Argala Stotram Mantra : नवरात्री पर ज़रूर सुनें और पढ़ें ये चमत्कारी अर्गला स्तोत्र का पाठ, 'नौकरी में हों समस्याएं यां व्यापार में हो रहे घाटे' में होंगे आश्चर्यजनक बदलाव | Argala Stotram Mantra

Argala Stotram Mantra : नवरात्री पर ज़रूर सुनें और पढ़ें ये चमत्कारी अर्गला स्तोत्र का पाठ, ‘नौकरी में हों समस्याएं यां व्यापार में हो रहे घाटे’ में होंगे आश्चर्यजनक बदलाव

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Edited By :   Modified Date:  October 1, 2024 / 02:16 PM IST, Published Date : October 1, 2024/2:15 pm IST

Argala Stotram Mantra : अर्गला स्तोत्र का पाठ नवरात्रि के साथ देवी पूजन और सप्तशती पाठ के साथ भी करना चाहिए, यह शुभफलदायक है। मान्यता है कि अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से मां चामुंडा प्रसन्न होती है और इससे भक्त के जीवन में सुख-शांति आती है। इससे उसे मनोवांछित फल, अन्न-धन, वस्त्र-यश आदि की प्राप्ति होती है। 

Argala Stotram Mantra : अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से कई लाभ मिलते हैं, जैसे:
– अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को समस्त कार्यों में विजय मिलती है।
– यह स्तोत्र रुप, जय, और यश देने वाला है।
– इससे व्यक्ति के चारों ओर सुरक्षा घेरा बन जाता है।
– अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सफलता के योग बनते हैं।
– यह स्तोत्र दिमाग को तेज करने के साथ शरीर को स्वस्थ रखता है।
– इससे जीवन में ढेर सारा धन, सफलता, और प्रचुरता आती है।
– यह स्तोत्र नौकरी या व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है।
– अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से माता दुर्गा का आशीष प्राप्त होता है।
– अर्गला स्तोत्र का पाठ नवरात्रि के साथ देवी पूजन और सप्तशती पाठ के साथ भी करना चाहिए।

Argala Stotram Mantra : आईये यहाँ सुनें और पढ़ें चमत्कारी अर्गला स्तोत्र

॥ अथार्गलास्तोत्रम् ॥
ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतयेसप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥
ॐ नमश्चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥

मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥

Argala Stotram Mantra

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥

अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥

स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥10॥

Argala Stotram Mantra

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥

Argala Stotram Mantra

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥

Argala Stotram Mantra

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥

॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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