रायपुर। आज ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत और शनि जयंती भी है। हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन पूजा, दान, जप, पितरों का तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य और चंद्र वृषभ राशि में एक साथ विराजमान रहेंगे। अमावस्या के पश्चात चंद्र दर्शन से शुक्ल पक्ष का आरंभ हो जाता है।
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वट सावित्री व्रत पूजन का विस्तार से वर्णन स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में किया गया है। इन दोनों पुराणों में बताया गया है कि ज्येष्ठ मास की अमवस्या तिथि के दिन सुहागन महिलाओं को अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए वटसावित्री का व्रत पूजन करना चाहिए। इस व्रत का नियम है कि अमावस्या तिथि में दिन के समय वट के वृक्ष की पूजा की जानी चाहिए। वट वृक्ष के सामने मीठे और रसयुक्त पदार्थों को रखकर ब्रह्माजी की पत्नी देवी सावित्री और ब्रह्माजी की पूजा की जानी चाहिए।
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जानिए ज्येष्ठ अमावस्या की पूजा विधि और मुहूर्त…
वट सावित्री पूजा के लिए इस वर्ष शुभ मुहूर्त की जहां तक बात है तो पूरे दिन अमावस्या तिथि रहेगी। अमावस्या तिथि 21 मई को रात 9 बजकर 34 मिनट पर लग जाएगी और 22 तारीख की रात 11 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होकर ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा तिथि लग जाएगी। ऐसे में सुहागन स्त्रियां सुबह से ही वट वृक्ष की पूजा कर सकती हैं। वट सावित्री पूजा शुभ चौघड़िया में लेकिन चौघड़िया के हिसाब से सबसे उत्तम समय सुबह में 7 बजकर 9 मिनट से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इस समय लाभ और अमृत चौघड़िया होना शुभ फलदायी है।
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इसके बाद 12 बजे तक राहुकाल रहने से हो सके तो पूजा 12 बजे के बाद करें। 12 बजकर 18 मिनट से दिन के 2 बजे तक शुभ चौघड़िया होने से इस समय भी वट सावित्री की पूजा करना शुभ फलदायी है। वट सावित्री पूजा मुहूर्त एक नजर में ज्येष्ठ अमावस्या का आरंभ 21 मई रात 9 बजकर 34 मिनट ज्येष्ठ अमावस्या का समापन 22 मई रात 11 बजकर 08 मिनट वट सावित्री पूजा का शुभ समय सुबह 7 बजकर 9 मिनट से 10 बजे तक लाभ और अमृत चौघड़िया में वट सावित्री पूजा का शुभ समय दोपहर में 12 बजकर 18 मिनट से 2 बजे तक शुभ चौघड़िया में
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इस व्रत के दिन प्रसाद में खट्टे और अम्ल युक्त पदार्थों को नहीं रखना चाहिए। बहुत से लोग वट सावित्री व्रत को राजा अश्वत्थ की पुत्री देवी सावित्री और सत्यवान की कथा से जोड़कर पतिव्रता सावित्री की केवल पूजा करते हैं। जबकि पुराण के अनुसार पहले ब्रह्माजी की पत्नी देवी सावित्री की पूजा की जानी चाहिेए जिनके आशीर्वाद स्वरूप पतिव्रती कन्या सावित्री का जन्म हुआ था। जो लोग विधि पूर्वक यह वट सावित्री व्रत पूजन करते हैं उनके लिए स्कंद पुराण में बताया गया है कि इन्हें वट वृक्ष के पास पूजन करने के बाद किसी सुहागन महिला को पति के साथ भोजन वस्त्र देना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करें। वैसे इस व्रत के कई तरीके हैं। आप चाहें तो दिन में मीठा भोजन करें और सूर्यास्त के बाद अन्न जल का त्याग करें। यह इस व्रत की कठिन तपस्या है। अगर ऐसा करना संभव ना हो तो रात को भी मीठा ही भोजन करें। इस व्रत में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
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