बरुण सखाजी
प्रशांत किशोर का ऐलान कई मायनों में भारत की राजनीति के लिए अच्छे संकेत कहा जा सकता है। आरोप-प्रत्यारोप, एक दूसरे को नकारा सिद्ध करने की सियासत। साजिशों का जंजाल बन पड़ी राजनीति में कुछ बदलाव चाहिए हैं। एक बदलाव का सपना अरविंद केजरीवाल ने दिखाया था, जो आगे-पीछे जाकर वही ढाक के तीन पात सिद्ध हुआ। लेकिन पीके से देश उम्मीद कर सकता है। पीके की अगर हम मूलभूत अच्छाइयों और मजबूतियों की बात करें तो वे केजरीवाल की तुलना में बहुत अधिक स्पष्ट और कारगर हैं।
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केजरीवाल लोगों की सुनकर उन्हें भ्रमित करते हैं। प्रशांत किशोर लोगों को सिर्फ सुनते हैं। सुनने में भी वे उन्हें यथावत सुनते हैं, उनमें कोई करैक्शन नहीं करते। न टोकते। जो व्यक्ति बोलता है उसे पूरा सुनकर अपनी रणनीति में वैसी चीजें जोड़ना शुरू करते हैं।
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प्रशांत किशोर की एक बड़ी गुणवत्ता सिस्टम बनाने की है। वे कम्युनिकेशन का सही फ्लो कैसे हो और लोगों से कही गई बात साकार कैसे हो इस पर फॉर्मूले बनाने के मास्टर हैं। वे इस तरह का सिस्टम बनाते हैं, जिसके अनुपालन और फॉलोअप में प्रशासनिक मशीनरी को दिक्कत नहीं होती।
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मोदी के रणनीतिक सलाहकार से लेकर ममता के सलाहकार तक प्रशांत का नेता आरोपों में गुडमिक्स रखता है। मोदी मनमोहन सरकार की बुराइयों को बताने के साथ ही अपने गुजरात मॉडल को समानांतर पेश कर रहे थे। ऐसे ही ममता ने भाजपा के तमाम आरोपों के बीच भी अपनी सरकार के जन-जन तक पहुंचे लाभ को बताने में ज्यादा रुचि ली।
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वे अपने फीडबैक के फॉर्मेट में सैंपल डाटा बहुत बड़ा रखते हैं, लेकिन इस डाटा को वे कभी भी उलझाते नहीं। जो लोग कह रहे हैं, बता रहे हैं, समझा रहे हैं उसे जैसा का तैसा आने देते हैैं। किसी स्तर पर किसी को खारिज नहीं करते।
प्रशांत किशोर धरातल के कार्यकरण के फॉर्मूले बनाते हैं। वे कभी भी हवाहवाई न तो फॉर्मेट देते हैं न इनमें ज्यादा उलझाते। पार्टी हो या नेता हो वे उसकी ओवरऑल ग्रूमिंग पर ध्यान देते हैं। नेता की छवि से लेकर पार्टी की सोच तक को सकारात्मक दिशा में ले जाने की ओर बढ़ते हैं।
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