ग्वालियर। कोरोना काल में मध्य प्रदेश के नगरीय निकायों की हालत बिगड़ती जा रही है। ताजा मामला ग्वालियर नगर निगम से जुड़ा हुआ है। जहां नगर निगम की माली हालत दिनों दिन बिगड़ती जा रही है। कोरोना संकट काल में न तो जनता से टैक्स मिला और न ही सरकार से कोई राहत। स्थिति यह है कि वेतन भत्तों, पेंशन, चिड़ियाघर, गौशाला और स्ट्रीट लाइट जैसे मदों में हर माह करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। ऐसे में निगम ने शासन से 110 करोड़ मांगे है, निगम कमिश्नर का कहना है कि वित्त हालत सुधऱने पर काम किया जा रहा है। तो वहीं कांग्रेस तंज कस रही है।
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कोरोना के चलते मजदूर, व्यापार और उद्योगों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। इसके साथ ही कोरोना संक्रमण के कारण ग्वालियर नगर निगम के राजस्व पर भी बड़ा असर हुआ है। ग्वालियर नगर निगम को इस कोरोना काल में आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। जिससे निगम के राजस्व में इस बार 50 फीसदी की गिरावट आई है। क्योंकि नगर निगम शहर के लोग से अलग-अलग टैक्स लेते हैं। कोरोनाकाल में ग्वालियर नगर निगम को लगभग 15 करोड़ रुपये की वसूली करना बाकी है। ऐसी स्थिति में दो महीने से निगम में वेतन के लाले पड़े हैं।
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ग्वालियर नगर निगम की आय के प्रमुख स्रोत जल कर, संपत्ति कर, संपत्ति व दुकानों का किराया, भवन निर्माण मंजूरी से होने वाली आय है। हर माह इन मदों में औसतन 8 करोड़ की आय होती थी। लेकिन कोरोना के कहर से तीन माह में केवल 70 लाख की ही आय हो सकी है। इसलिए निगम ने बाउंड्रीवॉल, प्रवेश द्वार, शौचालय, सामुदायिक भवन जैसे निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है। केवल बदहाल सड़कें, पार्क, पानी, बिजली, सीवर आदि कार्यों पर फोकस किया है। वहीं नगरीय निकायों की आय का बड़ा हिस्सा चुंगी से प्राप्त होता था। अब इसकी वसूली सीधे शासन करता है। लेकिन अब कांग्रेस को ये मुद्दा सियासी लगने लगा है, जिस पर वो निगम को आड़े हाथ ले रही है।
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ग्वालियर नगर निगम के हर माह आवश्यक खर्च में वेतन-भत्ते व पेंशन 14.5 करोड़ । स्ट्रीट लाइट, जलप्रदाय, दफ्तर आदि 3 करोड़ । गौशाला व चिड़ियाघर 1.5 करोड़ । डीजल व वाहन किराया, 1.60 करोड़। टेलीफोन, कम्प्यूटर आदि 10 लाख । डोर टू डोर कचरा कलेक्शन, 50 लाख । पानी की मोटरों का मेंटेनेंस, 60 लाख। विद्युत मेंटेनेंस सामग्री, 40 लाख । कोरोना से निपटने तीन माह में सैनिटाइजर व अन्य सामग्री, 1 करोड़।
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बहरहाल सरकार की भी माली हालत खराब है। इसलिए जरूरी अनुदान की आस कम है। हालांकि अधिकारियों को भरोसा है कि सरकार भेजे गए प्रस्ताव में 70-75 फीसदी राशि दे देगी। इससे वेतन-भत्तों का संकट नहीं रहेगा। लेकिन अन्य आवश्यक कार्य सुचारू रखने निगम ने खर्चों में कटौती शुरू कर दी है। प्रशासक के निर्देश पर अपर आयुक्त वित्त देवेन्द्र पालिया ने किराए के वाहन व कर्मचारियों की संख्या कम करने, टेलीफोन सेवा हटाने जैसे कई सुझाव रखे, इन्हें मान्य किया गया। निगमायुक्त ने 38 अधिकारियों को उनके मूल विभाग में वापसी और अनावश्यक निर्माण कार्य बंद करा दिए। इससे काफी राशि की बचत हुई है।