Gajendra Moksh Katha : गजेंद्र मोक्ष या गजेंद्र की मुक्ति हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ भागवत पुराण के 8वें स्कंध से एक पौराणिक कथा है। यह संरक्षक देवता, विष्णु के प्रसिद्ध कारनामों में से एक है । इस प्रकरण में, विष्णु गजेंद्र, हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाने के लिए धरती पर आए, जिसे वैकल्पिक रूप से मकर या हुहू के रूप में जाना जाता है, और विष्णु की मदद से, गजेंद्र ने मोक्ष , या जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त की। तब गजेंद्र ने देवता (सरूप्य मुक्ति) जैसा रूप प्राप्त किया और विष्णु के साथ वैकुंठ चला गया। यह कहानी शुक ने राजा परीक्षित के अनुरोध पर उन्हें सुनाई थी।
Gajendra Moksh Katha : आईये यहाँ पढ़ें ये पौराणिक कथा
क्षीरसागर में एक त्रिकूट नामक एक प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ पर्वत था। पर्वत की तलहटी में तरह-तरह के जंगली जानवर बसेरा बनाए हुए थे। इसके ऊपर बहुत सी नदियाँ और सरोवर भी थे।
इस पर्वतराज त्रिकूट की तराई में एक तपस्वी महात्मा रहते थे जिनका नाम वरुण था। महात्मा वरुण ने एक अत्यन्त सुन्दर उद्यान में अपनी कुटी बनाई थी। इस उद्यान का नाम ऋतुमान था। इसमें सब ओर अत्यन्त ही दिव्य वृक्ष शोभा पा रहे थे, जो सदा फलों-फूलों से लदे रहते थे।
इस उद्यान में एक बड़ा-सा सरोवर भी था जिसमें सुनहले कमल भी खिले रहते थे तथा विविध जाति के कुमुद, उत्पल, शतदल कमल अपनी अनूठी छटा बिखराते थे। हंस, चक्रवाक और सारस आदि पक्षी झुण्ड के झुण्ड भरे हुए थे। मछली और कछुवों के खिलवाड़ से कमल के फूल जो हिलते थे उससे उसका पराग झड़कर सरोवर जल को अत्यन्त सुगन्धित कर देता था।
Gajendra Moksh Katha
कदम्ब, नरकुल, बेंत, बेन आदि वृक्षों से यह घिरा रहता था। कुन्द कुरबक, अशोक, सिरस, वनमल्लिका, सोनजूही, नाग, हरसिंहार, मल्लिका शतपत्र, माधवी और मोगरा आदि सुन्दर-सुन्दर पुष्प वृक्षों से प्रत्येक ऋतु में यह महात्मा वरुण का सरोवर शोभायमान रहता था।
क्षीरसागर से त्रिकूट पर्वत पर सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। एक बार एक दर्दनाक घटना घट गई। इस पर्वत के घोर जंगल में एक विशाल मतवाला हाथी रहता था। वह कई शक्तिशाली हाथियों का सरदार था। उसके पीछे बड़े-बड़े हाथियों के झुण्ड के झुण्ड चलते थे।
इस गजराज से, उसके महान् बल के कारण बड़े से बड़े हिंसक जानवर भी डरते थे किन्तु एक बात यह भी थी कि उसकी कृपा से लंगूर, भैंसे, भेड़िए, हिरण, रीछ, वनैले कुत्ते, खरगोश आदि छोटे जीव निर्भय होकर घूमा करते थे क्योंकि उसके रहते कोई भी हिंसक जानवर उस पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सकता था।
गजराज मदमस्त था। उसके सिर के पास से टपकते मद का पान करने के लिए भँवरे उसके साथ गूँजते जाते थे।
Gajendra Moksh Katha
एक दिन बड़े जोर की धूप थी। वह प्यास से व्याकुल हो गया। अपने झुण्ड के साथ वह उसी सरोवर में उतर पड़ा जो त्रिकूट की तराई में स्थित था। जल उस समय अत्यन्त शीतल एवं अमृत के समान मधुर था। पहले तो उस गजराज ने अपनी सूँड़ से उठा-उठा जी भरकर इस अमृत-सदृश्य जल का पान किया। फिर उसमें स्नान करके अपनी थकान मिटाई।
इसके पश्चात उसका ध्यान जलक्रीड़ा की ओर गया। वह सूँड़ से पानी भर-भर अन्य हाथियों पर फेंकने लगा और दूसरे भी वही करने लगे। मदमस्त गजराज सबकुछ भूलकर जल क्रीड़ा का आनन्द उठाता रहा। उसे पता नहीं था कि उस सरोवर में एक बहुत बलवान ग्राह भी रहता था।
उस ग्राह ने क्रोधित होकर उस गजराज के पैर को जोरों से पकड़ लिया और उसे खींचकर सरोवर के अन्दर ले जाने लगे। उसके पैने दातों के गड़ने से गजराज के पैर से रक्त का प्रवाह निकल पड़ा जिससे वहाँ का पानी लाल हो आया।
