बिलासपुर: हर शहर चाहता है कि उसकी तरक्की हो….अच्छी लाइफस्टाइल हो… दुनियां जहां कि सारी सुविधाएं शहर में मिलें। इन सभी काम के लिए करोड़ों रुपए मिलने के बाद भी अगर तस्वीर न बदले को इसका जिम्मेदार कौन? कुछ ऐसे ही हालात का सामना इन दिनों बिलासपुर शहर कर रहा है। स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ों रुपए मिले मगर फिर भी प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं।
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बिलासपुर शहर, जिसे न्यायधानी के नाम से भी जानते हैं। मगर आज ये शहर आज खुद के साथ हो रहे अन्याय को लेकर बेबस और लाचार नजर आ रहा है।
स्मार्ट सिटी योजना के तहत 114 करोड़ रुपए की पहली किस्त जारी भी कर दी गई, लेकिन 4 साल बीत जाने के बाद भी निगम अब तक पहली किस्त का 70 फीसदी यानी 80 करोड़ तक खर्च नहीं कर सका है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के नियमों के मुताबिक पहली किस्त की 70 फीसद राशि खर्च करने के बाद ही दूसरी किस्त जारी होती है। ऐसे में दूसरी किस्त मिलने के आसार फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं, तो वहीं जिम्मेदार कोरोना का बहाना बना रहे हैं।
स्मार्ट सिटी के तहत नागरिकों को विश्व स्तरीय सुविधाएं उपलब्ध कराना है, लेकिन मौजूद हालात ये हैं सुविधाओं के मामले में बिलासपुर पिछड़ता जा रहा है। स्मार्ट सिटी के तहत संचालित प्रोजेक्ट आधे अधूरे हैं। स्मार्ट रोड, ऑटोमेटिक मल्टी लेवल पार्किंग,कमर्शियल कॉम्प्लेक्स, सौंदर्यीकरण प्रोजेक्ट की प्राथमिकता में है। मगर स्मार्ट सिटी की सुस्त चाल इन योजनाओं पर भारी पड़ रही है।
इधर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की इस स्थिति को लेकर अब सियासत भी शुरू हो गई है। प्रोजेक्ट की बदहाली के लिए बीजेपी, स्थानीय सरकार को कटघरे में खड़े कर रही है। बीजेपी नेता कह रहे हैं कि स्थानीय सरकार स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को लेकर गंभीर नहीं है, तो सत्ता पक्ष के नेता कोरोना का बहाना बना रहे हैं।
देश के दूसरे कई शहरों में स्मार्ट सिटी का काम धड़ल्ले से चल रहा है। ऐसे में कोरोना का बहाना गले नहीं उतर रहा। हकीकत यही है कि बिलासपुर को स्मार्ट बनाने की पूरी कवायद नाकाफी साबित हो रही है, जिससे बिलासपुर स्मार्ट सिटी के भविष्य पर भी अब सवाल खड़े होने लगे हैं।
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