माता का ऐसा मंदिर जहां खुद ब खुद प्रज्ज्वलित होती है ज्योति कलश, साल में एक बार सिर्फ कुछ घंटों के खुलता है दरबार | The temple of Mother, where the Jyoti Kalash is lit by itself, opens the court once a year for only a few hours.

माता का ऐसा मंदिर जहां खुद ब खुद प्रज्ज्वलित होती है ज्योति कलश, साल में एक बार सिर्फ कुछ घंटों के खुलता है दरबार

माता का ऐसा मंदिर जहां खुद ब खुद प्रज्ज्वलित होती है ज्योति कलश, साल में एक बार सिर्फ कुछ घंटों के खुलता है दरबार

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:42 PM IST
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Published Date: April 18, 2021 11:24 am IST

रायपुर: दुनिया के कोने-कोने में माता का मंदिर स्थापित है, लेकिन हर मंदिर की अपनी एक अलग ही गाथा है। जितने मंदिर उतनी ही महिमा। ‘माता की महिमा अपरंपार’ वैसे ये गलत नहीं कहा गया। इन दिनों नवरात्र का पावन पर्व चल रहा है, लेकिन मंदिरों में कोरोना संक्रमण के चलते बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। तो चलिए नवरात्र के इस पावन पर्व पर हम आपको एक ऐसे मंदिर की गाथा बताते हैं, जो साल में सिर्फ एक बार कुछ घंटों के लिए खुलता है। वहीं, स्थानीय लोगों की मानें तो यहां ज्योत नहीं जलाया जाता, बल्कि खुद ब खुद ज्योति कलश प्रज्जवलित हो जाती है। तो आइए जानते हैं इस मंदिर की महिमा क्या है….

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दरअसल धमतरी जिले के मगरलोड ब्लाक के अंतिम छोर बसे ग्राम मोहेरा में निरई माता का मंदिर दुर्गम पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर साल में केवल एक बार चैत्र नवरात्रि में पड़ने वाले पहले रविवार को महज कुछ घंटों के लिए खुलता है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि यहां माता को कोई मूर्त रूप नहीं बल्कि निराकार रूप विराजमान है। यह मंदिर गुफा में स्थित है।

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भेंट चढ़ाने मात्र से पूरी होती है मनोकामना
मान्यता है कि इस मंदिर में माताजी को भेंट चढ़ाने मात्र से मनोकामना पूरी होती है, कुछ लोग यहां मन्नत पूरी होने पर भी भेंट प्रसाद चढ़ाने पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो जिस दिन माता का दरबार खुलता है, उस दिन को माता जात्रा के नाम से जाना जाता है। इस दिन जिनकी मन्नत पूरी हुई है, वे भक्त भेंट चढ़ाने आते हैं।

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मंदिर में महिलाओं का आना है वर्जित
निरई माता का मंदिर अंचल के देवी भक्तों की आस्था का केंद्र है, हर साल यहां लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। लेकिन इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश और उनका पूजा-पाठ करना करना निषेध है। पूजा की सारी रस्मे केवल पुरूष वर्ग के लोग ही निभाते हैं। मान्यता ऐसी भी है कि मंदिर का प्रसाद महिलाएं नहीं खातीं और धोखे से वे प्रसाद खा भी लें तो उनके साथ कुछ अनहोनी हो जाती है।

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खुद ब खुद जलती है ज्योति कलश
स्थानीय लोगों की मानें तो शारदीय और चैत्र नवरात्र दौरान पहाड़ी के ऊपर मंदिर में अपने आप ज्योत प्रज्वलित हो जाती है, जो कि उनके गांव से ही शाम के समय किस्मत वालों को ही दिखाई देती है। जो व्यक्ति भाग्यशाली होता है, उसे ही यह ज्योति कलश के दर्शन होते है। हालांकि पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी कोरोना महामारी के चलते माता का दरबार बंद रहेगा और भक्तो को दर्शन के लिए आने वाले वर्ष का इंतजार करना पड़ेगा। 

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