Bhog For Jagannath: भगवान जगन्नाथ को दिनभर में लगते हैं छह तरह के भोग, सबसे खास मानी जाती है खिचड़ी, जानें इसके पीछे की कहानी |Bhog For Jagannath

Bhog For Jagannath: भगवान जगन्नाथ को दिनभर में लगते हैं छह तरह के भोग, सबसे खास मानी जाती है खिचड़ी, जानें इसके पीछे की कहानी

Bhog For Jagannath: भगवान जगन्नाथ को दिनभर में लगते हैं छह तरह के भोग, सबसे खास मानी जाती है खिचड़ी, जानें इसके पीछे की कहानी

Edited By :   Modified Date:  July 5, 2024 / 04:08 PM IST, Published Date : July 5, 2024/4:08 pm IST

Bhog For Jagannath: हर साल यह यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। इस समय भगवान जगन्नाथ श्रीमंदिर में विश्राम कर रहे हैं और आषाढ़ अमावस्या को पुरी में ‘नैनासर’ विधि की जाएगी। इस विधि में बीमारी से उठे भगवान जगन्नाथ का फिर से श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए कपड़े पहनाए जाते हैं और श्रृंगार दर्शन कराए जाते हैं. इसके बाद रथयात्रा निकाली जाती है। इस बार 7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी।

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जगन्नाथ को लगेंगे 56 भोग

बीते पंद्रह दिन से भोग नहीं स्वीकार रहे भगवान को रथयात्रा की समाप्ति के बाद जब फिर से श्रीमंदिर में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद से ‘महाभोग और महा प्रसाद’ की परंपरा फिर से वर्ष भर के लिए शुरू होगी। भगवान के ‘महाभोग’ के महाप्रसाद बनने की कथा जितनी रोचक है, उतने ही रोचक हैं इसमें शामिल स्वादिष्ट व्यंजन है। भगवान के ‘महाभोग’ के महाप्रसाद बनने की कथा जितनी रोचक है, उतने ही रोचक हैं इसमें शामिल स्वादिष्ट व्यंजन। भगवान जगन्नाथ को 56 भोग लगाया जाता है, जिसमें कई सारे व्यंजन और खाद्य पदार्थ शामिल हैं। व्यंजन के आधार पर श्रीमंदिर में इसे तीन भागों में बांटा गया है। स्थानीय भाषा में इसे सकुंडी महाप्रसाद, शुखिला महाप्रसाद और निर्माल्य या कैबल्य के रूप में जाना जाता है। श्रीमंदिर की रसोई में बड़ी संख्या में रसोइये इसका निर्माण करते हैं।

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भगवान जगन्नाथजी को लगते हैं ये भोग

सकुंडी महाप्रसादः इस भोग को एक तरीके से पूरी तरह पका हुआ ताजा भोजन माना जा सकता है। इसमें भात, खेचड़ी भात, पखाला, मीठी दाल, सब्जियों की करी, अदरक-जीरा मिले चावल, सूखी सब्जियां, दलिया आदि शामिल रहते हैं।

शुखिला महाप्रसादः इस भोग में सूखी मिठाइयां शामिल होती हैं। जैसे खाजा, गुलगुला, चेन्नापोड़ा (छेने से बनने वाला केकनुमा व्यंजन) आदि शामिल हैं।

निर्माल्य या कैबल्य महाप्रसाद : इसमें श्रीमंदर में भगवान पर चढ़ने वाले चावल, प्रतिमाओं पर चढ़े फुल, आचमनि का जल, ये सभी निर्माल्य या कैबल्य कहलाते हैं। बता दें कि मंदिर में दर्शन करने पहुंचे श्रद्धालुओं को निर्माल्य दिया जाता है। बता दें कि निर्माल्य में शामिल चावल को तपती धूप में सुखा कर रखा जाता है। लोगों में इसके प्रति बड़ी श्रद्धा है। वह पुरी की यात्रा में मिले निर्माल्य को घर लाकर तिजोरी, या पूजाघरों जैसे पवित्र स्थानों पर रखते हैं।

