Ganga Dussehra 2024: हिंदू धर्म में प्रत्येक तीज त्योहारों का विशेष महत्व है। जिसे बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। वैसे ही आज गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। सनातन धर्म में गंगा दशहरा के पर्व का खास महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन मां गंगा पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई थीं और राजा भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष प्रदान किया था। ऐसा माना जाता है कि जीवनदायिनी माता गंगा की पूजा करने से सभी पापों का अंत होता है। इसके साथ ही रोग-दोष से मुक्ति मिलती है।
पूजा का मुहूर्त
इस बार गंगा दशहरा 16 जून यानी आज मनाया जा रहा है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 16 जून यानी आज रात 02 बजकर 32 मिनट से शुरू हो चुकी है और दशमी तिथि का समापन 17 जून यानी कल सुबह 04 बजकर 34 मिनट पर होगा। साथ ही आज पूजन का समय सुबह 7 बजकर 08 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगा।
पूजा विधि
गंगा दशहरा के दिन पवित्र गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाने का विधान है। यदि आप गंगा के तट पर नहीं में असमर्थ हैं तो आस-पास के तालाब या नदी में भी मां गंगा का नाम लेकर डुबकी लगाई जा सकती है। डुबकी लगाते समय ‘ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः’ मंत्र का उच्चारण जरूर करें। घर में नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं। गंगा दशहरा के दिन दान करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन दान-धर्म के कार्य करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन 10 चीजों का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। पूजन सामग्री में भी 10 चीजों का इस्तेमाल करें। 10 प्रकार के ही फल और फूल का इस्तेमाल करें।
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इन चीजों का करें दान
गंगा दशहरा के दिन दान-पूण्य का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन जिस भी चीज का दान करें उसकी संख्या 10 होनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है. इस दिन 10 ब्रह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए। गंगा दशहरा के दिन जल, अन्न, फल, वस्त्र, पूजन, शृंगार सामग्री, घी, नमक, शक्कर का दान शुभ माना गया है। इसके अलावा गंगा दशहरा के दिन आम खाने, आम का दान करने का भी विशेष महत्व है। घर की उन्नति के लिए गंगा दशहरा के दिन तांबे के लोटे में जल, गंगाजल, रोली, अक्षत और कुछ गेंहू के दाने डालकर ॐ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इसलिए इस पर्व को मां गंगा के अवतरण दिवस के रूप में भी मनाते हैं। अपने पूर्वजों की आत्मा के उद्धार के लिए भागीरथ गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे। माना जाता है कि गंगा श्री विष्णु के चरणों में रहती थीं. भागीरथ की तपस्या से, शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। फिर शिव जी ने अपनी जटाओं को सात धाराओं में विभाजित कर दिया ये धाराएं हैं नलिनी, हृदिनी, पावनी, सीता, चक्षुष, सिंधु और भागीरथी।
भागीरथी ही गंगा हुईं और हिन्दू धर्म में मोक्षदायिनी मानी गईं। इन्हें कहीं कहीं पर पार्वती की बहन कहा जाता है। इन्हें शिव की अर्धांगिनी भी माना जाता है। अभी भी शिव की जटाओं में मां गंगा का वास है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां गंगा तीनों लोकों में बहती हैं। इसलिए उन्हें त्रिपथगामिनी कहा जाता है। स्वर्ग में मां गंगा को मंदाकिनी कहा जाता है। पृथ्वी लोक पर मां गंगा या जाह्नवी के नाम से जाना जाता है। गंगाजल का प्रयोग जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी अनुष्ठानों व संस्कारों में जरूरी माना गया है।