भोपाल। सोनिया गांधी के कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद मध्यप्रदेश के नेताओं की हसरतें फिर उछाल मारने लगी हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने अब निगम-मंडलों में जगह पाने के लिए आखिरी जोर लगाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं ने अपना रसूख बचाए रखने के लिए निगम मंडलों में खुद की नियुक्ति को लेकर भोपाल से दिल्ली तक अपनी ताकत लगा दी है।
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15 सालों तक सत्ता का वनवास भोगने वाली कांग्रेस पार्टी साल 2018 के अंत में जैसे ही सत्ता मिली, उसके बाद से निगम-मंडल में नियुक्ति को लेकर नेता और कार्यकर्ताओं में उम्मीद जग गई थी। लेकिन विधानसभा के ठीक बाद लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल इस्तीफे के घटनाक्रम के चलते निगम-मंडलों में नियुक्तियों को टाला दिया गया। अब एक बार फिर सोनिया गांधी के कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद मध्यप्रदेश के नेताओं की हसरतें फिर उछाल मार रही है। लिहाजा 15 साल बाद सत्ता में काबिज हुई कांग्रेस के सामने अपनों को ही मनाने की चुनौती रहेगी।
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कांग्रेस सरकार बनने के बाद प्रदेश व जिला स्तर के पदाधिकारियों को पार्टी से उम्मीदें बढ़ गई हैं। निगम-मंडल से लेकर जिला सहकारी बैंक, सहकारी समितियां, नगर समितियों में संगठन के पदाधिकारियों को पद चाहिए। कैबिनेट में मंत्री के चार पद खाली हैं और एक दर्जन इसके दावेदार हैं। ऐसे में कुछ मंत्री पद की चाह रखने वालों को भी निगम-मंडल में एडजस्ट किया जा सकता है। सरकार और संगठन दोनों के लिए पहले विधायकों की संतुष्टि प्राथमिकता पर है। सरकार और संगठन किसी भी विधायक को नाराज करने का जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है।
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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 116 प्रत्याशियों ने हार का मुंह देखा था, लेकिन इनमें पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व विस उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह, रामनिवास रावत, अरुण यादव, मुकेश नायक जैसे दिग्गज भी शामिल थे। अब ये निगम-मंडलों के प्रभारियों की दौड़ में शामिल हो रहे हैं। इधर संगठन की निगम-मंडल में नियुक्ति को लेकर अलग राय है।