Pitru paksh ki Katha : अत्यंत महत्वकारी है ये पितृ पक्ष की कथा, इस कथा को पढ़े या सुने बिना नहीं होती है शुभ फल की प्राप्ति | Pitru paksh ki Katha

Pitru paksh ki Katha : अत्यंत महत्वकारी है ये पितृ पक्ष की कथा, इस कथा को पढ़े या सुने बिना नहीं होती है शुभ फल की प्राप्ति

This story of Pitru Paksha is very important, without reading or listening to this story one cannot achieve auspicious results

Edited By :   Modified Date:  September 18, 2024 / 07:16 PM IST, Published Date : September 18, 2024/7:16 pm IST

Pitru paksh ki Katha : भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिनों को ही पितृ पक्ष कहा जाता है। इन दिनों लोग अपने पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध सम्पन्न कराते हैं। श्राद्ध पर्व पर यह कथा अधिकांश क्षेत्रों में सुनाई जाती है। ऐसी मान्यता है इस कहानी को पढ़े बिना पितृ पक्ष का पुण्य नहीं मिलता है।

Pitru paksh ki Katha : अभी पितृ पक्ष चल रहे हैं और 16 दिन के श्राद्ध पक्ष में सनातन धर्मी अपने पितरों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए सभी वैदिक अनुष्ठान करते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि 16 दिन का पितृपक्ष दानवीर कर्ण की एक भूल के कारण मनाया जाता है और कर्ण के कारण ही पितृपक्ष मनाने की परंपरा शुरू हुई थी। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या है धार्मिक मान्यता –

Pitru paksh ki Katha : आईये यहाँ पढ़तें हैं पितृ पक्ष की पौराणिक कथा 

पुराणों के मुताबिक पितृपक्ष में दान-पुण्य का विशेष विधान होता है और इसका फल जीवात्मा को स्वर्गलोक में प्राप्त होता है। इस कथा के अनुसार, महाभारत के दौरान, कर्ण (Karn ki Kahani) की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे।

उन्होंने देवता इंद्र से पूछा कि उन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया।

Pitru paksh ki Katha
तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया।
तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें।

Pitru paksh ki Katha

इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया। अत: इस कथा को पढ़ने अथवा सुनने का बहुत महत्व है।

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