नई दिल्लीः Indira Ekadashi Vrat Katha हिंदू धर्म में एकादशी को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। खासकर पितृपक्ष के मौके पर इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजन करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। आश्विन के महीने में जो एकादशी आती है उसे कहते हैं इंदिरा एकादशी कहते हैं। इसका एकादशी का पालन करने से मन और शरीर दोनों ही संतुलित रहते हैं। खास तौर से गंभीर रोगों से निश्चित रूप से रक्षा होती है। पाप नाश करने के लिए और अपनी तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आश्विन महीने की इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है। तो चलिए जानते हैं इससे संबंधित सभी जानकारियां…
Indira Ekadashi Vrat Katha पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि का आरंभ 27 सितंबर, दिन शुक्रवार की दोपहर 1 बजकर 19 मिनट पर होगा और इसका समापन अगले दिन 28 सितंबर की दोपहर 2 बजकर 50 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर, दिन शनिवार को रखा जाएगा। पूजा अर्चना के लिए सबसे शुभ मुहूर्त 28 सितंबर की सुबह 7 बजकर 42 मिनट से लेकर सुबह के 9 बजकर 12 मिनट तक और दोपहर में 3 बजकर 11 मिनट से लेकर दोपहर के 4 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
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सतयुग में महिष्मतीपुरी के राजा इन्द्रसेन हमेशा प्रजा के उद्धार के लिए कार्य करते थे साथ ही भगवान विष्णु के भक्त भी थे। एक दिन देवर्षि नारद उनके दरबार में आए। राजा ने बहुत प्रसन्न होकर उनकी सेवा की और उनके आने का कारण पूछा। देवर्षि ने बताया कि मैं यम से मिलने यमलोक गया, वहां मैंने तुम्हारे पिता को देखा।उन्होंने बताया कि व्रतभंग होने के दोष से वो यमलोक की यातनाएं झेलने को मजबूर है। इसलिए उन्होंने तुम्हारे लिए यह संदेश भेजा है कि तुम उनके लिए इन्दिरा एकादशी का व्रत करो जिससे वो स्वर्गलोक को प्राप्त कर सकें। राजा ने पूछा कि हे मुनिवर ! कृपा करके इंदिरा एकादशी के संदर्भ में बताएं।
देवर्षि ने बताया कि आश्विन मास की यह एकादशी पितरों को सद्गति देने वाली है। व्रत में अपना पूरा दिन नियम-संयम के साथ बिताएं। व्रती को इस दिन आलस्य त्याग कर हरि नाम का भजन करना चाहिए। पितरों का भोजन निकाल कर गाय को खिलाएं। फिर भाई-बन्धु, नाती और पु्त्र आदि को खिलाकर स्वयं भी मौन धारण कर भोजन करना। इस विधि से व्रत करने से आपके पिता की सद्गति होगी। राजा ने इसी प्रकार इंदिरा एकादशी का व्रत किया। व्रत के पुण्य प्रभाव से राजा के पिता गरुड़ पर आरूण होकर श्री विष्णुधाम को चले गये और राजर्षि इन्द्रसेन भी मृत्योपरांत स्वर्गलोक को गए।
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इस दिन प्रातःकाल उठ कर के स्नान करें और स्नान करने के बाद पहले सूर्य भगवान को अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की आराधना करें। भगवान विष्णु की पाषाण रूप में शालिग्राम के रूप में पूजा होती है और उसी स्वरूप की पूजा आज के दिन की जाएगी। फिर, उनको पीले फूल, फल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करेंगे तो बहुत ही अच्छा रहेगा। इसके बाद भगवान का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जप करें।
मंत्र है- ऊं विष्णवे नमः, ऊं नमो नारायणाय:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: ।
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