Purano me Dushkarm ki Saja

Purano me Dushkarm ki Saja: पुराणों में दुष्कर्म के आरोपियों के लिए मृत्युदंड भी छोटा, मिलती है रूह कंपाने वाली सजाएं

Purano me Dushkarm ki Saja: पुराणों में दुष्कर्म के आरोपियों के लिए मृत्युदंड भी छोटा, मिलती है रूह कंपाने वाली सजाएं। Punishment for rape

Edited By :   Modified Date:  August 24, 2024 / 01:21 PM IST, Published Date : August 24, 2024/1:21 pm IST

Purano me Dushkarm ki Saja: देश में इन दिनों बेटियां कहीं सुरक्षित नहीं है। मासूम बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक को हवस का शिकार बनाया जा रहा है। लगातार सामने आ रहे बलात्कार के मामले से देश दहल चुका है। हाल ही में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या के मामले ने सभी को हिला कर रख दिया है। तो वहीं,  महाराष्ट्र के बदलापुर में दो मासूम बच्चियों से स्कूल में  यौन शोषण के मामले ने लोगों का गुस्सा भड़का दिया है। गुस्साए लोग इन मामलों के दोषियों को दरिंदा बताकर उनके लिए फांसी की मांग कर रहे हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पुराणों में बलात्कार के आरोपी को किस प्रकार की सजा देने का विधान था।

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गरुड़ पुराण में दुष्कर्म की सजा

गरुड़ पुराण में बलात्कार को घोर पाप माना गया है। इसके मुताबिक, जो व्यक्ति किसी के साथ दुष्कर्म करता है, उसे मृत्यु के बाद नरक में कठोर और अत्यंत कष्टदायक दंड मिलता है। गरुड़ पुराण में इस तरह के पापियों के लिए विशेष नरकों का वर्णन किया गया है, जहां उन्हें उनके पापों के लिए असहनीय यातनाएं दी जाती हैं। ऐसे पाप करने वालों को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आत्मिक पीड़ा का भी सामना करना पड़ता है। दुष्कर्म के पाप से मुक्ति पाने के लिए कठोर से कठोर तपस्या में भी कोई उपाय नहीं है। गरुड़ पुराण के एक श्लोक में दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति के लिए जो सजा बताई गई है, वह रूह कंपाने वाली है। ये सजा पापी को धरती पर जीते जी तो मिलती ही हैं, साथ ही नरक में भी पापी को यह सजा भुगतनी पड़ती है।

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ताम्रायसि स्त्रीरूपेण संसक्तो यस्य पापवान्।
नरके पच्यते घोरे यावच्चन्द्रदिवाकरौ॥

इस श्लोक का आशय है कि, ‘दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति का दंड बहुत भीषण है। उसे ताम्र (तप्त लोहे) की स्त्री प्रतिमा से आलिंगन कराया जाए और फिर इस तरह वह प्राण त्याग दे। उसकी देह से निकली आत्मा तब तक घोर नरक सहे, जब तक कि सूर्य और चंद्रमा अस्तित्व में हैं।’ इस श्लोक का आशय है कि दुष्कर्म का दंड ऐसा है कि मृत्युदंड भी छोटा पड़ जाए।

शिवपुराण में दुष्कर्म और व्यभिचार का दंड

शिव पुराण में भी व्यभिचार (अविवाहित या अनैतिक यौन संबंध) को गंभीर पापों में से एक माना गया है। इसके लिए शिव पुराण में कठोर दंड का वर्णन मिलता है। व्यभिचार के लिए शिव पुराण में एक महत्वपूर्ण श्लोक का उल्लेख है

यो हि धर्मं परित्यज्य भजते व्यभिचारिणीम्।
स नरः पतितो लोके नरके च विना किल्बिषम्॥

