रायपुर। रामायण में शबरी का नाम बहुत आदर भाव से लिया जाता है। शबरी की भक्ति से भगवान श्रीराम बेहत प्रभावित हुए थे। शबरी की आस्था को देखकर भगवान राम ने शबरी को आदरणीय नारी कहा था। पंचांग के अनुसार सप्तमी की तिथि का समापन 5 मार्च यानी शुक्रवार की शाम 7 बजकर 54 मिनट पर होगा।
शबरी जयंती का महत्व
श्रीराम की मुलाकात शबरी से वनवास के दौरान हुई थी। शबरी का असली नाम श्रमणा था। शबरी का संबंध भील समुदाय से था। भील समुदाय के राजकुमार से शबरी का विवाह तय हुआ था। जहां पर पशुबलि की परंपरा थी। शबरी किसी भी प्रकार की हिंसा और बलि को पसंद नहीं करती थीं। इस कारण शबरी ने विवाह से ठीक एक दिन पूर्व घर छोड़ दिया और दंडकारण्य वन में रहने लगीं।
इस वन में मातंग ऋषि रहते थे। वे ऋषि की सेवा करनी लगीं। लेकिन उन्हें इस बात का भय था कहीं वे भील समुदाय से होने के कारण इस सेवा से वंचित न हो जाएं इसके लिए शबरी सुबह जल्दी उठकर ऋषियों के उठने से पहले उस मार्ग को साफ कर देती थीं, जो आश्रम से नदी की ओर जाता था।
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शबरी हर दिन प्रात:काल कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थीं। मार्ग को साफ देखकर ऋषि चकित रह जाते, एक दिन ऋषियों ने शबरी को मार्ग को स्वच्छ करते हुए देख लिया। तब शबरी की निष्ठा को देखते हुए ऋषियों ने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी। ऋषि मातंग का जब अंतिम समय निकट आया तो उन्होंने शबरी को बुलाकर कहा कि वो अपने आश्रम में ही प्रभु राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे जरूर मिलने आएंगे। इतना कहने के बाद ऋषि ने देह का त्याग कर दिया। शबरी ऋषि की बात को मानकर भगवान राम का नित्य इंतजार करने लगी। रोज की तरह ही वह रास्ते को साफ करती।
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भगवान के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती। मीठे बेर के लिए वह प्रत्येक बेर को चखकर एक पात्र में रखती। ऐसा करते हुए कई वर्ष बीत गए। शबरी की यह दिनचर्या चलती रही। एक दिन भगवान राम से मुलाकात का समय आ गया। वृद्ध शबरी भगवान राम के आने की खबर से प्रसन्न हो उठी। शबरी ने भगवान राम के चरणों को धोकर और बैठने का स्थान दिया। इसके बाद जूठे बेर भगवान को खाने के लिए दिए। भगवान राम शबरी के जूठे बेर बहुत प्रेम से खाए। बेर खाने के बाद शबरी की प्रशंसा में भगवान राम ने उन्हें भामिनी कहा जिसका अर्थ होता है अत्यन्त आदरणीय नारी।
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शबरी जयंती भगवान राम के प्रति आस्था का पर्व है। इस दिन भगवान राम के साथ शबरी की भी पूजा अर्चना की जाती है। शबरी को भगवान राम ने मोक्ष प्रदान किया था। यह पर्व आस्था, प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर ही भगवान राम ने शबरी को दर्शन दिए थे और बेर खाए थे।
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