खंडवा। आज बॉलीवुड के पार्श्व गायक किशोर कुमार का जन्मदिन है। किशोर कुमार की आवाज का जादू संगीत की दुनिया में अमर है। किशोर कुमार को दुनिया वालों ने कभी मनमौजी कहा, कभी अल्हड़, लेकिन किशोर कुमार ताउम्र किशोर ही रहे।
किशोर कुमार, बॉलीवुड का ऐसा मनमौजी इंसान जिन्होंने अपनी आवाज, अपनी जिंदादिली के बल पर बॉलीवुड पर वर्षों राज किया, न सिर्फ अपनी एक्टिंग के बल पर लोगों को गुदगुदाया बल्कि दर्जनों बॉलीवुड सितारों को अपनी मखमली आवाज भी दी। आज उसी सितारे का 91 वां जन्मदिन है। 4 अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश के छोटे से शहर खंडवा जिले में एक बंगाली परिवार में उनका जन्म हुआ, जिसका नाम आभाष रखा गया। पिता कुंजीलाल गांगुली खंडवा में पेशे से वकील थे, चार भाई- बहनों में आभाष गांगुली सबसे छोटे थे। बड़े भाई अशोक कुमार का बॉलीवुड में एक स्थापित नाम था, आभाष खंडवा से भागकर अपने बड़े भाई अशोक कुमार के पास मुंबई चले गए। मुंबई में अशोक कुमार ने आभाष से फिल्मों में एक्टिंग करने को कहा, लेकिन आभाष का मन एक्टिंग में नहीं लगता था। अशोक कुमार की जिद के बाद उन्होंने फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया। जहां बॉलीवुड ने उन्हें किशोर कुमार का नाम दिया।
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किशोर कुमार ने 1946 में शिकारी फिल्म में एक्टिंग शुरू की, लेकिन शूटिंग के दौरान वो डायलॉग भूल जाते थे। अशोक कुमार की डांट-फटकार के बाद किसी तरह उन्होंने फिल्म पूरी की, किशोर कुमार को अब भी एक्टिंग में मन नहीं लगता था। वो तो के.एल. सहगल की तरह गायक बनना चाहते थे। 1948 में खेमचन्द्र प्रकाश के संगीत निर्देशन में फिल्म जिद्दी के लिए उन्होंने पहली बार देवानंद के लिए गाना गाया। गीत के बोल थे “मरने की दुआएं क्यूं मांगू, जीने की तमन्ना कौन करे”. इसके बाद किशोर कुमार ने फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखा। संगीतकार एस.डी बर्मन का साथ पाकर किशोर कुमार ने हर रोज नई ऊंचाइयों को छुआ। बॉलीवुड में राजेश खन्ना, शशि कपूर, देव आनंद, अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों की आवाजकिशोर दा बन गए। एक समय फिल्मों में किशोर कुमार की आवाज या अदाकारी फिल्म की हिट होने की गारंटी माना जाता था।
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किशोर कुमार को अपनी जन्मभूमि खंडवा से बहुत लगाव था,उनकी इच्छा थी कि वो सब कुछ छोड़कर खंडवा में बस जाएं। देश-विदेशों में भी वे खंडवा का जिक्र करना नही भूलते थे। यही नहीं खंडवा में बचपन में जिस लाला जलेबी वाले के यहां वो दूध-जलेबी खाया करते थे, उस दुकान को भी नहीं भूले। उनका प्रसिद्ध जुमला था दूध जलेबी खाएंगे-खंडवा में बस जाएंगे।
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हालांकि किशोर कुमार का खंडवा में बसने का सपना तो पूरा नही हो पाया लेकिन किशोर कुमार को जितना खंडवा से लगाव था उतना खंडवा वालों ने भी उन्हें सिर आंखों पर बिठाया। उनके इस पैतृक मकान को लोगों ने मंदिर से कम नहीं समझा। अब लोग खंडहर होते इस अवशेष को संग्रहालय में तब्दील करने की सरकार से मांग कर रहे हैं ताकि उनकी सामग्रियों और स्मृतियों को यहां सहेज कर रखा जा सके।