Kharmas Mantra 2025

Kharmas Mantra 2025: खरमास में सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना करें इन मंत्रों का जाप, पूरी होगी हर मनोकामना

Kharmas Mantra 2025: खरमास में सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना करें इन मंत्रों का जाप, पूरी होगी हर मनोकामना

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Modified Date: March 20, 2025 / 03:36 PM IST
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Published Date: March 20, 2025 3:35 pm IST
HIGHLIGHTS
  • 14 मार्च से खरमास की शुरूआत हो चुकी है।
  • 13 अप्रैल तक रहेगा खरमास।
  • इस अवधि में ग्रहों की स्थिति शुभ नहीं होती और शुभ कार्यों में बाधाएं आ सकती हैं।
  • इस समय सूर्य देव के मंत्रों का जाप करना चाहिए।

नई दिल्ली।Kharmas Mantra 2025:  हिंदू धर्म में वैसे तो साल के 12 महीने हर दिन किसी न किसी देवी-देवता की पूजा, व्रत, त्योहार, पूर्णिमा आदि मनाए जाते हैं। वहीं खरमास हिंदू धर्म में ऐसा समय होता है जब सूर्य बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं। यह घटना हर साल दो बार होती है। खरमास को धार्मिक दृष्टि से अशुभ माना गया है, इसलिए इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे अन्य शुभ कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है।

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Kharmas Mantra 2025: बता दें कि, इस साल खरमास की शुरूआत कल यानी 14 मार्च से 2025 से शुरू हो चुकी है जो 13 अप्रैल तक चलेगी। से आरंभ हो रहा है, इस दिन सूर्य धनु और मीन राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में शुभ और मांगलिक कार्यों की मनाही होती है। ऐसी मान्यता है कि इस अवधि में ग्रहों की स्थिति शुभ नहीं होती और शुभ कार्यों में बाधाएं आ सकती हैं। वहीं इस दिन सूर्य देव के कुछ मंत्र करने से मनोकामना पूरी होती है। तो चलिए जानते हैं कौन से हैं वो मंत्र।

सूर्यदेव के लिए मंत्र

1. जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।
2. ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।
हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
3. ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।
4. ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:।
विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।।
5. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते,
अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।

सूर्याष्टकम

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
बन्धुकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजः प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्