रायपुर। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में प्रचलित गहनों का सौंदर्य अब राजपथ से पूरे देश में बिखरेगा। नई दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस परेड़ में पहली बार छत्तीसगढ की झांकी को नेतृृत्व करने का मौका मिल रहा है। आभूषणों और शिल्पकलाओं की थीम पर बनी यह झांकी छत्तीसगढ़ के लोक-जीवन और समाज में कलात्मक सौंदर्यप्रियता को प्रतिबिंबित करती है। इस झांकी में बस्तर के आदिवासी समुदाय के ककसार नृृत्य की मनमोहक प्रस्तुति भी कलाकार देंगे।
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गणतंत्र दिवस के इस राष्ट्रीय पर्व में प्रस्तुत की जा रही झांकी के जरिए आदिवासी संस्कृति और तीज-त्यौहार में पहने जाने वाले गहनों और शिल्प कलाकृतियों के साथ साथ बस्तर के ककसार नृत्य से छत्तीसगढ़ की संस्कृति ,परंपराओं तथा जन-जीवन की देश और दुनिया में पहचान बनेगी। गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि ब्राजील के राष्ट्रपति ज़ायर बोल्सोनारो, भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित देश-विदेश के मेहमान भी छत्तीसगढ़ी लोक-जीवन एवं जनजातीय परंपराओं में समाहित झांकी के प्रत्यक्ष गवाह बनेंगे।
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छत्तीसगढ़ में गठित नई सरकार के मुखिया भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के पुरखों के सपनों के अनुरूप ’’गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’’ का नारा देकर यहां की संस्कृति को नई उर्जा दी है। इससे लोगों में स्थानीय संस्कृति को लेकर गर्व की भावना जागृृत हुई है। यहां की लोक मान्यताओं और परम्पराओं में आदिवासी संस्कृति की छाप देखने को मिलती है। सरकार के प्रोत्साहन से इन मान्यताओं, परम्पराओं को नया जीवन मिला है। सरकार द्वारा राज्य सांस्कृतिक छटा को देश-दुनिया में आगे लाने के लिए छत्तीसगढ़ के गहनों पर आधारित झांकी निर्माण का निर्णय लिया गया, इसके लिए रक्षा मंत्रालय को तीन झांकियों का प्रोजेक्ट बनाकर भेजा गया। देश भर की झांकियों की कड़ी समीक्षा एवं प्रस्तुतीकरण के देखने के बाद रक्षा मंत्रालय ने गणतंत्र दिवस परेड के लिए आभूषण और शिल्पकला पर आधारित झांकी को मंजूरी दी।
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मनुष्य में गहनों के प्रति मोह प्राचीन काल से रहा है। हड़प्पाकालीन प्रतिमाओं, प्राचीन मूर्तियों से लेकर अलग-अलग कालखण्डों में अनेक आभूषणों की ऐतिहासिक छवि परिलक्षित होती है। सामाजिक दर्जे और हैसियत के मुताबिक विभिन्न रत्नों, धातुओं के आभूषणों का भी प्रचलन रहा है। छत्तीसगढ़ में कांच, कौड़ियों और मोरपंख सहित बहुमूल्य रत्नों की छटा भी मानव श्रृंगार कला को गौरवान्वित करती रही हैं। आभूषणों और पत्थरों (रत्नों) के श्रृंगार के अलावा ग्रह-नक्षत्र, राशि अथवा ज्योतिष महत्व के कारण भी ताबीज, राशि रत्न आदि धारण करने का रिवाज है। इन आभूषणों के लिए सोना-चांदी, लोहा, अष्टधातु, कांसा, पीतल, और मिश्र धातु सहित मिट्टी, काष्ठ, बांस, और लाख के गहने प्रमुखतः प्रयोग में लाए जाते हैं।
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छत्तीसगढ़ की यह झांकी गहनों में छिपे सौंदर्य को प्रदर्शित करती है। आभूषणों की विविधता और बहुलता से यहां की संस्कृति और रहन-सहन, सौंदर्यप्रियता की गहराई का भी पता चलता है। इन गहनों में यहां के सीधे सरल जीवन की छाप भी दिखती है, जो इसे अलग ही पहचान देती हैं। वहीं यहां की समृृद्धशाली संस्कृति का भी बोध कराती है। झांकी से यहां के लोगों का कला और संस्कृति के प्रति लगाव भी प्रदर्शित होता है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में फूल, पंख, कौड़ियां, सिर पर बाल के जुड़े व चोटियां के साथ-साथ ककई एवं कंघी तथा मांगमोती, माथे में टिकली, कान में खिनवा-खूंटी और नाक में फुल्ली, नथ, नथली, लवंग आदि धारण की जाती है। गले में सुता, रूपिया, पुतरी, सुंर्रा, सकरी। बाजू में बहुंटा, नागमोरी तो कलाई में चुरी, कड़ा, ऐठी और उंगलियों में मुंदरी (अंगुठी) धारण करने की परंपरा है। कमर में चैड़ी करधन भी विशेष रूप से पहनी जाती है। पैरों में तोड़ा, सांटी, चुटकी बिछिया पहनी जाती है।
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राष्ट्रीय पटल पर प्रस्तुत झांकी छत्तीसगढ़ के लोकजीवन के विशाल फलक को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। इसमें एक ओर जनजातीय समाज की शिल्पकला के माध्यम से उनका सौंदर्य-बोध रेखांकित है। वहीं दूसरी ओर आभूषणों से लेकर तरह-तरह की प्रतिमाओं और लोक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुओं तक शिल्पकला का विस्तार देखा जा सकता है। यह झांकी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषणों और शिल्पकला को पहचान दिलाने तथा इसके संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में सार्थक कदम है।
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