Mahalakshmi Ashtakam : महालक्ष्मी, हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं। लक्ष्मी और महालक्ष्मी, दोनों ही देवी लक्ष्मी के अलग-अलग स्वरूप हैं। लक्ष्मी को धन, समृद्धि, और सौभाग्य की देवी माना जाता है, जबकि महालक्ष्मी का अर्थ है “महत्त्वपूर्ण लक्ष्मी” या “बड़ी लक्ष्मी”. महालक्ष्मी को आदि लक्ष्मी भी कहा जाता है। दीपावली के त्योहार में लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लक्ष्मी की पूजा के बाद आरती ज़रूर करनी चाहिए। पूजा के पश्चात् आरती करने से पूजा संपन्न मानी जाती है, जिससे लक्ष्मी माँ प्रसन्न होकर साधक की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करतीं हैं ।
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महालक्ष्मी अष्टकम
श्री शुभ ॥ श्री लाभ ॥ श्री गणेशाय नमः॥
नमस्तेस्तू महामाये श्रीपिठे सूरपुजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥१॥
अर्थ – श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्ते गरूडारूढे कोलासूर भयंकरी ।
सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥२॥
अर्थ – गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवती महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।
सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥३॥
अर्थ – सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दुःखो को दूर करने वाली हे देवी महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
Mahalakshmi Ashtakam
सिद्धीबुद्धूीप्रदे देवी भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी ।
मंत्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ४ ॥
अर्थ – सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रमूर्तिमय भगवर्त महालक्ष्मी ! तुम्हें सदा प्रणाम है।
आद्यंतरहिते देवी आद्यशक्ती महेश्वरी ।
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ५ ॥
अर्थ – हे देवी ! हे आदि – अंतरहित आदिशक्ते ! हे माहेश्वरी ! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ती महोदरे ।
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ६ ॥
अर्थ – हे देवी ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूर्पणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवी’ महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
Mahalakshmi Ashtakam
पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हस्वरूपिणी ।
परमेशि जगन्मातर्र महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥७॥
अर्थ – हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्म स्वरूपिणी देवी ! हे परमेश्वरी ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेतांबरधरे देवी नानालंकार भूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मार्त महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥८॥
अर्थ – हे देवी ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूिणों से विभूषित हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेत् भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धीमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥
अर्थ – जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्य वैभव को प्राप्त कर सकता है।
Mahalakshmi Ashtakam
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनं ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वितः ॥१०॥
अर्थ – जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है, वह धन – धान्य से संपन्न होता है।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रूविनाशनं ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
अर्थ – जो प्रतिदिन तीनों कालों में पाठ करता है, उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।
॥ इतिंद्रकृत श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तवः संपूर्णः ॥
– अथ श्री इंद्रकृत श्री महालक्ष्मी अष्टक
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