इस श्लोक का अर्थ है कि, ‘जो व्यक्ति धर्म को त्याग कर व्यभिचारिणी (अनैतिक संबंध रखने वाली स्त्री) का संग करता है, वह इस लोक में पतित होता है और बिना किसी संदेह के नरक में जाता है। वह स्त्री भी नरक की भागी बनती है। व्यभिचार करने वाले व्यक्ति को सबसे पहला दंड अपयश का मिलता है। दूसरा दंड सामाजिक पतन और बहिष्कार का मिलता है, तीसरा दंड मृत्यु और चौथा दंड नरक की कठोर यातनाओं का मिलता है। अन्य धर्मग्रंथों में व्यभिचार करने वाले व्यक्ति को नरक में मिलने वाले जिन दंड और सजाओं का जिक्र है, वह बहुत दर्दनाक है…

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तप्त लोहे की प्रतिमा का आलिंगन: व्यभिचार के पापी को तप्त (गर्म) लोहे की स्त्री या पुरुष प्रतिमा से आलिंगन करना पड़ता है। यह बहुत ही कष्टकारी दंड है। पापी को ऐसी पीड़ा सहनी पड़ती है कि माना जाता है कि जो जलन उसने पीड़िता को दी है, वह भी उसका अनुभव करे।

तप्त तेल के कड़ाह में डालना: गरुड़ पुराण के मुताबिक, व्यभिचारी व्यक्ति को मृत्यु के बाद नरक में ले जाया जाता है और उसे तप्त तेल के कड़ाह में डाला जाता है। इस तेल में उसे लगातार जलाया जाता है, जिससे उसकी आत्मा को अत्यधिक पीड़ा होती है।

लोहे की गर्म शैया पर लिटाना: व्यभिचार करने वाले को नरक में लोहे की तप्त शैया (बिस्तर) पर लिटाया जाता है। यह शैया इतनी गर्म होती है कि व्यक्ति की आत्मा को असहनीय जलन और पीड़ा का अनुभव होता है।

दंडकारण्य (कांटेदार वन) में दौड़ाना: पापी को कांटेदार वन से गुजरना पड़ता है, जहां उसके शरीर को कांटे चुभते हैं और उसे कष्ट पहुंचाते हैं।

नरक में कीड़ों द्वारा कुतरना: व्यभिचारी व्यक्ति की आत्मा को नरक के कीड़े, सांप, और अन्य जहरीले जीवों द्वारा कुतरते-काटते रहने की सजा मिलती है। यह पीड़ा बेहद ही दर्दनाक होती है।

तप्त धातु का पान: गरुड़ पुराण में कहा गया है कि व्यभिचार करने वाले को नरक में तप्त धातु (गर्म पिघली हुई धातु) का पान कराया जाता है, जिससे उसकी आत्मा को असहनीय जलन और पीड़ा होती है।

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नारद पुराण में दुष्कर्मी की सजा

नारद पुराण के मुताबिक, जो व्यक्ति दुष्कर्म करता है, उसे यमराज के दरबार में पेश किया जाता है, जहां उसके पापों का हिसाब किया जाता है। इस अपराध के लिए उसे भयंकर नरक में भेजा जाता है, जहां उसे असहनीय पीड़ा और यातनाएं दी जाती हैं।

नारद पुराण में यह भी उल्लेख है कि दुष्कर्म के पाप के कारण अगले जन्म में व्यक्ति को अत्यंत कठिन परिस्थितियों में जीवन जीना पड़ता है। उसे निम्न श्रेणी और योनि में जन्म मिलता है और उसका जीवन दुःख और कष्ट से भरा होता है। इस पाप के कारण व्यक्ति को समाज में अपमान और तिरस्कार सहना पड़ता है। उसे समाज में अपने किए के लिए कभी क्षमा नहीं मिलती और वह हमेशा समाज के कोप का शिड़ते हैं।

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नारद पुराण में यह भी कहा गया है कि दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध करने वाले व्यक्ति को ईश्वर की कृपा प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो जाता है। प्रायश्चित के रूप में उसे कठोर तपस्या और सच्चे मन से पश्चाताप करना पड़ता है, लेकिन फिर भी उसका पाप इतना बड़ा होता है कि उसे पुनर्जन्मों तक इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

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