Jivitputrika Vrat Date and Shubh Muhurt

Jivitputrika Vrat Shubh Muhurt : इस दिन रखा जाएगा जीवित्पुत्रिका व्रत, संतान की लंबी उम्र के लिए पूजा करेंगी महिलाऐं, जानें शुभ मुहूर्त

Jivitputrika Vrat Shubh Muhurt : संतान के स्वस्थ जीवन की मंगलमय कामना और लंबी उम्र के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है।

Edited By :   Modified Date:  September 22, 2024 / 05:49 PM IST, Published Date : September 22, 2024/5:49 pm IST

नई दिल्ली : Jivitputrika Vrat Shubh Muhurt : संतान के स्वस्थ जीवन की मंगलमय कामना और लंबी उम्र के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। तीन दिवसीय इस व्रत में 24 घंटे का अखंड निर्जला उपवास का महत्व है। व्रत करने वाली महिलाएं इस दौरान कुछ भी ग्रहण नहीं करती हैं। इस व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के साथ होती है और नवमी तिथि को पारण के साथ इसका समापन होता है। मिथिला और बनारस पंचांग के अनुसार इस वर्ष जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत अलग-अलग दिन पड़ रहा है। मिथिला पंचांग को मानने वाले जिउतिया व्रत 24 सितंबर को रखेंगी, जबकि बनारस पंचांग को मानने वाली 25 सितंबर उपवास करेंगी।

इस व्रत का महाभारत काल से भी जुड़ाव रहा है। कथा के अनुसार जब अश्वथामा ने पांडवों के सोते हुए सभी बेटों और अभिमन्यु के अजन्मे बेटे को मार दिया था, उस समय भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन के पोते को गर्भ में ही जीवित कर दिया। इसी वजह से अर्जुन के इस पोते का नाम जीवित्‍पुत्रिका पड़ा और मान्यता के अनुसार यही कारण है कि माताएं अपने बेटे की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत कथा में सियारनी और चिल्ली का भी उल्लेख है। जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए उपवास शुरू करने से पहले सुबह सूर्योदय से पहले ही कुछ खाया-पिया जा सकता है। सूर्योदय होने से पहले महिलाएं पानी, शर्बत व अन्य फल व मीठे भोज्य पदार्थ ले सकती हैं। इसे शरगही कहते हैं।

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व्रत के समय इन बातों का रखें ध्यान

Jivitputrika Vrat Shubh Muhurt : इस व्रत को रखने से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है। कहते हैं कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। जिसके कारण व्रती के शरीर को पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है।

इस व्रत के पारण के बाद महिलाएं जितिया का लाल रंग का धागा गले में पहनती हैं। व्रती महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं।

पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है। व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाते हैं।

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