उसके साथ के हाथियों और हथिनियों को गजराज की इस स्थिति पर बहुत चिंता हुई। उन्होंने एक साथ मिलकर गजराज को जल के बाहर खींचने का प्रयास किया किंतु वे इसमें सफल नहीं हुए। वे घबराकर ज़ोर-ज़ोर से चिंघाड़ने लगे। इस पर दूर-दूर से आकर हाथियों के कई झुण्डों ने गजराज के झुण्डों से मिलकर उसे बाहर खींचना चाहा किन्तु यह सम्मिलित प्रयास भी विफल रहा।
सभी हाथी शान्त होकर अलग हो गए। अब ग्राह और गजराज में घोर युद्ध चलने लगा दोनों अपने रूप में काफी बलशाली थे और हार मानने वाले नहीं थे।
Gajendra Moksh Katha
कभी गजराज ग्राह को खींचकर पानी से बाहर लाता तो कभी ग्राह गजराज को खींचकर पानी के अन्दर ले जाता किन्तु गजराज का पैर किसी तरह ग्राह के मुँह से नहीं छूट रहा था बल्कि उसके दाँत गजराज के पैर में और गड़ते ही जा रहे थे और सरोवर का पानी जैसे पूरी तरह लाल हो आया था।
गज और ग्राह के बीच युद्ध कई दिनों तक चला। अन्त में अधिक रक्त बह जाने के कारण गजराज शिथिल पड़ने लगा। उसे लगा कि अब वह ग्राह के हाथों परास्त हो जाएगा।
उसको इस समय कोई उपाय नहीं सूझा और अपनी मृत्यु को समीप पाकर उसे भगवान नारायण की याद आयी। पूर्व जन्म की निरंतर भगवद आराधना के फलस्वरूप उसे भगवत्स्मृति हो आई।
उसने निश्चय किया कि मैं कराल काल के भय से चराचर प्राणियों के शरण्य सर्वसमर्थ प्रभु की शरण ग्रहण करता हूँ। इस निश्चय के साथ गजेन्द्र मन को एकाग्र कर पूर्वजन्म में सीखे श्रेष्ठ स्त्रोत द्वारा गजेंद्र मोक्ष स्तुति करने लगा।
Gajendra Moksh Katha
उसने एक कमल का फूल तोड़ा और उसे आसमान की ओर इस तरह उठाया जैसे वह उसे भगवान को अर्पित कर रहा हो। अब तक वह ग्राह द्वारा खींचे जाने से सरोवर के मध्य गहरे जल में चला गया था और उसकी सूड़ का मात्र वह भाग ही ऊपर बचा था जिसमें उसने लाल कमल-पुष्प पकड़ रखा था।
उसने अपनी शक्ति को पूरी तरह से भूलकर और अपने को पूरी तरह असहाय घोषित कर नारायण को पुकारा। भगवान समझ गए कि इसे अपनी शक्ति का मद जाता रहा और वह पूरी तरह से मेरा शरणागत है।
जब नारायण ने देखा कि मेरे अतिरिक्त यह किसी को अपना पक्षक नहीं मानता तो नारायण के `ना` के उच्चारण के साथ ही वह गरुण पर सवार होकर चक्र धारण किए हुए सरोवर के किनारे पहुँच गए। उन्होंने देखा कि गजेन्द्र डूबने ही वाला है। वह शीघ्रता से गरुण से कूद पड़े।
इस समय तक बहुत से देवी-देवता भी भगवान के आगमन को समझकर वहाँ उपस्थित हो गए थे। सभी के देखते ही देखते भगवान ने गजराज और गजेन्द्र को एक क्षण में सरोवर से खींचकर बाहर निकाला। देवताओं ने आश्चर्य से देखा, उन्होंने सुदर्शन से इस तरह ग्राह का मुँह फाड़ दिया कि गजराज के पैर को कोई क्षति नहीं पहुँची।
ग्राह देखते-देखते तड़प कर मर गया और गजराज भगवान की कृपा-दृष्टि से पहले की तरह स्वस्थ हो गया।
ब्रह्मादि देवगण श्री हरि की प्रशंसा करते हुए उनके ऊपर स्वर्गिक सुमनों की वृष्टि करने लगे। सिद्ध और ऋषि-महर्षि परब्रह्म भगवान विष्णु का गुणगान करने लगे।
Gajendra Moksh Katha
ग्राह दिव्य शरीर-धारी हो गया। उसने भगवान विष्णु के चरणो में सिर रखकर प्रणाम किया और भगवान विष्णु के गुणों की प्रशंसा करने लगा।
भगवान विष्णु के मंगलमय वरद हस्त के स्पर्श से पाप मुक्त होकर अभिशप्त गन्धर्व ने प्रभु की परिक्रमा की और उनके त्रेलोक्य वन्दित चरण-कमलों में प्रणाम कर अपने लोक चला गया।
भगवान विष्णु ने गजेन्द्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया। गन्धर्व, सिद्ध और देवगण उनकी लीला का गान करने लगे।
गजेन्द्र की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सबके समक्ष कहा: प्यारे गजेन्द्र ! जो लोग ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तुम्हारी की हुई स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल बुद्धि का दान करूँगा।
————–
Read more : आईये यहाँ पढ़ें और सुनें ये पौराणिक कथा
आज बने सुनफा योग से इन चार राशियों का होगा…
8 hours agoAaj ka Rashifal: मीन और मकर वालों को होगी धन…
9 hours agoBhajan : भरोसा कर तू ईश्वर पर, तुझे धोखा नहीं…
21 hours ago