प्राचीन सिद्धपुर में स्थित है श्री सिद्धि विनायक का दिव्य मंदिर, राजा विक्रमादित्य को नियत स्थान पर ही करनी पड़ी थी स्थापना | The divine temple of Sri Siddhi Vinayak is located in ancient Siddhpur King Vikramaditya had to establish at the appointed place

प्राचीन सिद्धपुर में स्थित है श्री सिद्धि विनायक का दिव्य मंदिर, राजा विक्रमादित्य को नियत स्थान पर ही करनी पड़ी थी स्थापना

प्राचीन सिद्धपुर में स्थित है श्री सिद्धि विनायक का दिव्य मंदिर, राजा विक्रमादित्य को नियत स्थान पर ही करनी पड़ी थी स्थापना

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:26 PM IST
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Published Date: May 14, 2020 10:01 am IST

धर्म । बुधवार का दिन समर्पित होता है भगवान गणेश को, पुराणों में भगवान गणेश को प्रथम देव का दर्जा दिया गया है। यही वजह है कि शुभ कार्य में सबसे पहले गणपति की पूजा का विधान है।

सीहोर का सिद्धि विनायक …..एक ऐसा धाम…जहां आस्था और अतीत का संगम होता है। एक ऐसा मंदिर जहां, परंपरा और कला का मेल होता है। एक ऐसा द्वार…जहां श्रद्धा और चमत्कार का अलख जगता है ।

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मध्यप्रदेश का एक जाना-पहचाना शहर सीहोर…सीहोर..जिसका प्राचीन नाम था सिद्धपुर । यहां मौजूद हैं श्री सिद्धि विनायक का एक दिव्य मंदिर । देश भर में सिद्धि विनायक की चार स्वयंभू प्रतिमाएं हैं । इनमें से एक राजस्थान के रणथम्भौर सवाई माधोपुर, दूसरी उज्जैन, तीसरी गुजरात के सिद्धपुर और चौथी सीहोर में चिंतामन गणेश मंदिर में विराजित है । इन चारों स्थानों पर गणेश चतुर्थी पर विशाल मेला लगता है। इतिहास के अनुसार लगभग 2000 वर्ष पूर्व उज्जैनी के सम्राट रहे परमार वंश के शासक विक्रमादित्य भगवान गणेश के अनन्य भक्त थे । कहते हैं वो हर बुधवार रणथम्भौर के किले में स्थित सवाई माधोपुर के श्री सिद्धि विनायक के दर्शन के लिए जाया करते थे । कहते हैं…एक दिन विक्रमादित्य को भगवान गणेश ने स्वप्न में दर्शन देकर सीवन नदी में कमल पुष्प के रूप में अपने प्रकट होने की बात कही । राजा उस कमल पुष्प को लेकर अपने साथ ले आए, लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि सुबह होते ही पुष्प कमल जहां होगा वहीं रुक जाएगा ।

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राजा विक्रमादित्य कुछ दूर ही चले थे कि अचानक उनके रथ के पहिए ज़मीन में धंस गए । राजा ने रथ के पहिए भूमि से निकालने का प्रयास किया, लेकिन रथ क्षतिग्रस्त हो गया। दूसरे रथ की व्यवस्था होते-होते सुबह हो, इसी बीच वो कमल फूल सिद्धि विनायक की मूर्ति के रूप में परिवर्तित हो गया….गणेशजी की ये प्रतिमा बेहद चमत्कारी है । कहते हैं राजा विक्रमादित्य ने जैसे-जैसे प्रतिमा उठवाने का प्रयास किया, वैसे-वैसे प्रतिमा जमीन में धंसने लगी और बहुत कोशिशों के बाद भी ये अपनी जगह से ज़रा भी नहीं हिली । तब ये सिद्धिविनायक की ये प्रतिमा यहीं स्थापित है।

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प्रतिमा के अटल हो जाने से राजा ने वहीं उसकी स्थापना कर दी । बाद में उन्होंने यहां मंदिर का भी निर्माण करवाया । ये मंदिर श्री यंत्र के कोणों पर निर्मित है । विक्रमादित्य के बाद सालिवाहन, शक राजाओं के अलावा राजा भोज, राजा कृष्णदेव राय और गोंड़ राजा नवलशाह ने भी मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया । मराठों के काल में मंदिर का जीर्णोद्धार और सभा मंडल का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने कराया । वहीं नानाजी पेशवा के समय में मंदिर की ख्याति और प्रतिष्ठा में और भी बढ़ोतरी हुई । चिंतामन मंदिर को सिद्ध गणेश धाम कहा जाता है, क्योंकि यहां 84 सिद्धकों ने साधना की है । ये मंदिर सिद्ध है। इसीलिए सीहोर का नाम भी सिद्धपुर के रूप में विख्यात हो गया था ।
आज भी सिद्धि विनायक मंदिर श्रद्धालुओं के सारे कार्य सिद्ध करने के लिए जाना जाता है।