धर्म । दिशाओं के ज्ञान को ही वास्तुशास्त्र कहते हैं, ये एक ऐसी पद्धति है.. जिसमें दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण और उसका इंटीरियर डेकोरेशन किया जाता है। अगर दिशाओं के आधार पर भवन निर्माण किया जाए.. तो घर-परिवार में खुशहाली आती है। वास्तुशास्त्र- कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का मिश्रण हैं।
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माना जाता है कि वास्तुशास्त्र हमारे जीवन को बेहतर बनाने और कुछ गलत चीजों से हमारी रक्षा करने में मदद करता है। वास्तुशास्त्र की रचना पंचतत्व यानि धरती, आकाश, वायु, अग्नि, जल और आठ दिशाओं के तहत होती है। घर के प्रवेश द्वार पर स्वास्तिक या ‘ॐ’ की आकृति लगाने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। वास्तु के अनुसार रसोईघर में देवस्थान नहीं होना चाहिए, किचन दक्षिण-पूर्व में, मास्टर बेडरूम दक्षिण-पश्चिम में, बच्चों का बेडरूम उत्तर-पश्चिम में और शौचालय वगैरह दक्षिण दिशा में बनवाना चाहिए।
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पूजा के लिए ईशान कोण हो या भगवान का मुख ईशान में हो.. पानी की निकासी उत्तर में हो.. ईशान यानि उत्तर-पूर्व खुला हो.. दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी सामान होना चाहिए। उत्तर या पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएं.. पूर्वजों की फोटो पूजाघर में नहीं रखें.. बल्कि दक्षिण की दीवार पर लगाएं। घर में अखंड रूप से 9 बार श्री रामचरितमानस का पाठ करने से वास्तुदोष का निवारण होता है। रसोई घर अगर गलत स्थान पर हो.. तो अग्निकोण में एक बल्ब लगा दें.. और सुबह-शाम इसे जरूर जलाएं। इसी तरह अगर आप वास्तु सम्मत निर्माण कराएं.. और घर को वास्तु के मुताबिक सजाएं.. तो सुख-समृद्धि आपके घर हमेशा बनी रहेगी।
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* यह लेख केवल संकलित तथ्यों पर आधारित है, हम इसकी प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करते हैं।
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