Shiva Aarti : शीश गंग अर्धन्ग पार्वतीसदा विराजत कैलासी.. कल गुरु प्रदोष व्रत के दिन ज़रूर गायें महादेव शिव शंभू की ये प्रिय आरती | Shiva Aarti

Shiva Aarti : शीश गंग अर्धन्ग पार्वतीसदा विराजत कैलासी.. कल गुरु प्रदोष व्रत के दिन ज़रूर गायें महादेव शिव शंभू की ये प्रिय आरती

Sheesh Ganga, half Parvati always resides in Kailasi,, tomorrow on the day of Guru Pradosh Vrat, must sing this favorite Aarti of Mahadev Shiv Shambhu

Edited By :   Modified Date:  November 27, 2024 / 01:50 PM IST, Published Date : November 27, 2024/1:50 pm IST

Shiva Aarti : “देवादिदेव महादेव” भगवान शिव को “कैलाशवासी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया था। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इस पर्वत को रहस्यमयी, गुप्त, और पवित्र माना गया है।इसकी परिक्रमा करना शुभ और कल्याणकारी माना जाता है।

Shiva Aarti : भगवान शिव की आरती करने से होते हैं कई लाभ :

– आरती करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
– आरती करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
– शिव जी की आरती करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है और सकारात्मक बदलाव आते हैं।
– इससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और जीवन में सकारात्मकता आती है।
– शिव जी की आरती करने से जीवन में स्थिरता आती है और संतुलन बनाने में मदद मिलती है।
– इससे भय और चिंता का नाश होता है और मानसिक शांति मिलती है।
– इससे ज्ञान और बुद्धि बढ़ती है और सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
– इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर होती हैं और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
– इससे जीवन में समृद्धि आती है और सुख मिलता है।

Shiva Aarti : आईये यहाँ हम सुनें और गायें महादेव की ये प्रिय आरती

॥ भगवान कैलासवासी आरती ॥
शीश गंग अर्धन्ग पार्वतीसदा विराजत कैलासी।
नन्दी भृन्गी नृत्य करत हैं,धरत ध्यान सुर सुखरासी॥

शीतल मन्द सुगन्ध पवन बहबैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान गन्धर्व सप्त स्वरराग रागिनी मधुरासी॥

यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत,बोलत हैं वनके वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर,भ्रमर करत हैं गुन्जा-सी॥

Shiva Aarti

कल्पद्रुम अरु पारिजात तरुलाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलतकरत दुग्ध की वर्षा-सी॥

सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित,चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभितसेवत सदा प्रकृति-दासी॥

ऋषि-मुनि देव दनुज नित सेवत,गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा-विष्णु निहारत निसिदिनकछु शिव हमकूँ फरमासी॥

Shiva Aarti

ऋद्धि सिद्धिके दाता शंकरनित सत् चित् आनँदराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जातीकठिन काल-यमकी फाँसी॥

त्रिशूलधरजीका नाम निरन्तरप्रेम सहित जो नर गासी।
दूर होय विपदा उस नर कीजन्म-जन्म शिवपद पासी॥

Shiva Aarti

कैलासी काशी के वासीअविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन कोअपनो जान कृपा कीजो॥

तुम तो प्रभुजी सदा दयामयअवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकरकिंकरकी विनती सुनियो॥

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