे खेत लहराई। वेद ससत्रा सारे लोटाय।।
मंदिरों मई गूंजी सांख वाडी। हर्षित हुए मुनि जान पड़ी।।
अन्न-धन साक को देने वाली। सकंभारी देवी बलसाली।।
नो दिन खड़ी रही महारानी। सहारनपुर जंगल मई निसनी।।

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