नई दिल्ली । केंद्र सरकार द्वारा सितंबर माह में लागू किए गए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए हजारों की संख्या में किसान, ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान पर अपनी ट्रैक्टर ट्रॉलियों और अन्य वाहनों से राष्ट्रीय राजधानी पहुंचे हैं। ये किसान बीते 21 दिनों से भीषण ठंड में सड़कों पर ही अपना डेरा डाले हुए हैं। किसान सुधार बिल के खिलाफ मुख्य रुप से पंजाब और हरियाणा के कृषक सबसे ज्यादा मुखर हैं।
ये भी पढ़ें- 2022 तक दुनिया की एक चौथाई आबादी को नहीं मिल पाएगा कोविड-19 का टीका: बीएमजे
अब सबसे पहला सवाल उठता है किसानों के ये बिल के प्रावधान क्या हैं-
1.एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव किया गया है-
इसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) कानून, 2020, इसमें उत्पादन, स्टोरेज के अलावा अनाज, दाल, खाने का तेल, प्याज की बिक्री को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर नियंत्रण-मुक्त कर दिया गया है।
Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था, जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक सीमा से अधिक भंडारण पर रोक लगाई गई थी। अब इस नए कानून के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है। आंदोलनकारी किसान संगठनों का कहना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा।
ये भी पढ़ें- 2022 तक दुनिया की एक चौथाई आबादी को नहीं मिल पाएगा कोविड-19 का टीका: बीएमजे
2. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग-The Farmers Agreement on Price Assurance and Farm Services Ordinance
फार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस कानून, 2020, इसके अनुसार, किसान अनुबंध वाली खेती कर सकते हैं और सीधे उसकी मार्केटिंग कर सकते हैं।
सरकार ने नए कानूनों में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को मान्यता दी है। दरअसल सरकार का विचार है कि व्यावसायिक खेती वक्त की जरूरत है। विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो बढ़िया वैरायटी का बीज लगाकर उच्च मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं। इस कानून के बन जाने से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे। इस कानून के संबंध भारतीय किसान महासंघ का मानना है, इस नए कानून के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बनके रह जायेगा। इस कानून के जरिए केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती है, क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।
ये भी पढ़ें- स्कूली छात्राओं को फांसकर लेता था अश्लील तस्वीरें, ब्लैकमेल कर वसूले 7 लाख
3. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
केंद्र सरकार ने जून 2020 में फार्मिंग प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) अध्यादेश 2020 को मंजूरी दे दी थी। इसके तहत किसानों को एपीएमसी में अपनी उपज बेचने की बाध्यता नहीं होगी। बता दें कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने इसे लेकर कहा था कि किसानों को उनकी बिक्री की आजादी के लिए एपीएमसी एक्ट में सुधार नहीं किया गया है, बल्कि ये एक नया एक्ट है और यह व्यापार के लिए है। इसका नाम ‘किसान उपज व्यापार वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अध्यादेश 2020 है।
फ़ार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फ़ैसिलिटेशन), 2020 कानून के मुताबिक, किसान अपनी उपज एपीएमसी यानी एग्रीक्लचर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी की ओर से अधिसूचित मंडियों से बाहर, बिना दूसरे राज्यों का टैक्स दिए बेच सकते हैं। आंदोलनकारी किसान संगठनों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी। इससे किसानों को नुकसान होगा और कॉरपोरेट और बिचौलियों को फायदा होगा।
किसान संगठन तीनों बिल को वापस लिए जाने पर अड़े हैं तो वहीं सरकार इन तीन कृषि कानूनों के बचाव में खड़ी है, सरकार इन कानूनों को किसानों के लिए लाभकारी बता रही है।
ये भी पढ़ें- विजय दिवसः CM भूपेश बघेल ने ट्वीट कर लिखा- इंदिरा गांधी न अमेरिका से डरीं और न ही
एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भी फंसा है पेंच-
तीन नए कानूनों की वजह से पंजाब और देश के कुछ हिस्सों के किसान राष्ट्रीय राजधानी के मुहाने पर आकर जम गए हैं। किसानों के विरोध-प्रदर्शन में सबसे बड़ा जो डर उभरकर सामने आया है, वो है कि एमएसपी की व्यवस्था खत्म होने की आशंका को लेकर, किसानों की मानें तो उसे लगता है कि नए कानून से मंडी व्यवस्था भी खत्म हो जाएगी साथ ही एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य भी खत्म हो जाएगा। बता दें कि एमएसपी व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार कृषि लागत के हिसाब से किसानों की उपज ख़रीदने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है।
दरअसल सरकारी खरीद का प्रमुख केंद्र सरकारी मंडियां हैं, किसानों को डर है कि एपीएमसी यानी सरकारी मंडियों में फसल बेचने की बाध्यता खत्म करने वाले कानून की वजह से धीरे-धीरे एमएसपी मिलना भी बंद हो जाएगी। हालांकि केंद्र सरकार और खुद पीएम मोदी कई बार एमएसपी व्यवस्था को जारी रखने का आश्वासन दे चुके हैं । वहीं किसान इसे कानूनी शक्ल देने की मांग कर रहे हैं।
नए कृषि कानूनों के खिलाफ कुछ राज्यों के किसान मुखर हुए हैं, कई राज्यों के किसान वेट एंड वॉच की मुद्रा में हैं। वहीं छोटे किसानों को अब तक ये कानून समझ ही नहीं आए हैं।
देश का उद्योग ही नहीं संस्कृति भी है खेती-किसानी
जब भारत की छवि की कल्पना की जाती है तो ग्रामीण परिदृश्य ही उभरता है। कच्ची पगडंडियों के किनारे फलदार वृक्ष, गांव की चौपाल पर बैठे वृद्ध ग्रामीण, गोबर से लिपे-पुते आंगन में अधनंगे बदन घूमते बच्चे, सिर पर घूंघट लिए महिलाओं का दिन ऊगने से लेकर दिया- बाती के समय तक ऊर्जा के साथ काम करना।
भारत में ग्रामीण परिवेश की अपनी खुद की विकसित की गई मनोरंजन व्यवस्था है। गम्मत में कोई लोकगीत के सुर छेड़ देता है तो कहीं इन पर ठेठ देसी अंदाज में नृत्य भी देखने को मिलता है। फसल की बुआई से लेकर उसकी विभिन्न अवस्थाओं पर गाए जाने वाला लोकसंगीत गांवों में सुनने को मिलता है। फसल जब पकती है तो गांव की चाल ही बदल जाती है। फसल कटाई से लेकर गहाई और बाजार पहुंचाने तक घर का छोटा बच्चा भी आंदोलित रहता है। जब फसल बिकने के बाद रकम घर आती है तो किसानों और उसके परिजनों के सपने जवान होते हैं। यह सब बहुत ही सहजता से होता है जिसे एक ग्रामीण ही महसूस करता है। बदले हुए कानून क्या इन परिस्थितियों में जिंदा रख पाएंगे, देश के किसानों को आशंका है कि कांन्ट्रेक्ट फार्मिंग के नाम पर किसानों को उनके खेत पर ही अधिकार सीमित हो जाएगा और जो भावना उनकी फसल से जुड़ी होती है वह कहीं खत्म ना हो जाए।
दरअसल कृषि ही इस देश की संस्कृति है, भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए बीजेपी और आरएसएस हमेशा से मुखर रहे हैं। ऐसे में पश्चिमी देशों की तर्ज पर किए गए कृषि कानून संशोधनों का इस संस्कृति पर कितना असर पड़ेगा इस पर भी विचार किए जाने की जरुरत है।