जब एक किन्नर की मौत हो जाती है तो उसके अंतिम संस्कार को गुप्त रखा जाता है। बाकी धर्मों से ठीक उलट किन्नरों की अंतिम यात्रा दिन की जगह रात में निकाली जाती है।
किन्नरों के अंतिम संस्कार को गैर-किन्नरों से छिपाकर किया जाता है। इनकी मान्यता के अनुसार अगर किसी किन्नर के अंतिम संस्कार को आम इंसान देख ले, तो मरने वाले का जन्म फिर से किन्नर के रूप में ही होगा। अंतिम संस्कार से पहले बॉडी को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है। कहा जाता है इससे उस जन्म में किए सारे पापों का प्रायश्चित हो जाता है।
वैसे तो किन्नर हिन्दू धर्म की कई रीति-रिवाजों को मानते हैं, लेकिन इनकी डेड बॉडी को जलाया नहीं जाता। इनकी बॉडी को दफनाया जाता है।
अपने समुदाय में किसी की मौत होने के बाद किन्नर अगले एक हफ्ते तक खाना नहीं खाते।
किन्नर समाज अपने किसी सदस्य की मौत के बाद मातम नहीं मनाते। इसके पीछे ये वजह है कि मौत के बाद किन्नर को नरक रूपी जिन्दगी से मुक्ति मिल गई। मौत के बाद किन्नर समाज खुशियां मनाते हैं और अपने अराध्य देव अरावन से मांगते हैं कि अगले जन्म में मरने वाले को किन्नर ना बनाएं।
किन्नरों की साल में एक दिन शादी होती है। यह शादी भी भगवान अरावन से होती है। भगवान अरावन की मूर्ति को शहर में घुमाया जाता है। अगले ही दिन किन्नर श्रृंगार उतारकर विधवा की तरह शोक मनाते हैं और सफेद कपड़े पहन लेते हैं।
किन्नरों की ज्यादातर परम्पराएं हिन्दू धर्म के मुताबिक निभाई जाती हैं, लेकिन अधिकांश गुरु मुस्लिम होते हैं।
ज्यादातर किन्नर 6 बजे तक उठ जाते हैं। 10 बजे तक नाश्ता करने के बाद ये काम पर निकल जाते हैं। किन्नरों की अधिकांश कमाई ट्रेनों में गाने के जरिए होती है। इसके साथ ही दिनभर में ढाई सौ से बारह सौ रुपए तक कमा लेते हैं।
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