History of war between Babar and Rani Jairaj Kumari in Ayodhya

Ayodhya Par Akraman Ka Itihas : कौन थी अयोध्या की रानी जयराज कुमारी? जिन्होंने राम मंदिर बचाने के लिए अपनी नारियों की सेना के साथ मुगलों को किया था परास्त..

History of war between Babar and Rani Jairaj Kumari in Ayodhya: रानी जयराज कुमारी का नारी सेना बना कर जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास किया।

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Modified Date: January 21, 2024 / 12:44 PM IST
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Published Date: January 21, 2024 12:44 pm IST

History of war between Babar and Rani Jairaj Kumari in Ayodhya : अयोध्या। अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है। जिसकी कल यानि सोमवार को प्राण प्रतिष्ठा की जानी है। इस शुभ कार्य के लिए देश की कई दिग्गज हस्तियों को निमंत्रण कार्ड दिया जा चुका है। तो वहीं कुछ अतिथियों का आने का सिलसिला तो शुरू भी हो गया है। देश के कोने कोने से साधु संतों की टोली भी रामलला के इस शुभ कार्य में शिरकत करेगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि करीब 500 वर्षों के बाद अयोध्या में पुनः राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। इस राम मंदिर के लिए कितने आक्रमण हुए और कितने हिंदुओं ने अपने प्राणों की आहूति दी है।

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History of war between Babar and Rani Jairaj Kumari in Ayodhya : मुगल काल से देश के मंदिरों को तोड़ने और उनका धन लूटने का सिलसिला चला आ रहा है। जिसमें से एक अयोध्या का राम मंदिर भी था। अयोध्या नगरी का जिक्र कई ग्रंथों से लेकर इतिहासिक किताबों में भी है। जहां प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था। कहते हैं कि आज से 500 साल पहले अयोध्या में रामलला का एक विशाल मंदिर बना हुआ था जो धन संपदा से संपन्न था। अयोध्या एक सुंदर और शांति की नगरी से भी प्रसिद्ध थी। सरयू नदी के किनारे बसा ये नगर कई मुगल और अफगानियों की आंख में खटक रहा था। अयोध्या पर राज करने के लिए कई आक्रमण किए गए और वहां पर बने राम मंदिर ही नहीं बल्कि कई छोटे मंदिरों को भी तोड़ा गया।

 

अयोध्या पर पहला आक्रमण कब?

बाबर के समय जन्मभूमि को मुसलमानों से मुक्त करने के लिए सर्वप्रथम आक्रमण भीटी के राजा महताब सिंह द्वारा किया गया। जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय सम्पूर्ण हिन्दू जनमानस में एक प्रकार से क्रोध और क्षोभ की लहर दौड़ गयी। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे,अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी। चूंकी महताब सिंह के पास सेना छोटी थी अतः उन्हें परिणाम मालूम था मगर उन्होंने निश्चय किया की रामलला के मंदिर को अपने जीते जी ध्वस्त नहीं होने देंगे उन्होंने सुबह सुबह अपने आदमियों को भेजकर सेना तथा कुछ हिन्दुओं को की सहायता से 1 लाख चौहत्तर हजार लोगो को तैयार कर लिया। बाबर की सेना में 4 लाख 50 हजार सैनिक थे।

 

युद्ध का परिणाम एकपक्षीय हो सकता था मगर रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। भीटी के राजा महताब सिंह ने कहा की बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकला था यदि वीरगति को प्राप्त हुआ तो सीधा स्वर्ग गमन होगा और उन्होंने युद्ध शुरू कर दिया। रामभक्त वीरता के साथ लड़े 70 दिनों तक घोर संग्राम होता रहा और अंत में राजा महताब सिंह समेत सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए बाबर की 4 लाख 50 हजार की सेना के अब तीन हजार एक सौ पैतालीस सैनिक बचे रहे। इस भीषण कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवाया।

 

कौन थी अयोध्या मंदिर को बचाने वाली रानी जयराज कुमारी

जब अयोध्या पर तीसरा युद्ध हुआ तो उस समय मुगलों पर हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने आक्रमण करने को सोचा। हालाकी रणविजय सिंह की सेना में सिर्फ 25 हजार सैनिक थे और युद्ध एकतरफा था मीरबाँकी की सेना बड़ी और शस्त्रो से सुसज्जित थी ,इसके बाद भी रणविजय सिंह ने जन्मभूमि रक्षार्थ अपने क्षत्रियोचित धर्म का पालन करते हुए युद्ध को श्रेयस्कर समझा। 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए।

 

इसके बाद नारियों ने भी अपना जौहर दिखाया। रानी जयराज कुमारी का नारी सेना बना कर जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास किया। रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी था।जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया। बाबर की अपार सैन्य सेना के सामने 3 हजार नारियों की सेना कुछ नहीं थी अतः उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा और वो युद्ध रानी जयराज कुमारी ने हुमायूँ के शासनकाल तक जारी रखा जब तक की जन्मभूमि को उन्होंने अपने कब्जे में नहीं ले लिया।

 

रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तो को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। चूकी रामजन्म भूमि के लिए संतो और छोटे राजाओं के पास शाही सेना के बराबर संख्याबल की सेना नहीं होती थी अतः स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने 24 हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ, हुमायूँ के समय 10 हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये और 10वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी का अधिकार हो गया। लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूर्ण रूप से तैयार शाही सेना फिर भेजी ,इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया।

इस युद्ध किया वर्णन दरबरे अकबरी कुछ इस प्रकार करता है-

“सुल्ताने हिन्द बादशाह हुमायूँ के वक्त मे सन्यासी स्वामी महेश्वरानन्द और रानी जयराज कुमारी दोनों अयोध्या के आस पास के हिंदुओं को इकट्ठा करके लगातार 10 हमले करते रहे । रानी जयराज कुमारी ने तीन हज़ार औरतों की फौज लेकर बाबरी मस्जिद पर जो आखिरी हमला करके कामयाबी हासिल की । इस लड़ाई मे बड़ी खूंखार लड़ाई लड़ती हुई जयराजकुमारी मारी गयी और स्वामी महेश्वरानंद भी अपने सब साथियों के साथ लड़ते लड़ते खेत रहे।”

 

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