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श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ को दिनभर में लगते हैं छह तरह के भोग

गोपाल वल्लभ भोग (भोर के जागरण के बाद, 6-7 बजे के बीच का भोजन)
भोग मंडप भोग (सुबह 11 बजे, नाश्ते के बाद का पूरक)
मध्याह्न धूप (दोपहर 12.30 से 1.00 बजे तक का मध्यान्ह भोजन)
संध्या धूप (शाम का भोजन 7.00 से 8.00 बजे तक)
बड़ा सिंघाड़ा भोग (देर रात 11 बजे भोजन)

खिचड़ी सबसे खास

पुरी के श्रीमंदिर में खिचड़ी सबसे खास मानी जाती है। कई बार श्रद्धालुओं को इसका विशेष प्रसाद भी दिया जाता है। मान्यता है कि एक बार जगन्नाथ जी एक गरीब बुढ़िया कर्माबाई के बुलावे पर उसके हाथों से खिचड़ी खाने चले गए थे। कहते हैं कि जगन्नाथ जी की भक्त कर्माबाई बाल जगन्नाथ को बेटा मानकर पूजा करती थीं। वह सुबह-सुबह ही किसी बच्चे की तरह उन्हें तैयार करतीं और जल्दी से जल्दी खिचड़ी बनाकर खिला देतीं ताकि रात भर के सोए बाल जगन्नाथ को सुबह-सुबह कुछ खाने को मिल जाए। इस बीच बूढ़ी माई को अपने स्नान का भी ध्यान नहीं रहता था। एक बार एक महात्मा उन्हें हिना स्नान किए सुबह-सुबह खिचड़ी बनाते देख नाराज हो गए। उन्होंने कर्माबाई से कहा कि सुबह स्नान के बाद पहले रसोई की सफाई करो, फिर भगवान के लिए भोग बनाओ “। अगले दिन कर्मा बाई ने ऐसा ही किया।

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उस दिन जब भगवान खिचड़ी खाने पहुंचे तो कर्माबाई ने उन्हें थोड़ा रूकने को कहा। भगवान सोचने लगे कि आज माँ को क्या हो गया है ? ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। फिर जब कर्मा बाई ने खिचड़ी परोसी तब भगवान ने झटपट करके जल्दी-जल्दी खिचड़ी खायी। इस दौरान श्रीमंदिर में दोपहर के भोग का आह्वान हो गया। जल्दी-जल्दी में भगवान बिना पानी पिये ही मंदिर में भागे। मंदिर के पुजारी ने जैसे ही मंदिर के पट खोले तो देखा भगवान के मुख पर खिचड़ी लगी हुई है। पुजारी बोले – प्रभु जी ! ये खिचड़ी आपके मुख पर कैसे लग गयी है ? भगवान ने कहा – पुजारी जी, मैं रोज मेरी कर्मा बाई के घर पर खिचड़ी खाकर आता हूं। आप मां कर्मा बाई जी के घर जाओ और जो महात्मा उनके यहां ठहरे हुए हैं, उनको समझाओ। उसने मेरी मां को गलत कैसी पट्टी पढाई है ?

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पुजारी ने महात्मा जी से जाकर सारी बात कही कि भगवान भाव के भूखे हैं। यह सुनकर महात्मा जी घबराए और तुरन्त कर्मा बाई के पास जाकर कर्मा बाई से माफी मांगी और कहा कि आप जैसे चाहे वैसे अपने बाल जगन्नाथ की सेवा करें। ये नियम धर्म तो हम सन्तों के लिए हैं।  इसके बाद से पुरी में खिचड़ी का बालभोग लगाया जाने लगा। श्रद्धालु इसे ‘महाप्रसाद’ की संज्ञा देते हुए ग्रहण करते हैं।

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